आज डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती है. पूरे मुल्क में डॉ. अंबेडकर को संविधान निर्माण में निभाई अपनी भूमिका के लिए याद किया जाता है. ऐसे में इस मौके पर डॉ. अंबेडकर से जुड़े कई जरूरी पहलुओं को समझना बेहद जरूरी है. 9 दिसंबर 1946 को भारतीय संविधान बनाने के लिए जब संविधान सभा की पहली बैठक हुई तो अपनी काबिलियत के दम पर ही संसद भवन के केन्द्रीय कक्ष में मौजूद कुल 207 सदस्यों में से पहली कतार में बैठने वाले चुनिंदा नेताओं में से एक डॉ. अंबेडकर भी थे. वैसे संविधान बनाने से जुड़ी कुल 17 कमेटियां बनी थी, लेकिन सबसे अहम कमेटी थी मसौदा समिति, जिसकी अगुवाई कर रहे थे डॉ. अंबेडकर.
इस समिति में अंबेडकर के साथ के.एम. मुंशी, अलादि कृष्णास्वामी अय्यर, एन. गोपालस्वामी अयंगर और श्री टी.टी.कृष्णामचारी जैसे दिग्गज भी शामिल थे. इस समिति ने उस मसौदे पर काम करना शुरू किया, जो बी.एन. राव ने पेश किया था. अक्सर डॉ. अंबेडकर को सिर्फ दलित चिंतक और आरक्षण जैसे मुद्दे तक सीमित करने की भूल की जाती है, लेकिन हकीकत ये है कि संविधान सभा में डॉ अंबेडकर ने कई गंभीर और संवेदनशील मुद्दों पर अपनी दमदार दलील के साथ प्रस्ताव पेश किए. इनमें आरक्षण और छूआछूत के साथ-साथ अल्पसंख्यकों के अधिकार, शराबबंदी, प्रेस की स्वतंत्रता और गौरक्षा जैसे ढेरों जरूरी मुद्दे थे.
काबिलियत के चलते मिली सरकार में हिस्सेदारी
डॉ. अंबेडकर के सक्रिय सामाजिक जीवन की शुरूआत काफी पहले हो चुकी थी. आजादी मिलने के बाद महात्मा गांधी का मानना था कि आजादी हिन्दुस्तान को मिली है, कांग्रेस पार्टी को नहीं. बापू के मुताबिक मंत्रिमंडल का राजनीतिक नहीं बल्कि राष्ट्रीय चरित्र होना चाहिए था और मंत्रिमंडल में सभी दलों के काबिल लोगों को जगह दी जानी चाहिए थी. बापू की इसी सोच के चलते 15 अगस्त, 1947 की दोपहर में पं. नेहरू ने लॉर्ड माउंटबेटन को अपने मंत्रिमंडल की जो सूची सौंपी, उसमें शामिल 13 लोगों में डॉ. अम्बेडकर भी शामिल थे. डॉ अंबेडकर आजाद भारत के पहले कानून मंत्री थे. हालांकि 1951 में हिंदू कोड बिल के मुद्दे पर उन्होंने इस्तीफा दे दिया, लेकिन 1952 में फिर राज्यसभा के लिए चुने गए.
अर्थशास्त्र में पीएचडी डॉ अंबेडकर पेशे से वकील थे
मध्यप्रदेश के छोटे से गांव में जन्मे डॉ अंबेडकर ने कोलंबिया यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की. वो ना सिर्फ कई भाषाओं के जानकार थे बल्कि धर्मों पर भी उनकी अच्छी पकड़ थी. ये उनकी काबिलियत ही थी कि अर्थशास्त्र में पीएचडी डॉ अंबेडकर पेशे से वकील थे, लेकिन अफसोसजनक बात ये कि मुल्क को इतना कुछ देने वाले इस महान शख्स के निधन के कई दशक बाद साल 1990 में जाकर 'भारत रत्न' के काबिल समझा गया. ये तब जबकि डॉ. अंबेडकर के नाम के सहारे ही तमाम राजनीतिक दल दलितों को वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल करते आए और आज भी कर रहे हैं.
डॉ अंबेडकर ने तब अगली पीढ़ी से सुधार की उम्मीदें जताई थी
डॉ. अम्बेडकर की इतनी मेहनत से बने संविधान में कुल 7635 संशोधन लाए गए. मानों संविधान में लिखे करीब 1 लाख 17 हजार शब्दों में से औसतन हर 15वें शब्द पर आपत्ति थीं. इनमें से 2473 संशोधनों पर तो दलीलें भी दी गईं. लेकिन डॉ. अंबेडकर अपनी इस आलोचना या उठते सवालों से विचलित नहीं हुए बल्कि अपनी काबिलियत से पूरी दुनिया को प्रभावित किया. डॉ अंबेडकर ने तब अगली पीढ़ी से सुधार की उम्मीदें जताई थी. बेहतर हो हमारे नेता उन उम्मीदों और सपनों का एहसास करें क्योंकिं चुनौती भरे कई बड़े सवाल अभी भी बरकरार हैं.
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
Source : Anurag Dixit