यह भारतवर्ष के लोकतंत्र की ही ताकत है कि देश में सबसे नीचे तबके का नागरिक भी सर्वोच्च संवैधानिक पद पर आसीन हो सकता है.'सबका साथ, सबका विकास' भाजपा का मूल मंत्र रहा है. केंद्र में भाजपा की सरकार के दौरान पार्टी को राष्ट्रपति उम्मीदवार को जीत दिलाने के तीन अवसर मिले और हर बार भाजपा ने समाज के अलग-अलग समुदायों से राष्ट्रपति का चयन कर अपने मूलमंत्र पर अक्षरशः खरा उतरने की कोशिश की है. भारत को जल्द ही अपना पहला आदिवासी राष्ट्रपति मिलेगा. झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू मूलतः ओडिशा की रहने वाली हैं और एक संथाल (जनजाति) से ताल्लुक रखती हैं.
प्रधानमंत्री जी ने ट्वीट कर उनकी उम्मीदवारी की घोषणा की: 'लाखों लोग, विशेष रूप से वे जिन्होंने गरीबी का अनुभव किया है और कठिनाइयों का सामना किया है उन्हें द्रौपदी मुर्मू के जीवन से बहुत ताकत मिलेगी, नीतिगत मामलों की उनकी समझ और दयालु स्वभाव से हमारे देश को बहुत लाभ होगा, मुझे पूरा भरोसा है कि वे हमारे देश की एक महान राष्ट्रपति होंगी.'
घोषणा के तुरंत बाद समर्थकों और विपक्ष ने 15वें राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के चयन पर बहस शुरू कर दी. किसी ने इसे मास्टर स्ट्रोक बताया तो किसी ने इसे जनजातीय और महिला वोटों की रणनीति बताया. तमाम चर्चाओं को छोड़कर देश में एक बात बिना किसी अनिश्चित शब्दों के उभर कर सामने आई है कि "सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास" सत्ताधारी सरकार के लिए सिर्फ एक सांसारिक राजनीतिक नारा नहीं रहा है, बल्कि इसका सही मायने में पालन किया गया है जिसे वर्ष 2014 से पूरे देश ने देखा भी है. राष्ट्रपति पद हेतु श्रीमती मुर्मू का चयन इस तथ्य का एक और प्रमाण है.
यह सर्वविदित है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद ग्रहण करने के उपरांत ही अपने आधिकारिक आवास को 'रेसकोर्स रोड' से 'लोक कल्याण मार्ग' में स्थानांतरित कर दिया. मैंने सड़क का नाम बदलने के बजाय शिफ्ट शब्द का इस्तेमाल किया है. यह स्थानांतरण एक बहुत बड़ा नीतिगत निर्णय था. संदेश साफ़ था कि इस पते पर सरकार और प्रधान सेवक सभी के लिए हैं. लोक कल्याण मार्ग केवल नामकरण नहीं है बल्कि मौजूदा सरकार के लोकाचार, दर्शन और संस्कृति को आत्मसात करता है.
माननीय राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद का चयन हो, द्रौपदी मुर्मू का चयन हो या फिर अन्य मुख्यमंत्रियों व राज्यपाल का चयन एक बार के निर्णय नहीं हैं, बल्कि इनके माध्यम से भारत सरकार की कई नीतियों को लागू किया जा रहा है, इसलिए मैंने यह लेख लिखने का फैसला किया है.
इन दिनों हमारे स्मार्टफ़ोन के माध्यम से हर पल सूचनाओं की बौछार की जाती है, इसलिए हम पहले से ही मोदी सरकार के 8 वर्षों में किए गए अधिकांश कार्यों को जानते हैं, लेकिन मैं इन योजनाओं को एक परिप्रेक्ष्य में रखना चाहता हूं ताकि हमें पता चले कि यह केवल मोदी जी के लिए चुनावी राजनीति नहीं है. हालांकि अंत में लोगों से वोट मोदी जी को ही मिलते हैं.
भारत में चालीस प्रतिशत आबादी के पास शौचालय नहीं था, कई गांवों और समुदायों में बिजली नहीं थी, हर रसोई में रसोई गैस की कल्पना नहीं की जा सकती थी. 5 लाख का मेडिकल कवर एक लग्जरी था. लेकिन 2014 के बाद लोकहित में बहुत कुछ बदल गया. नए भारत की नींव पड़ी और यह धीरे-धीरे आकार लेने लगा. आज सभी के पास बैंक खाते हैं, एक राष्ट्र एक राशन कार्ड की सुविधा है, हर जरूरतमंद को आवास मिल रहा है और हर घर में स्वच्छ पेयजल की सुविधा है. सभी घरों में एलईडी बल्ब जैसे छोटे सुधार हुए, स्वच्छ भारत और हाथ धोओ अभियान, हर जिले में मेडिकल कॉलेज, आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण.
वैश्विक महामारी कोरोना कालखंड से शुरू हुए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन की सुविधा दी गई. महामारी के दौरान लोग बिना जमानत के मुद्रा ऋण लिए, सभी के लिए मुफ्त टीके की व्यवस्था हुई. बेहतर कनेक्टिविटी हुई. हवाई चप्पल पहनने वाला हवाई जहाज में उड़ान भर रहा है. छोटे शहरों में भी हवाई अड्डों का विकास हो रहा है, हर कोने में सस्ता इंटरनेट, कम प्रीमियम वाली बीमा पॉलिसी, फसल बीमा इत्यादि के साथ दिव्यांगों के हित में कई कदम उठाए गए.
ये योजनाएं किसके लिए थीं? हम सभी इसे जानते हैं और यह कोई कठिन उत्तर नहीं है. ये सब आम आदमी के लिए हैं. जो दूर-दराज के इलाकों में या हाशिए पर हैं या बड़े शहरों की झुग्गियों में भुला दिए गए हैं.
मोदी जी से पहले की सरकारें भी कम से कम शब्दों में गरीबी हटाओ के लिए प्रतिबद्ध थीं. वे पिछड़े और सबसे पिछड़े लोगों के सामाजिक न्याय के लिए भी खड़े थे लेकिन इन योजनाओं की संतृप्ति के लिए योजनाओं की कोई तात्कालिकता या कोई जोर नहीं था. उनकी योजनाएं कागज पर थीं या खराब तरीके से लागू की गईं और अक्सर भ्रष्टाचार में फंस गईं. प्रतिबद्धता न होने के कारण अमल में नहीं लाई जा सकीं.
अब इस लेख को लिखने का मेरा असली कारण आता है. देश के गरीबों व आम आदमी की समस्या वही समझ सकता है जिसने स्वयं मुश्किल में समय गुजारा हो. एक व्यक्ति जो रेलवे स्टेशन पर चाय बेचकर उठा, जिसकी माँ ने घर चलाने के लिए दूसरों के बर्तन तक धोए, गरीबी को बेहद करीब से देखने वाले से बेहतर गरीबों का दुःख भला कौन समझ सकता है. इसी कड़ी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी देश के गरीबों, दलितों,महिलाओं, वंचितों, पिछड़ों व समाज के अंतिम पायदान पर खड़े प्रत्येक व्यक्ति के उत्थान हेतु अहर्निश प्रयत्नशील हैं.
पहले केवल कुलीन, विशेष परिवारों या उनके वफादारों की ही सत्ता तक पहुंच थी. पहले गुजरात के मुख्यमंत्री, उसके उपरांत देश के प्रधानमंत्री बने नरेंद्र मोदी जी पर कुछ लोगों द्वारा मनगढंत आरोपों व राजनैतिक द्वेष के कारण लगातार हमले हुए, उनसे नफरत की जाती थी, यह दिल्ली है और एक गुजराती यहां नहीं रह सकता, कहकर उनका उपहास उड़ाया जाता था.
लेकिन दिन भर मेहनत करने वाली महिलाओं, दृढ़ संकल्प और मेहनती, नवोन्मेषी और संघर्षशील लोगों के लिए उनके प्यार ने उन्हें 'नमोनोमिक्स' का वास्तुकार बना दिया. जहां पंडित दीन दयाल उपाध्याय के 'एकात्म मानववाद' सूत्र के अनुरूप आम आदमी केंद्र में है.
लेकिन मैं इन्हे अपने कारणों से भी 'नमोनॉमिक्स' कहता हूं. यह केंद्र में आम आदमी के लिए तैयार की गई नीति का मिश्रण है, संतृप्ति तक कार्यान्वयन पर जोर देता है और समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति का सशक्तिकरण भी. 'नमोनॉमिक्स' स्थानीय लोगों को रोजी-रोटी हेतु स्थानीय क्षेत्र में कई अवसर प्रदान करने के साथ ही स्टार्टअप और स्वरोजगार को भी प्रोत्साहित करता है.
अब इस परिप्रेक्ष्य में मैं आपकी सोच पर छोड़ता हूँ कि ये विकल्प राष्ट्रपति, केंद्रीय मंत्रिमंडल या भाजपा शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों और पद्म पुरस्कारों के लिए चयनित लोगों के लिए क्यों हैं. हमारे पास एक ऐसा नेता है जो लगातार और भरोसेमंद नेता के रूप में देश व देशवासियों के साथ हर पल खड़ा रहा है. अब मुझे पता है कि आप समझेंगे कि यह वोटों से कहीं ज्यादा है. लोक कल्याण मार्ग नामक सड़क पर 'सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास' है जिसका गंतव्य 'नया भारत' है.
(हिमांशु जैन राजनैतिक विश्लेषक हैं.)