मध्य प्रदेश के निकाय चुनाव में जिस बात की आशंका थी, वो सच भी साबित होता दिख रहा है. पार्टियां एकजुटता के दावे करती रहीं, उधर कुनबा बिखरता रहा. नाराज दावेदारों को दिग्गज मनाते रहे, लेकिन साथी बागी बने रहने पर आमादा दिखे. अब नौबत ये है कि निकाय चुनाव में बीजेपी-कांग्रेस दोनों में ही बागी भरे पड़े हैं. पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी के खिलाफ ही सियासी रण में अपने ताल ठोंक रहे हैं. बागियों की वजह से ना सिर्फ पार्टियों को हार का खतरा सता रहा है, बल्कि लोकल लेवल पर सियासी समीकरण भी बिगड़ने का खतरा बढ़ गया है, ऐसा इसलिए क्योंकि अगर बागी जीते तो आगे के लिए उस वार्ड में दबदबे वाली पार्टी की चुनौती बढ़ जाएगी.
वैसे सवाल सुर्खियों में है कि आखिर घर में ही घमासान की नौबत क्यों आई? तो कहा जा रहा है कि कई जगहों पर सिफारिश पर टिकट दिए गए हैं. दिग्गजों की पैरवी पर टिकट बांटे जाने की बात भी कही जा रही है. जो पहले से काम कर रहे थे, उनकी दावेदारी कमजोर पड़ गई. सर्वे में जो नाम आए थे, उनकी अनदेखी की गई. इससे नाराज होकर दावेदार निर्दलीय मैदान में उतर गए. हालांकि, बीजेपी-कांग्रेस दोनों को इस बात अहसास है कि टिकट बंटवारे में चूक हुई है, लेकिन उम्मीदवारों के पैरवीकार ही क्षेत्रीय क्षत्रप थे, इसीलिए ज्यादा जगहों पर बदलाव संभव नहीं हो सका और बागियों को मनाने में कामयाबी नहीं मिल पाई.
अब जिन सीटों पर बागी हैं, वहां पार्टी को भीतरघात की आशंका है. कार्यकर्ताओं को एक करना बड़ी चुनौती है, क्योंकि बगावत से पार्टी के अंदर ही दो फाड़ की स्थिति है. वैसे बड़ा सवाल ये भी है कि जिस पैराशूट कल्चर को खत्म करने की बात कही जा रही थी, क्या वो अब भी कायम है? सवाल इसलिए है, क्योंकि अगर इससे दूरी नहीं बनी तो ये 2023 के लिए भी खतरा हो सकता है. ऐसा इसलिए क्योंकि विधानसभा उपचुनाव में भीतरघात का असर दिखा था. कांग्रेस-बीजेपी दोनों को कई सीटों पर नुकसान उठाना पड़ा था.
ऐसे में अगर ये ट्रेंड बरकरार रहा तो यकीनन विधानसभा चुनाव के लिए खतरे की घंटी हो सकती है. वैसे भी निकाय चुनाव के नतीजों को 2023 का ट्रेलर माना जा रहा है. जिसका पलड़ा भारी रहेगा, उसका दबदबा 2023 में दिखेगा. जनता के बीच एक बड़ा मैसेज जाएगा और इसीलिए बीजेपी-कांग्रेस दोनों ओर से जीत के लिए जोरदार बैटिंग हो रही है.
Source : Vikash Kumar Pandey