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ज्ञानवापी मस्जिद विवाद :अदालती फैसले के बाद क्या है भविष्य का रास्ता?

काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद का विवाद. वाराणसी की निचली अदालत के आदेश पर तीन दिन तक ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का सर्वे किया गया.

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Pradeep Singh
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ज्ञानवापी मस्जिद( Photo Credit : News Nation)

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वाराणसी जिला अदालत ने आज यानि सोमवार को ज्ञानवापी-शृंगार गौरी केस में हिंदू पक्ष की याचिका स्वीकार कर ली है. जिला जज एके विश्वेश की एकल पीठ ने केस को सुनवाई योग्य माना. अदालत ने मुस्लिम पक्ष की आपत्ति को खारिज करते हुए कहा कि मुकदमा विचारणीय है और मामले की अगली सुनवाई 22 सितंबर को होगी. इस मामले में मुस्लिम पक्ष ने साल 1991 के वर्शिप एक्ट के तहत दलील पेश कर परिसर में दर्शन-पूजन की अनुमति पर आपत्ति जताई थी. वहीं हिंदू पक्ष का कहना था कि शृंगार गौरी में दर्शन-पूजन की अनुमति दी जाए. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की पोषणीयता पर वाराणसी की जिला अदालत को विचार करने का निर्देश दिया था.

अदालत द्वारा ज्ञानवापी-शृंगार गौरी केस को स्वीकार करने के बाद अब यह तय हैं कि केस लंबे समय तक अदालत में चलेगा. अदालत आगे किसके पक्ष में फैसला देता है यह तो भविष्य के गर्भ में है. लेकिन एक बात तय है कि अब वाराणसी का ज्ञनावापी माले का हल अदालत से ही होगा.

अयोध्या में राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद का विवाद अदालत के माध्यम से हल हो चुका है. वहां पर राम मंदिर का निर्माण शुरू हो चुका है. राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद के विवाद ने भारतीय समाज और राजनीति को गहराई से प्रभावित किया हैं. इस विवाद के समय हर कोई ये चाहता था कि किसी तरह से ये विवाद हल हो जाये तो देश में शांति बहाल हो. लेकिन अब अयोध्या से कुछ दूर ही वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर विवाद शुरू हो गया है. 

काशी को मोक्ष की नगरी औऱ सर्व विद्या की राजधानी कहा जाता है. भारत के हर राज्य के लोग वहां लंबे समय से निवास करते हैं. यह लोग अपनी धार्मिक आस्था के चलते सदियों पहले वहां आकर बस गए थे. मोक्षदायिनी वाराणसी में प्रांतों के नाम से कई मोहल्लों के नाम है. फिलहाल वाराणसी में कई दिनों से काफी हलचल है. कारण है काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद का विवाद. वाराणसी की निचली अदालत के आदेश पर तीन दिन तक ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का सर्वे किया गया. इस सर्वे के बाद हिंदू पक्ष ने यहां शिवलिंग मिलने का दावा किया है. हालांकि, मुस्लिम पक्ष ने इस दावे को नकार दिया है.

ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर विवाद लंबे समय से है. इतिहास गवाह है कि वाराणसी में विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई गयी. लेकिन कुछ समय बाद वहां से कुछ दूरी पर दोबारा मंदिर बनाया गया. वाराणसी में सिर्फ औरंगजेब के समय ही मंदिर को नहीं तोड़ा गया, बल्कि सल्तनत काल से लेकर औरंगजेब के समय तक कई बार मंदिरों का ध्वंस किया गया. यदि यह कहा जाये कि सिर्फ वाराणसी ही नहीं बल्कि भारत के अनेक या कहें प्रत्येक तीर्थ स्थलों में हिंदू मंदिरों को तोड़ा और लूटा गया तो गलत नहीं होगा, इसके ऐतिहासिक साक्ष्य हैं. और जनमानस में कथाओं के माध्यम से मंदिरों के ध्वंस की कहानी जिंदा है.

वाराणसी में सुल्तानों और आक्रांताओं ने बार-बार मंदिरों को तोड़ा है. ज्ञानवापी मस्जिद विवाद का कारण वही है. दरअसल, पांच महिलाओं ने काशी विश्वनाथ मंदिर के बगल में बनी ज्ञानवापी मस्जिद के परिसर में स्थित श्रृंगार गौरी मंदिर में पूजा करने की इजाजत देने को लेकर वाराणसी कोर्ट में गुहार लगाई थी. महिलाओं की मांग पर कोर्ट ने यहां सर्वे कराने का आदेश दिया था. शिवलिंग मिलने का दावा करने के बाद परिसर को सील कर दिया गया है. ये मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच गया है. वहीं, 1937 में बनारस कोर्ट ने तय कर दिया था कि कितनी जमीन मस्जिद की होगी और कितनी मंदिर की.  

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वाराणसी में ज्ञानवापी परिसर को लेकर सबसे पहला मुकदमा 1936 में दीन मोहम्मद बनाम राज्य सचिव का था. तब दीन मोहम्मद ने निचली अदालत में याचिका दायर कर ज्ञानवापी मस्जिद और उसकी आसपास की जमीनों पर अपना हक बताया था. अदालत ने इसे मस्जिद की जमीन मानने से इनकार कर दिया था. 

इसके बाद दीन मोहम्मद ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील की. 1937 में हाईकोर्ट ने मस्जिद के ढांचे को छोड़कर बाकी सभी जमीनों पर वाराणसी के व्यास परिवार का हक जताया और उनके पक्ष में फैसला दिया. बनारस के तत्कालीन कलेक्टर का नक्शा भी इस फैसले का हिस्सा बना, जिसमें ज्ञानवापी मस्जिद के तहखाने का मालिकाना हक व्यास परिवार को दिया गया. 

इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद 1937 से 1991 तक ज्ञानवापी परिसर को लेकर कोई विवाद नहीं हुआ. 15 अक्टूबर 1991 में ज्ञानवापी परिसर में नए मंदिर निर्माण और पूजा पाठ की इजाजत को लेकर वाराणसी की अदालत में याचिका दायर की गई. ये याचिका काशी विश्वनाथ मंदिर के पुरोहितों के वंशज पंडित सोमनाथ व्यास, संस्कृत प्रोफेसर डॉ. रामरंग शर्मा और सामाजिक कार्यकर्ता हरिहर पांडे ने दाखिल की. इनके वकील थे विजय शंकर रस्तोगी. याचिका में तर्क दिया गया कि काशी विश्वनाथ का जो मूल मंदिर था, उसे 2050 साल पहले राजा विक्रमादित्य ने बनवाया था. 1669 में औरंगजेब ने इसे तुड़वाकर यहां मस्जिद बनवा दी.

इस याचिका पर सिविल जज (सीनियर डिविजन) ने दावा चलने का आदेश दिया. इसे दोनों पक्षों ने सिविल रिविजन जिला जज के सामने चुनौती दी गई. अदालत ने सिविल जज के फैसले को निरस्त कर दिया और पूरे परिसर के सबूत जुटाने का आदेश दिया. इसके बाद ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंच गई. कमेटी ने दलील दी कि इस मामले में कोई फैसला नहीं लिया जा सकता, क्योंकि प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट के तहत इसकी मनाही है. हाईकोर्ट ने जिला जज के फैसले पर रोक लगा दी.

दोनों पक्षों केअदालत पहुंचने के बाद यह मामला एक बार फिर गरमा गया है. कानून कहता है कि 15 अगस्त 1947 से पहले जो धार्मिक स्थल जिस रूप में था, वो उसी रूप में रहेगा. उसके साथ कोई छेड़छाड़ या बदलाव नहीं किया जा सकता. अगर कोई भी व्यक्ति धार्मिक स्थलों के साथ कोई बदलाव करने की कोशिश करता है, तो उसे एक से तीन साल की कैद या जुर्माना या दोनों सजा हो सकती है. लेकिन जिस तरह से ज्ञानवापी मस्जिद परिसर को लेकर विवाद गहराया है, आने वाले दिनों में यह मुद्दा हल होने की बजाए और उलझता जायेगा.

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