शिवसेना की राजनीतिक हार या उद्धव ठाकरे के रणनीतिकारों की बड़ी गलती? 

मुंबई में आकर शिवसेना को चुनौती देना और 24 घंटे से अधिक समय से लगातार मीडिया की कवरेज बने रहना और वह भी हनुमान चालीसा पढ़ने को लेकर कहीं ना कहीं शिवसेना के राजनीतिक हार साबित हो रहा है.

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Deepak Pandey
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मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे( Photo Credit : फाइल फोटो)

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पिछले 24 घंटे से ज्यादा का वक्त बीत चुका है जब मुंबई के भीतर सियासी ड्रामा चल रहा है. एक निर्दलीय विधायक रवि राणा ने अपने निर्दलीय सांसद पत्नी नवनीत कौर राणा के साथ मुंबई पहुंचकर बाला साहब ठाकरे के निवास स्थान जोकि अब उनके बेटे और मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के निवास स्थान पर हनुमान चालीसा पढ़ने की चुनौती देकर पिछले 24 घंटे से स्थानीय सहित राष्ट्रीय मीडिया की कवरेज अपनी तरफ खींच लिया है. मुंबई में आकर शिवसेना को चुनौती देना और 24 घंटे से अधिक समय से लगातार मीडिया की कवरेज बने रहना और वह भी हनुमान चालीसा पढ़ने को लेकर कहीं ना कहीं शिवसेना के राजनीतिक हार साबित हो रहा है.

जिस तरीके से पिछले कुछ दिनों से हनुमान चालीसा, हिंदुत्व और मस्जिदों पर लाउडस्पीकर लगाने को लेकर महाराष्ट्र के भीतर सियासत शुरू है उसने ना केवल महा विकास आघाडी सरकार में शामिल शिवसेना को सकते में ला दिया है बल्कि उसके राजनीतिक भविष्य पर भी सवाल खड़ा कर दिया है.

अब शिवसेना के कार्यकर्ता और नेता के लिए मुसीबत हिंदुत्व वोट बैंक का है. साथ ही रवि राणा और उनकी पत्नी नवनीत कौर राणा द्वारा उद्धव ठाकरे के निवास स्थान मातोश्री के बाहर हनुमान चालीसा पढ़ने के ऐलान के बाद शिवसेना की तरफ से जिस तरीके की प्रतिक्रिया आएगी, उससे कहीं ना कहीं शिवसेना के हिंदुत्व वाजी होने को लेकर पूरे देश भर में एक प्रश्न चिन्ह निर्माण हो गया है. पिछले कुछ महीने से उद्धव ठाकरे को जिस तरीके से दूध के मुद्दे पर घेरा जा रहा है, उससे उद्धव ठाकरे के रणनीतिकारों की असफलता साफ दिखाई पड़ती है, क्योंकि हिंदू हृदय सम्राट बालासाहेब ठाकरे की पार्टी शिवसेना को अब हिंदुत्व साबित करना पड़ रहा है.

सरकार में शामिल होने के बाद शिवसेना या मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की जो भी मजबूरी हो लेकिन हिंदू वोट बैंक को शिवसेना से दूर ले जाने के लिए जिस तरीके से बीजेपी ने रणनीति बनाई और रवि राणा एवं नवनीत राणा ने जिस तरीके से हनुमान चालीसा पढ़ने को लेकर शिवसेना को कटघरे में खड़ा कर दिया है वह शिवसेना की राजनीतिक हार है.

अब दूसरी तरीके से समझ गए बाला साहब ठाकरे के बाद हिंदुत्व की उनकी विरासत को आगे बढ़ाने के लिए बीजेपी ने राजनीतिक तौर पर हाशिए पर चली गई एमएनएस और उनके नेता राज ठाकरे को देने के लिए पूरी रणनीति बनाई. राज ठाकरे ने 2 साल पहले अपने इंजन वाले चुनाव चिह्न से हटकर अपने पार्टी का चुनाव चिन्ह रेल का इंजन से बदलकर शिवाजी महाराज की मुद्रा और भगवा रंग में झंडे को बनाया और उस झंडे को 24 घंटे के भीतर इलेक्शन कमीशन से मंजूरी दिलाई गई. इसके बाद मस्जिदों पर लगने वाले लाउडस्पीकर के मुद्दे पर राज ठाकरे ने ठीक वही भूमिका अख्तियार की जो हमेशा बाला साहब ठाकरे लेते रहे.

इस बार राज ठाकरे की और आक्रामक भूमिका लेते हुए लाउडस्पीकर मस्जिदों से हटाने तक वहां पर मस्जिदों के बाहर हनुमान चालीसा बजाने की भूमिका ने पूरे देश भर में हिंदुओं के भीतर जान फूंक दी और महाराष्ट्र से शुरू हुआ यह विवाद पूरे देश भर में धीरे-धीरे फैलने लगा. काशी से लेकर अयोध्या तक बिहार से लेकर झारखंड तक राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात जगहों पर महाराष्ट्र में राज ठाकरे द्वारा फूंका गया यह भूगोल काम कर गया और देश के भीतर मस्जिदों के ऊपर लगने वाले लाउडस्पीकर पर सियासत गर्म हो गई.

हनुमान जयंती के दिन राज ठाकरे ने ऐलान किया कि वह हनुमान चालीसा का पाठ करके हनुमान जी की आरती करेंगे और वह भी इस बार मुंबई से बाहर पुणे में करेंगे. हिंदुत्व की दौड़ में अपने आप को पीछे महसूस कर रही शिवसेना ने भी हनुमान चालीसा का पाठ शुरू कर दिया. अब तक राज ठाकरे को और बीजेपी को हिंदुत्व ना सिखाने की नसीहत देने वाली शिवसेना के नेता और उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे खुद हनुमान चालीसा का पाठ करके आरती करने के लिए हनुमान जयंती के दिन मुंबई के एक मंदिर में पहुंच गए. 

बात यहीं नहीं खत्म हुई बल्कि अमरावती जिले की विधायक रवि राणा और उनकी सांसद पत्नी नवनीत कौर राणा ने राज्य के संकट को हरने के लिए संकट मोचन हनुमान जी के हनुमान चालीसा का पाठ करने के लिए मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और शिवसेना को आह्वान किया और उन्होंने कहा कि अगर वह हनुमान चालीसा का पाठ नहीं पड़ते हैं तो मातोश्री के बाहर हनुमान चालीसा का पाठ करने के लिए वह खुद आएंगे.

रवि राणा के ऐलान के बाद शिवसेना के तमाम शिवसैनिक मातोश्री के बाहर सड़कों पर उतर गए और रवि राणा के खिलाफ नारे लगाए. साथ ही मुंबई में आने पर उन्हें सबक सिखाने की धमकी दी. महज दो-तीन दिनों बाद ही फिर एक बार रवि राणा और नवनीत राणा ने शनिवार 23 अप्रैल को मातोश्री के बाहर हनुमान चालीसा पढ़ने का ऐलान कर दिया. जिसके बाद पूरे प्रदेश भर में शिवसैनिक रास्ते पर आ गए और मुंबई पहुंचने पर सबक सिखाने तक की धमकी दे डाली. 

लाख धमकियों के बाद रवि राणा और नवनीत राणा मुंबई पहुंच गए और मुंबई में शिवसैनिक उन्हें ढूंढते रह गए. वह अपने खार स्थित घर चले गए. उन्हें रोकने के लिए सैकड़ों की संख्या में शिवसैनिक रेलवे स्टेशनों और एयरपोर्ट के बाहर नंदगिरी गेस्ट हाउस और मातोश्री ढूंढते रह गए, लेकिन रवि राणा सकुशल अपने घर पहुंच गए. जैसे ही रवि राणा के उनके घर पहुंचने की सूचना मिली, सैकड़ों की संख्या में शिव सैनिक उनके घर के बाहर पहुंचकर कीर्तन करने लगे. जिसमें कई बड़े नेता भी सड़कों पर बैठे नजर आए.

दूसरी तरफ मातोश्री पर 22 अप्रैल को ही हजारों की संख्या में शिवसैनिक और शिवसेना के दिग्गज नेता अनिल परब, अनिल देसाई, किशोरी पेडणेकर, सुनील प्रभु, विनायक राऊत, वरुण सरदेसाई सहित कई नेता सड़कों पर मातोश्री की रखवाली करते नजर आए. इसके पहले इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ था कि दो लोगों ने हिंदू हृदय सम्राट बालासाहेब ठाकरे को कभी हिंदुत्व के मुद्दे पर चुनौती दी हो और वह भी मुंबई के बीच, लेकिन इस बार अमरावती से 2 लोगों ने हनुमान चालीसा पढ़ने की चुनौती दी और पूरी की पूरी शिवसेना को सड़क पर लाकर खड़ा कर दिया. हालात यह रहे कि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और उनके बेटे आदित्य ठाकरे जो पिछले कुछ दिनों से व्यक्तिगत बीमा संस्थान मातोश्री छोड़कर मुख्यमंत्री के सरकारी निवास स्थान वर्षा पर थे उनको मातोश्री वापस लौटना पड़ा और वह भी हनुमान चालीसा पढ़ने के मुद्दे पर शिवसेना के लिए एक बड़ी चुनौती से कम नहीं था.

जिस दिन रवि राणा और नवनीत राणा ने हनुमान चालीसा पढ़ने का ऐलान किया, उसी दिन राज्य के मुखिया होने के कारण मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे अगर उन्हें वेलकम करते और हनुमान चालीसा आने के लिए आमंत्रित करते तो शायद राज्य में हालात कुछ अलग होते, लेकिन इस बार हालात कुछ अलग है. जब शिवसेना को इस बार देश में हिंदुत्व के मुद्दे पर दो लोगों ने घेर लिया. 

शिवसेना के लोग भले ही इस बात को अपनी जीत माने कि उन्हें मातोश्री आने से रोक दिया, लेकिन सवाल यह उठता है कि जो नोटिस मुंबई पुलिस ने रवि राणा और नवनीत राणा को मुंबई आने के बाद भी क्या उससे अमरावती में रहते हुए नहीं दिया जा सकता था और अगर अमरावती में ही रवि राणा और नवनीत राणा को रोक दिया गया होता तो महाराष्ट्र की सियासत में पिछले 24 घंटे से अलार्म गाना और नवनीत राणा प्रणाम पूरी शिवसेना नहीं होता और चित्र कुछ दूसरा होता, लेकिन और रणनीतिक तौर पर शिवसेना की जय राजनीतिक हार है कि दो लोगों ने पूरी शिवसेना को सड़क पर खड़ा कर दिया और वह भी मुंबई के भीतर आकर चुनौती देकर.

Source : Abhishek Pandey

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