मां सिर्फ मां होती है चाहे वो ब्याही हो या बिन ब्याही या फिर सिंगल्स मदर्स. हर मां अपने बच्चे को कलेजा से सटा कर दुनियाभर का प्यार उड़ेलती हैं. बचपन में भी रोता हुआ बच्चा मां की गोद और उसके स्तनों को ही खोजता है. पिता अगर छांव देने वाला पेड़ है तो मां उसे सींचने वाली जल के समान है ,जो उस पेड़ और उसके फलों का मीठा और हरा भरा रखती है.
वहीं इस दुनिया को तमाम महापुरुष, ईश्वर, अल्लाह और जीजस जैसे पूज्यनीय शख्स को एक मां ने ही पैदा किया है. शायद इसलिए भी कई धार्मिक किताबों में मां को पूज्यनीय और महान बताया गया है. लेकिन मां की महानता अब बस किताबों तक सीमित हो गई है, तभी तो हम झट से बिन ब्याही मां को हीन भावना से देखते हुए उसकी इज्जत को पूरी दुनिया के सामने नीलाम कर देते हैं.
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आखिर ये संस्कारी समाज कैसे तय करता है कि कौनसी मां पूज्यनीय और कौनसी नहीं? क्या बिन ब्याही मां बच्चे को अपने खून से नहीं सींचती है, क्या उसका छाती का दूध सफेद नहीं होता है तो फिर कैसे लोग उसकी कोख को दागदार और बच्चे को नाजायज बता देते हैं. बिना बाप के मां और उसका बच्चा पूरा क्यों नहीं माना जा सकता है?
मैनें तमाम ऐसी ब्याही मां देखी है जो पति के दगा देने के बाद या साथ छोड़ने पर अपने बच्चे की अच्छी परवरिश में अपनी उम्र झोंक देती है. वहीं मैंने ऐसी ताकतवार मां भी देखी है जो पति के मरने के बाद मजबूती से अपने बच्चों को सश्क्त और स्वाभिमानी बनाती है.
मां को मां बनने के लिए किसी भी पुरुष की जरूरत नहीं होती है तो बिन ब्याही मां पर हाय तौबा करना बंद कर दीजिए. आपकी इस झूठी शान की वजह से ऐसी कई मां और बच्चे गली कूच के क्लीनिक के गंदे बिस्तर और नाले में दम तोड़ रहे हैं.
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खैर छोड़िए! आप तो शादी के बाद भी ऐसी महिलाओं को नहीं छोड़ते है जो कुंवारी मां बनी थी. आज भी कई अभिनेत्री ऐसी है, जिनके जन्मदिन पर लेखनी और हेडलाइन की शुरुआत ही बिन ब्याही मां, कुंवारी मां और शादी से पहले हो गई थी प्रेग्नेंट से होती है. यहां तक शादी के बाद जब औरतें प्रेंग्नेंट होती तो आप उसकी प्रेंग्नेंसी और शादी के महीनों की तारीख मिलाने में जुट जाते हैं या फिर उसके पेट की ऊंचाई नापने लगते हैं.
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बिन ब्याही मां के कोख को दागदार करने के बहाने अधिकत्तर पुरुष अपने अंदर का सच दिखाते हैं. उन्हें लगता है ऐसी लड़कियां एक सड़क पर पड़ी गुड़िया होती है, जिसके साथ खेलने का समाज से सर्टिफिकेट मिला है. तभी तो बिन ब्याही मां और उसके शरीर के अंगों पर जब सरेआम अश्लील शब्दों की बौछार पड़ती है तो हम मुंह को सिले हुए खड़े रहते है. उस समय हम धर्म में मां को लेकर कही गई बातें पूरी तरह भूल जाते हैं.
वैसे पुरुषों के लिए औरत सिर्फ तब तक मां है जब तक वो एक अबोध बालक है. उसके बाद वो जैसे-जैसे मां के आंचल से निकलकर दुनिया में मिलता जाता है तो वहीं औरत अब उसे मात्र एक वस्तु दिखने लगती है. तभी तो जब वो दूसरी तलाकशुदा और विधवा मांओं (Single Mothers) को अपने बीच देख कर लपलपा उठता है. हमारे समाज में सिंगल मदर्स को ऐसा खुला घर समझ लिया जाता है, जहां कोई कभी भी आकर रह सकता है.
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मैंने कई किस्से देखें और सुने है, जहां ऐसी माओं को कई तरह की समस्याओं से जूझना पड़ता है. 16 साल के नाबालिग लड़के से लेकर 60 साल का आदमी तक उससे अपनी तृष्णा मिटाना चाहता है. घर से लेकर बाहर तक ऐसी सिंगल मदर्स परेशानियां झेलकर अपने बच्चों को बड़ा करना पड़ता है.
अगर मां शादीशुदा ही महान होती है तो इन मांओं के साथ ऐसी दशा क्यों होती है, इनपर क्यों तमाम तरह के आरोप प्रत्यारोप लगाए जाते हैं? आपके पास है कोई जवाब, नहीं ना तो फिर या तो मां को महान और देवी बनाना बंद करो या हर तरह की मां का सम्मान करना सीख जाइए.
(ये लेखक के अपने निजी विचार है)
Source : Vineeta Mandal