आज 69वां हिंदी दिवस है. हमारे देश की राजभाषा हिन्दी के बढ़ते दायरे को समझने का ये एक मौका भर है. ये दिन सभी भाषाओं को खुद में शामिल करने वाली और सभी को जोड़ने वाली भाषा हिन्दी की सांस्कृतिक और पारंपरिक विरासत को सहेजकर रखने की चुनौती का एहसास भी कराता है. ये एक ऐसा मौका है, जबकि हिंदी के बढ़ते दायरे और उसके समक्ष पैदा होती रही चुनौतियों पर मंथन होता है. राजभाषा जैसे मुद्दों को लेकर सरकारी नीतियों पर सवाल खड़े होते हैं, लेकिन इन तमाम सवालों के बीच हिंदी का दायरा साल दर साल बढ़ता जा रहा है.
देश में 77 फीसदी लोग समझते हैं हिंदी
आज भारत में भी करीब 77 फीसदी लोग हिंदी बोलते और समझते हैं. दुनियाभर की बात करें तो करीब 50 करोड़ लोग हिंदी बोलते और समझते हैं. दुनिया के 150 से ज्यादा विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाने वाली ये भाषा अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, मॉरीशस जैसे कई देशों के साथ - साथ नेपाल, पाकिस्तान और बांग्लादेश में काफी लोकप्रिय है. साफ है कि हिंदी दुनियाभर की चहेती भाषा है.
बाजार की जरूरत है हिंदी
हिंदी शब्द संस्कृत के सिंधु शब्द का अपभ्रंश माना जाता है. हिंदी का इतिहास वैसे तो करीब 1 हजार साल पुराना बताया जाता है, लेकिन बदलते वक्त में हिंदी भाषा बाजार की जरूरत बन चुकी है. देश का करीब 60 फीसदी बाजार हिंदी बोलने वालों का है. हर कंपनी के विज्ञापन का आधार सिर्फ और सिर्फ हिंदी है. तभी विदेशी कंपनियों के मोबाइल फोन हिंदी में टाइपिंग की सुविधा दे रहे हैं. आज हर 5 में से 1 व्यक्ति इंटरनेट का इस्तेमाल हिंदी में ही करता है और इंटरनेट पर हिंदी सामग्री की खपत में सालाना 90 फीसदी की रफ्तार से तेजी देखने को मिल रही है.
पूरी दुनिया करती है हिंदी को सलाम
10 जनवरी दुनियाभर में विश्व हिन्दी दिवस के तौर पर याद किया जाता है. इसी दिन साल 1975 में नागपुर में पहले विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन किया गया था. करीब 4 दशक पहले हुए इस आयोजन में दुनियाभर के 30 मुल्कों के करीब सवा सौ प्रतिनिधियों ने शिरकत की थी. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी कार्यक्रम में शामिल होकर दुनियाभर में हिन्दी के बढ़ते प्रभाव को सलाम किया था. तब से लेकर अब तक कई देशों में इसका आयोजन हो चुका है. मकसद है हिन्दी भाषियों को आपस में जोड़ना.
संविधान निर्माण के दौरान हिन्दी पर हुआ अनशन!
भारत का संविधान तैयार करने वाली संविधान सभा की 10 दिसंबर 1946 को हुई दूसरी बैठक में ही डॉ. सच्च्दिानंद सिन्हा और आर वी धूलेकर ने भाषा का मुद्दा उठाया. महात्मा गांधी ने भी हिन्दी पर जोर दिया था. मार्च 1947 में मौलिक अधिकारों को लेकर बनी एक उप—कमेटी में हिन्दी पर बात आगे बढ़ी. उधर कांग्रेस की एक बैठक में हिन्दुस्तानी के मुकाबले हिन्दी को राजभाषा बनाने का प्रस्ताव 32 के मुकाबले 63 वोटों से जीत गया. 1948 में मार्च और नवंबर में एक बार फिर भाषा का मुद्दा जोरशोर से उठा. हिन्दी के दायरे के बढ़ाने की मांग पर एक संन्यासिनी के अनशन पर बैठने के चलते पं. नेहरू को के. एम. मुंशी की अगुवाई में एक कमेटी बनानी पड़ी. 12 सितंबर को कमेटी की रिपोर्ट संसद में पेश हुई. हिन्दी को सरकारी कामकाज की भाषा चुना गया. इसी दौरान हिन्दी भाषा पर सेठ गोविंद दास, श्यामा प्रसाद मुखर्जी और मौलाना अबुल कलाम के भाषण यादगार रहे.
Source : Anurag Dixit