हैदराबाद (Hyderbad) में दिशा (परिवर्तित नाम) का गैंगरेप करने वाले आरोपियों का एनकाउंटर हो गया. पुलिस के मुताबिक, आरोपियों को घटनास्थल पर सीन रिक्रिएशन (Scene recreation) के लिए ले जाया गया था लेकिन आरोपी भागने के प्रयास में थे और उन्होंने पुलिस वालों की गन तक छीनने की कोशिश की और आत्मरक्षा में पुलिस वालों को गोली चलानी पड़ी. अब इस घटना के बाद दोनों तरह की ही बातें होने लगी हैं. एक तरफ कुछ लोग ये कह रहे हैं कि दिशा को न्याय मिला है जबकि दूसरी तरफ कुछ लोग ये बोल रहे हैं कि पुलिस को कानून हाथ में लेने का कोई हक नहीं है.
अब समझना होगा कि गलत क्या है और सही क्या है
अगर लीगली देखा जाए तो पुलिस का एनकाउंटर जरूर गलत कहा जा सकता है लेकिन हमको इस मामले में दो बातों का ध्यान रखना चाहिए. पहली बात ये है कि इस एनकाउंटर के बाद जो जनभावनाएं उमड़ के आ रही हैं वो पॉजिटिव हैं यानी कि लोग एनकाउंटर के सपोर्ट में हैं. जबकि दूसरी बात जो ध्यान देने वाली है वो ये है कि पुलिस ने जो बात कही कि आरोपियों ने भागने का प्रयास किया और सूत्रों के मुताबिक ये भी खबर आई कि अपराधियों ने पुलिस वालों की गन भी छीनने की कोशिश की.
अब यहां पर ये ध्यान देना है कि अगर पुलिस एनकाउंटर न करती तो क्या करती क्योंकि मान लीजिए कि अपराधी पुलिस वालों से गन छीन लेते तो पुलिस वालों का क्या होता. क्या ये अपराधी सिर्फ भागते या ये अपराधी पहले पुलिस वालों को मौत के घाट उतारते और फिर भागते. इस मामले में 100 में से 90 फीसदी चांस ये है कि अपराधी पुलिस वालों को मार देते.
पुलिस वालों ने किया हेल्प
हैदराबाद पुलिस वालों ने तो आरोपियों की मदद करने की कोशिश, जी हां, अगर आपको याद हो तो इन आरोपियों के गिरफ्तारी के बाद जेल ले जाते वक्त पुलिस की गाड़ियों पर पथराव किया गया था. अब अगर पुलिस वाले दिन के उजाले में इन अपराधियों को घटनास्थल पर ले जाते तो जनता उग्र हो जाती और घटना काफी बड़ा रूप भी ले सकती थी. इसी वजह से पुलिस वालों ने रात के अंधेरे में इन लोगों को बाहर निकालना सही समझा. लेकिन अपराधी तो अपराधी होता है, उन्होंने भागने का प्रयास किया और मारे गए.
अब जो लोग इन अपराधियों के पक्ष में ह्यूमन राइट का झंडा बुलंद कर खड़े हुए हैं, उन्हें इस बात का भी ध्यान देना चाहिए कि जब अपराधी मारा जाता है तो हम उनके ह्यूमन राइट की बात करते हैं लेकिन जब हमारे जवान शहीद होते हैं तो उनके ह्यूमन राइट की बात कोई नहीं करता. और सबसे बड़ी बात कि अपराधी, अपराधी होता है अगर उसे ह्यूमन राइट की बात की जाएगी तो दिशा के ह्यूमन राइट की बात भी करनी चाहिए और उन्हीं से पूछना चाहिए कि क्या उन्होंने ये घृणित कार्य करने और उसकी बॉडी जलाने से पहले दिशा के ह्यूमन राइट के बारे में सोचा, नहीं.
एक लाइन में कहे तो मुझे नहीं लगता कि अपराधियों का कोई ह्यूमन राइट होता है क्योंकि वो अपराध में एक लेवल ऊपर जा चुके होते हैं, वो ह्यूमन के लेवल से नीचे गिर चुके होते हैं और राक्षस की कैटेगरी में आ चुके होते हैं. याद रखे- No Human Rights for Criminals.
अगर आपको रामायण की कहानी पता है तो ये भी पता होगा कि रावण, सीता माता को अपहरण कर लंका ले गया था लेकिन फिर भी उसने बिना सीता माता की इजाजत के उन्हें हाथ तक नहीं लगाया था. यहां यह भूलना भी तर्कसंगत नहीं होगा कि भगवान राम के साथ वनवास काट रहे लक्ष्मण ने रावण की बहन शूर्पणखा के नाक-कान काट लिए थे. इसका बदला लेने के लिए ही रावण ने सीताजी का अपहरण किया था.
पुलिस वाले बन गए हीरो
एनकाउंटर को अंजाम देने वाले पुलिस वालों को लोगों ने हीरो मान लिया है, लोग उन्हें राखी बांध रहे हैं, मिठाईयां खिला रहे हैं, यहां तक कि उनकी राहों में फूल तक बिछा दिया जा रहा है. सिंपल सी बात है कि गणतंत्र में जो भी होगा वो जनता के हित में होना चाहिए. अगर जनता किसी बात को पसंद करती है तो वही सही है. अगर जनता ने इन पुलिस वालों को सुपरकॉप हीरो बना लिया है तो सही ही है.आखिरकार कब तक रोज न्यूज चैनलों पर और पेपर में पढ़ते रहेंगे कि इस जगह पर इस लड़की के साथ गैंगरेप किया गया. और सबसे बड़ी बात ये है कि क्या इस रेप जैसा इंसिडेंट कभी आप किसी अपने के साथ सोच सकते हैं, अगर सोचिएगा भी तो आपकी रुह कांप जाएगी, इसलिए जो हुआ है वो ठीक है.
ऐसे एनकाउंटर को लीगल करने की मांग उठने लगी
बीजेपी की ओर से लॉकेट चटर्जी ने एक बड़ी बात कही है कि इस तरह के एनकाउंटर्स को लीगल बना देना चाहिए. इस बात पर चिराग पासवान ने एक ट्वीट किया है उसे जोड़ना जरूरी है. चिराग पासवान ने अपने ट्वीट ने कहा है कि ''ज़रूरत है निर्भया व अन्य सभी ऐसे जघन्य अपराध के दोषियों को भी जल्द फाँसी देने की. हैदराबाद एंकाउंटर के बाद देश में ख़ुशी की लहर इस बात को भी दर्शाती है की मौजूदा क़ानून और न्याय व्यवस्था पर्याप्त नहीं है ।यह कह सकते है की जनता का विश्वास न्याय पालिका पर कम हो गया है।''
असल बात हमारी व्यवस्था तो अच्छी है, हमारे संविधान में कड़े नियम बनाए तो गए हैं लेकिन लूप होल्स भी छोड़े जाते हैं और लोग इन्हीं लूप होल्स का इस्तेमाल करते हैं. जरूरत ये है कि ऐसा एग्जामपल सेट किया जाए कि दुबारा कोई ऐसा करने से पहले भी 100 बार सोचे.
क्या परवरिश की है कमी
आखिर कहां से पैदा होते हैं रेपिस्ट? अगर इस बात पर गौर से सोचा जाए तो लोग परवरिश को सबसे पहले कठघरे में खड़ा कर देते हैं, हो भी सकता है और नहीं भी. क्योंकि भारत एक ऐसा देश है जहां हम दुर्गा और सीता की पूजा करते हैं. तो कमी कहां रह जा रही है. कमी है हमारे एजुकेशन सिस्टम में जहां हम आज भी सेक्स एजुकेशन को स्किप करने की कोशिश में लगे रहते हैं और इससे भी बड़ी बात एजुकेट लोगों की.
घर से करें शुरूआत
दूसरे अपने-अपने बच्चों के मासूम मन में उनके बचपने से ही यह सोच भर दें कि लड़कियां सिर्फ एक 'उसी काम' के लिए नहीं बनी हैं. वह सिर्फ कहने के लिए बराबर नहीं हैं, बल्कि सच में बराबर हैं. इसके लिए आपको घर से शुरुआत करनी होगी और लड़कियों से कहना बंद करना होगा...'भईया से तुलना मत करो. तुम अंधेरा होने से पहले घर आ जाना'. इसके साथ ही अपने लड़कों से यह कहना शुरू करना होगा...'तुम भी अंधेरा होने से पहले घर लौट आना. जमाना खराब है. कहीं ऐसा न हो कि तुम्हारी सोच भी बदल जाए और तुम किसी मासूम को अपने पुरुषोचित्त दंभ से परिचित कराने लगो'.
इन थोड़े कम पढ़ पाए लोगों को आसानी से मिल रहे पोर्न साइट्स भी बढ़ावा देते हैं. हालांकि भारत सरकार ने पोर्न साइटों को बैन कर दिया है लेकिन लोगों ने इसका तोड़ निकाल दिया है.
मीडिया से भी हुई बड़ी गलती
सुप्रीम कोर्ट के कड़े निर्देश के बाद भी मीडिया में लड़की का नाम आ गया. ये सबसे बड़ी मिस्टेक कही जा सकती है. क्योंकि आप किसी लड़की की नाम पब्लिक कर रहे हैं. हो न हो ऐसा करने से अगर रेप पीड़िता बच भी गई है तो उसे अपनी आगे कि जिंदगी जीने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ेगा. फिलहाल उम्मीद की जा सकती है कि आगे से मीडिया ऐसी गलती नहीं करेगा और इन संवेदनशील मुद्दों पर सतर्कता बरतेगा.
क्या सही है फैसला ऑन द स्पॉट
हैदराबाद एनकाउंटर के बाद देश में जो लहर है उसे देखकर तो यही लगता है कि अगर रेप करने वाला आरोपी ये मान रहा है तो उसका फैसला ऑन द स्पॉट होना चाहिए लेकिन इस बात पर भी पूरी सतर्कता बरतनी चाहिए कि लड़की ने गलत तरीके से न फंसाया हो.
देश में क्या है लहर
इस एनकाउंटर के बाद पूरे देश में खुशी की लहर है, भले ही ये गलत है फिर भी इस एनकाउंटर को लोगों की जनभावना मिली है. जो लोग इसके विरोध में खड़े भी हैं वो भी इस एनकाउंटर पर कड़े शब्दों का प्रयोग करने से बच रहे हैं क्योंकि वो जानते हैं कि कहीं न कहीं उन्हें भी पता है, ये ठीक ही हुआ है. लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि मैं इस तरह के एनकाउंटर को बढ़ावा देने की बात कर रहा हूं.
मैं बस ये कह रहा हूं कि न्याय मिले तो इतनी देरी में न मिले कि उसका कोई मतलब ही ना रह जाए, जैसा कि निर्भया के केस में देखा जा सकता है, 12 दिसंबर 2012 का निर्भया कांड और आज भी दोषी भारत की हवा में सांस ले रहे हैं. उम्मीद है कि लोग इस एनकाउंटर से सबक लेंगे और आगे से निर्भया और दिशा जैसा कोई कांड नहीं सुनने को मिलेगा.
अंत में बस यही कि जन भावना ही देश की सोच है, जो जनता के लिए सही है वही न्याय है, वही कानून है.
Source : विकास कुमार