10 साल पहले न तो मैं उस गृहमंत्री के साथ था और न ही आज इस गृहमंत्री के साथ हूं. उस समय गृहमंत्री पी चिदंबरम थे और जांच एजेंसियां अमित शाह के पीछे पड़ीं थीं. आज गृहमंत्री अमित शाह हैं और जांच एजेंसियों ने पूर्व गृहमंत्री पी चिदंबरम को तिहाड़ भिजवा दिया. इन दोनों घटनाओं का मैं गवाह हूं. लोग मुझे भले ही शक्तिशाली कहते हों, लेकिन मुझसे बेबस और लाचार कौन हो सकता है. मैं समय हूं. सच पूछो तो इंसान के कर्म और करम उसे महान और बलवान बनाते हैं.
हस्तिनापुर में चाहे द्रौपदी का चीरहरण हो या लाक्षागृह में पांडवों को मार डालने की साजिश. या फिर कुरुक्षेत्र में महाभारत में खेत होते एक से बढ़कर एक योद्धा. अगर मैं बलवान होता , सर्वशक्तिमान होता तो यह रोक सकता था. मैं तो सिर्फ मूक दर्शक की तरह हूं. मैं न तो किसी के खिलाफ रहता हूं और न ही किसी के साथ. मैं तो एक चक्र में बंधा हूं.
10 साल बाद मैं फिर उसी राह से गुजर रहा हूं. बस भूमिकाएं बदली हैं. चेहरे वही हैं.
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10 साल पहले अमित शाह को जेल जाते हुए भी देख रहा था और आज तिहाड़ में कैद चिदंबरम को भी देख रहा हूं. तब अमित शाह के पीछे सारी एजेंसियां थीं और आज चिदंबरम के पीछे. लोग कहते हैं यह मेरा खेल है. मैं कभी नहीं खेलता, न तो किसी की भावनाओं से और न ही किसी के भाग्य से. ये आप यानी इस धरती के मानव हैं जो सत्ता मिलते ही ताकतवर हो जाते हैं. मैं तब भी सीबीआई को तोता बनते देखा था और आज भी उसे बाज बनते देख रहा हूं. न तो मैंने उसे तोता बनाया और न ही बाज.
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मैं तो दर्शक बनकर देख रहा था. तब शाह कांग्रेस सरकार पर आरोप लगा रहे थे और चिदंबरम बीजेपी पर. सोहराबुद्दीन का एनकाउंटर भी मेरे सामने ही हुआ और आईएनएक्स मीडिया केस में घोटाला भी. लेकिन कितना बेबस हूं मैं. प्रत्यक्षदर्शी होते हुए भी मैं दोषियों के खिलाफ न तो गवाही दे सकता हूं और न ही सजा और आप लोग कहते हैं कि मैं बलवान हूं.
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मेरे सामने ही तो अमित शाह जेल गए थे. 3 महीने बाद हाईकोर्ट से सशर्त जमानत मिली तो शाह के चेहरे पर थोड़ी शिकन मैंने भी देखी थी. दो साल के लिए उन्हें गुजरात छोड़ने की शर्त रखी गई थी इस जमानत में. लेकिन चिदंबरम अभी हिरासत में ही हैं. यह मैं भी नहीं जानता कि उनकी दिवाली तिहाड़ में मनेगी या घर.
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दो साल से पहले ही सुप्रीम कोर्ट से शाह को गुजरात जाने की इजाजत मिली तब लोगों का कहना था कि अमित शाह का समय फिर रहा है. भइया मैं कभी नहीं फिरता, मैं उसी चक्र में बंधा हूं. इससे न तो बाहर न ही अंदर हूं.
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गुजरात में घुसते समय अमित शाह जब कह रहे थे कि मेरा पानी उतरते देख किनारे पर कहीं घर न बना लेना, समंदर हूं फिर लौट कर आउंगा. आखिरकार शाह सोहराबुद्दीन एनकांटर केस से बरी हुए तो कोर्ट के अंदर और बाहर दोनों जगह मै मौजूद था. इस समय मैं चिदंबरम की जेल की कोठरी भी देख रहा हूं और शाह का रौला भी. लेकिन मैं इतना जरूर कहूंगा न तब मैं उनके साथ था और न आज हूं. इंसान के कर्म और करम ही उसके साथ होते हैं.
( ये लेखक के अपने निजी विचार हैं, इससे NewsState.com को कोई लेना देना है)
Source : दृगराज मद्धेशिया