विश्लेषण: भारतीय कृषि गंभीर संकट से गुजर रही है, मोदी सरकार का RCEP से बाहर होना स्वागतयोग्य कदम

भारत ने क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) में शामिल नहीं होने का फैसला किया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का RECP पर हस्ताक्षर नहीं करने का निर्णय एक स्वागत योग्य कदम है.

author-image
nitu pandey
New Update
विश्लेषण: भारतीय कृषि गंभीर संकट से गुजर रही है, मोदी सरकार का RCEP से बाहर होना स्वागतयोग्य कदम

पीएम नरेंद्र मोदी( Photo Credit : फाइल फोटो)

Advertisment

भारत ने आसियान क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) समझौते में शामिल नहीं होने का फैसला किया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आरईसीपी पर हस्ताक्षर नहीं करने का निर्णय एक स्वागत योग्य कदम है, क्योंकि भारत अभी तक दुनिया के सबसे बड़े व्यापारिक ब्लॉक में शामिल होने योग्‍य नहीं बन पाया है. भले ही यह क्षेत्र भारत के अनुकूल बाजार पहुंच से वंचित हो. आरईसीपी (RECP) आसियान सदस्यों (ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलिपिंस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम) और उनके पांच एफटीए साझेदारों (ऑस्ट्रेलिया, चीन, जापान, न्यूजीलैंड और दक्षिण कोरिया) के बीच एशिया-प्रशांत क्षेत्र में एक मुक्त व्यापार समझौता है.

यह साफ है कि सरकार की प्रमुख चिंता यह थी कि आरईसीपी (RECP) का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. अर्थव्‍यवस्‍था में हालिया गिरावट भी इनमें से एक है. लगभग सभी आर्थिक सूचक नीचे हैं. भारत में, विनिर्माण उद्योग संघों, सेवा क्षेत्र और किसान संगठनों ने समझौते पर हस्ताक्षर करने के किसी भी कदम का विरोध किया था. भारतीय कृषि कई तरह की परेशानियों से गुजर रही है. इसे विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने के लिए सही तरह की नीतियों और बहुत सारे फंड की जरूरत है. हम अभी भी कई देशों की तुलना में खेती और डेयरी क्षेत्र में बहुत पीछे हैं. भारत उनके साथ खुले बाजार में प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकता है.

सफल नहीं रहा मेक इन इंडिया 

इसी प्रकार, भारत निर्माण क्षेत्र में चीन के आसपास भी नजर नहीं आ रहा है. मोदी सरकार ने पिछले कार्यकाल में अपनी महत्वाकांक्षी 'मेक इन इंडिया' पहल की शुरुआत की. हालांकि, इसने वांछित परिणाम नहीं दिए. सबसे अधिक, भारतीय कंपनियों ने उन मोबाइल फोन को सबसे ज्यादा असेंबल किया जो चीन में बने हुए थे. केवल ब्रांडिंग भारतीय थे.

इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि चीन के साथ 70 अरब डॉलर का व्यापार घाटा है. चीन से जो हम खरीदते हैं वह मुख्य रूप से उच्च तकनीकी इलेक्ट्रॉनिक और इंजीनियरिंग सामान है, जबकि हम मुख्य रूप से कच्चे माल का निर्यात करते हैं.

निवेश के लिए अनुकूल माहौल बनाए भारत 

ऐसी स्थिति में भारत के लिए वास्तविक खतरा चीन के डंपिंग माल हैं. अगर भारत ने आरईसीपी पर हस्ताक्षर किए तो घरेलू कंपनियों को बचाना सबसे बड़ी चुनौती होगी. अगर भारत मैन्युफैक्चरिंग हब बनना चाहता है तो सरकार को निवेश के लिए अनुकूल वातावरण बनाना होगा. वास्तविक विनिर्माण (मैन्युफैक्चरिंग) के लिए मजबूत अनुसंधान एवं विकास की आवश्यकता होती है. सरकार को चीन से सीख लेनी होगी जो वैश्विक दिग्गजों के साथ संयुक्त उपक्रम के जरिए विनिर्माण केंद्र (मैन्युफैक्चरिंग हब) बन गया.

सबसे पहले चीन ने विदेशी प्रौद्योगिकी दिग्गजों जैसे अल्काटेल, नोकिया, एरिक्सन को वहां पर अपनी विनिर्माण इकाइयां स्थापित करना अनिवार्य कर दिया, जो चीनी दूरसंचार ऑपरेटरों को आपूर्ति करना चाहते थे. जब वहां के मैनपावर पूरी तरह चीजें सीख गई तो चीन ने अनुसंधान और विकास पर ध्यान केंद्रित किया और परिणामस्वरूप हुआवेई (Huawei) और जेडटीई (ZTE) जैसे वैश्विक दिग्गज वहां से पैदा हुए.

वैश्विक इकोनोमिक सुपर पावर बनने के सपने के साथ आगे बढ़े भारत 

कुशल और अर्द्ध-कुशल श्रमिकों की आवाजाही जैसी सेवाओं से संबंधित प्रावधान भारत के अनुकूल नहीं हैं. यह महत्वपूर्ण है कि सभी राष्ट्र, सदस्य देशों के अंदर कार्यबल के मुक्त आवागमन के लिए सहमत हों. कुल मिलाकर RECP से बाहर निकलना अच्छा निर्णय था. जो भी हो वास्तविकता यही है कि भारत को दूसरे महत्वपूर्ण समूह से जुड़ने के लिए तैयार होना चाहिए और अपनी क्षमता और दक्षता को विस्तार देना चाहिए. वैश्विक इकोनोमिक सुपर पावर बनने की जो आकांक्षा है यह तभी पूरा कर सकता है.

Source : Manoj Gairola

PM modi Narendra Modi china RECP ChinaTrade
Advertisment
Advertisment
Advertisment