मोदी 2.0 सरकार चीन-पाकिस्तान के गठजोड़ को समझे, दोस्ती की आड़ में धोखा न हो जाए

बीजिंग भारत से दोस्ती का हाथ मिलाते हुए पाकिस्तान की पीठ थपथपाना जारी रखेगा और भारत को उसी के घर में घेरे रखने में सफल रहेगा. 'राष्ट्रभक्ति' को तरजीह देने वाली मोदी सरकार और उसके हितैषिय़ों के लिए यह एक बड़ी चुनौती है.

author-image
Nihar Saxena
New Update
Imran Khan Xi jinping

पाकिस्तान से चीन की दोस्ती कहीं भारी न पड़ जाए भारत को.( Photo Credit : न्यूज स्टेट)

Advertisment

अपने नववर्ष की शुरुआत के कुछ ही दिनों में चीन ने जाहिर कर दिया है कि उसके भारत विरोधी रुख में रत्ती भर भी बदलाव आने वाला नहीं. वह पाकिस्तान की आड़ में भारत विरोधी अपने इरादों को अमलीजामा पहनाता रहेगा. इसके साथ ही पाकिस्तान के साथ चीन का कूटनीतिक और सैन्य सहयोग भी और प्रगाढ़ ही होता रहेगा. जाहिर है इन सबके साथ भारत के साथ बीजिंग के दिखावे वाले संबंध 'नए परवान' चढ़ते रहेंगे. इसके अतिरिक्त पाकिस्तान को समर्थन और सहयोग करने की अपनी प्रवृत्ति की आड़ में बीजिंग व्यावसायिक हितों को धमकी के साथ भारत पर थोपता भी रहेगा. जैसा हाल ही में उसने हुआवी और 5जी के ट्रायल के मामले में किया है. ऐसे में अब जब भारत शंघाई कॉपरेशन समिट का आयोजन करने जा रहा है, तो देश के नीति नियंताओं के लिए चीनी हितों की काट ढूंढ़ने का अवसर कहीं तेजी से सामने आ रहा है.

चीनी इरादों को समझें
चीन के इरादों को समझने के लिए उसके सिर्फ तीन हालिया कदमों को समझना भर होगा. सबसे पहले महज पांच महीनों के भीतर ही चीन ने तीसरी बार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का सत्र कश्मीर मसले पर चर्चा के लिए बुला लिया. हालांकि उसके इरादों पर अमेरिका, फ्रांस और रूस ने पानी फेर दिया. पहली बार ही ब्रिटेन भी भारत के समर्थन में आया. संभवतः ब्रिटेन की नीतियों में यह बेहद नाटकीय बदलाव था. अन्यथा कश्मीर मसले पर चीन लगातार पाकिस्तान को परोक्ष समर्थन देता आ रहा है. बीजिंग आगे नहीं देगा यह सोचना भी बेमानी है. दूसरा चीन इसी साल तिब्बत में पहली बार बेहद बड़े पैमाने पर सैन्य अभ्यास करने जा रहा है. चीनी मीडिया में कहा गया है कि इस सैन्य अभ्यास में बेहद ऊंचाई पर काम आने वाले सैन्य हथियारों और उपकरणों समेत तकनीक इस्तेमाल में लाई जाएंगी. यहां यह भूलना नहीं चाहिए कि तिब्बत सैन्य क्षेत्र सीधे-सीधे सेंट्रल मिलिट्री कमीशन (सीएससी) के तहत आता है, जिस पर सीधा नियंत्रण चीनी राष्ट्रपति जी जिनपिंग के पास है.

यह भी पढ़ेंः दिल्ली के मटिया महल विधानसभा में चुनावी सभा में पहुंचे अमित शाह, कांग्रेस पर बोला हमला

पाक-चीन संयुक्त सैन्य अभ्यास के मायने
तीसरा बड़ा कारण है अरब सागर में पाकिस्तान के साथ 'सी गार्डियन' के नाम से संयुक्त सैन्य अभ्यास. 6 जनवरी को किए गए इस सैन्य अभ्यास में युद्धकाल के दौरान इस्तेमाल में लाए जाने वाले हवाई सुरक्षा तंत्र, मिसाइल रोधी तकनीक, पनडुब्बी रोधी क्षमता सरीखी रणनीति को भी अमल में लाया गया. इसमें पीएलए की दक्षिणी थिएटर कमांड ने अपने खास तौर-तरीको का भी प्रदर्शन किया. इस सैन्य अभ्यास को चीनी नौसेना ने किसी तीसरे देश के खिलाफ नहीं करने की औपचारिक बात तक कही. यह अलग बात है कि भारतीय सामरिक विशेषज्ञ इसे सीधे-सीधे भारत के खिलाफ उसके शक्ति प्रदर्शन से जोड़कर देख रहे हैं. वास्तव में हवाई और नौसैनिक सैन्य अभ्यास भारत के खिलाफ ही था और यह जताने के लिए था कि बीजिंग अपने सदाबहार दोस्त पाकिस्तान के लिए किसी भी हद तक जाएगा. चीनी मीडिया में आए अन्य वक्तव्य भी जाहिर कर रहे हैं पाक-चीन सैन्य सहयोग आने वाले दिनों में और प्रगाढ़ ही होगा.

पाकिस्तान के 'रोमांच' को सराहा था बीजिंग ने
यहां यह नहीं भूलना चाहिए कि पुलवामा में आत्मघाती हमले के बाद भारत ने बालाकोट स्थित पाकिस्तान समर्थित आतंकी कैंपों पर सर्जिकल स्ट्राइक की थी. इसकी प्रतिक्रियास्वरूप पाकिस्तानी वायुसेना के कुछ विमानों ने भी भारतीय हवाई सीमा पार करने की जुर्रत की थी. उस वक्त चीनी मीडिया में चीन निर्मित जेएच 7 जेट एयरक्राफ्ट की जबर्दस्त प्रशंसा की गई थी. मीडिया में कहा गया था कि इन विमानों से पाकिस्तान की वायु क्षमता और धारदार हो सकती है. साथ ही पाकिस्तान को इनकी आपूर्ति की भी बात मीडिया में सामने आई थी. एक संकेत यह भी था कि बीजिंग अपनी वायुसेना के जेएच-7 जेट विमानों को चीन-पाकिस्तान सीमा पर भी तैनात कर सकता है. ताकि भविष्य में बालाकोट सरीखी स्थितियां सामने आने पर लड़ाकू विमानों के बेड़े को पाकिस्तान को उपलब्ध कराया जा सके. इन विमानों को दक्षिण जिनजियांग सैन्य क्षेत्र में तैनात करने की बात कही गई थी, जिस पर लद्दाख और पीओके अधिगृहित कश्मीर समेत गिलगित-बाल्टिस्तान के मोर्चे पर निगाह रखने की जिम्मेदारी है. यहीं से चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) की सुरक्षा कमान संभाली जाती है.

यह भी पढ़ेंः MNS के झंडे का रंग बदला, राज ठाकरे बोले- देश से इन मुसलमानों को बाहर निकालने होंगे, तभी...

सीपीईसी है चीन की कमजोर कड़ी
सीपीईसी की घोषणा 2015 अप्रैल में की गई थी. उसके बाद से ही बीजिंग भारत पर लगातार पाकिस्तान से संबंध सुधारने का दबाव बनाए हुए है. चीन भारत पर अधिकारिक और ट्रैक 1.5 और 2 वार्ता के जरिए कश्मीर समेत सभी विवादास्पद मुद्दों को हल करने की वकालत कर रहा है. चीन का साफ-साफ कहना है कि पाकिस्तान से संबंध सुधारने के बाद ही भारत बीजिंग से संबंधों को नई दशा-दिशा के बारे में सोच सकता है. जाहिर ही सीपीईसी बीजिंग का एक बड़ा दांव है. सीपीईसी की कुल लागत 49 बिलियन डॉलर आंकी गई है. हाल ही में पाकिस्तान ने भी सीपीईसी को 64 बिलियन डॉलर का करार बताया है. ऐसे में चीन नहीं चाहेगा कि पाकिस्तान से विवाद का असर उसकी इस महत्वाकांक्षी परियोजना पर पड़े. यही वजह रही है कि कश्मीर मसले का जिक्र करते हुए चीन ने यूएनएससी के प्रावधानों का उल्लेख किया था.

एससीओ भारत पर दबाव का अवसर
ऐसी स्थितियों में शंघाई कॉपरेशन ऑर्गेनाइजेशन (एससीओ) की समिट का आयोजन कर भारत एक तरह से बीजिंग को दबाव बनाने का एक अवसर और प्रदान कर रहा है. इस बार चीन भारतीय मीडिया, सिविल सोसाइटी और अन्य के जरिए भारत को पाकिस्तान और कश्मीर पर नरमी बरतने का दबाव बना सकता है. इस खतरे को समझना होगा और इसी के अनुरूप चीन को जवाब देने की कूटनीतिक और सामरिक पहल मोदी 2.0 सरकार को करनी होगी. अन्यथा बीजिंग भारत से दोस्ती का हाथ मिलाते हुए पाकिस्तान की पीठ थपथपाना जारी रखेगा और भारत को उसी के घर में घेरे रखने में सफल रहेगा. 'राष्ट्रभक्ति' को तरजीह देने वाली मोदी सरकार और उसके हितैषिय़ों के लिए यह एक बड़ी चुनौती है, जिससे पार पाना हर हाल में जरूरी है. खासकर यदि भारत 2025 तक पांच बिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था समेत खुद को वैश्विक मंच पर मजबूती से स्थान दिलाना चाहता है तो.

HIGHLIGHTS

  • चीन ने जाहिर कर दिया है कि उसके भारत विरोधी रुख में रत्ती भर भी बदलाव आने वाला नहीं.
  • चीन के इरादों को समझने के लिए उसके सिर्फ तीन हालिया कदमों को समझना भर होगा.
  • एससीओ के जरिये भारत को पाकिस्तान और कश्मीर पर नरमी बरतने का दबाव बना सकता है.
PM Narendra Modi imran-khan Xi Jinping SCO Modi 2.0 Sarkar
Advertisment
Advertisment
Advertisment