अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस के रूप में 29 जुलाई को मनाया जाता है. पूरा विश्व इस दिन बाघों के संरक्षण के लिए अपनी प्रतिबद्धता जाहिर करता है, लेकिन मध्य प्रदेश इस मामले में एकदम अनूठा स्टेटस रखता है. बाघ यहां के भौगोलिक और सामाजिक ताने-बाने का अभिन्न अंग बन चुके हैं. टाइगर स्टेट के नाम से मशहूर मध्य प्रदेश बाघों के लिए हर लिहाज से सबसे फ्रेंडली स्टेट माना जाता है. आंकड़ों पर नज़र डालें तो देश भर में सबसे ज़्यादा बाघों की संख्या मध्य प्रदेश में ही है.
इसके साथ ही देश में ऐसी कोई राजधानी नहीं, जहां बाघों की संख्या इतनी ज्यादा हो, और वो इंसानों से फ्रेंडली भी हों, लेकिन भोपाल में ना सिर्फ बाघों की तादाद ज्यादा है, बल्कि माहौल भी एकदम दोस्ताना है. दोस्ती भी ऐसी कि आमना-सामना भी हो जाए, तो इंसानों को कोई खतरा नहीं. ये किसी अचंभे से कम नहीं कि शहर के आसपास करीब 40 बाघों का मूवमेंट है. किसी भी शहरी इलाके के करीब इतनी बड़ी संख्या में बाघों की मौजूदगी और इंसानी बसावट में परस्पर सामंजस्य अपने आप में आश्चर्यचकित करने वाला है.
बाघ इंसानों की बस्ती में आते रहे हैं, फिर भी 15 साल में कोई जनहानि नहीं हुई. भोपाल के कलियासोत, केरवा, समरधा, अमोनी और भानपुर के दायरे में 13 रेसीडेंशियल बाघों का बसेरा है. इन बाघों का जन्म ही इन्हीं इलाकों में हुआ, यहां की आबोहवा से ये इतने वाकिफ हो चुके हैं कि अब ये कहीं जाना नहीं चाहते. बाघिन T-123 का तो पूरा कुनबा ही यहीं है, इनमें से कई बाघ दबंग और खूंखार भी हैं, बावजूद इसके आज तक इनसे इंसानों को कोई नुकसान नहीं हुआ. सही मायने में कहें तो भोपाल के बाघ भी इंसानों के बीच रहने के आदी हो चुके हैं.
जानकारों की नज़र में मध्य प्रदेश के जंगल बाघों को खूब रास आते हैं. यहां का वातावरण बाघों के प्रजनन के अनुकूल माना जाता है और शायद इसीलिए मध्य प्रदेश में बाघों की संख्या हर साल बढ़ती रही है.
2019 की गणना के मुताबिक देश में 2967 बाघ हैं, इनमें से सबसे अधिक बाघ मध्य प्रदेश में ही हैं. प्रदेश में 6 टाइगर रिजर्व हैं, कान्हा में 118, बांधवगढ़ में 115, पन्ना में 70, पेंच में 60, सतपुड़ा में 50 और संजय डुबरी में 25 से अधिक बाघ हैं. ताजा गणना में ये आंकड़ा बढ़ भी सकता है. रातापानी में तो बाघों का बसेरा ही है, और इसीलिए तो मध्य प्रदेश टाइगर स्टेट भी है. वैसे मध्य प्रदेश यूं ही टाइगर स्टेट नहीं है, इसके पीछे कई ऐसे प्रयास हैं, जिनकी वजह से ये तमगा मिला है.
दिन-रात की मेहनत, बाघों के संरक्षण के प्रति प्रतिबद्धता और एक्सपर्ट्स के साथ मिलकर सतत प्रयास, इसकी बानगी भर हैं. इसके लिए मात्र सरकार या वन विभाग ही नहीं बल्कि स्थानीय लोगों समेत पूरे तंत्र की भागीदारी जरूरी है.
बाघों के संरक्षण और संवर्धन के लिए ना सिर्फ सरकार सक्रिय रहती है, बल्कि वन विभाग का अमला भी नित नए प्रयोग करता रहा है, जिससे कि बाघों को कोई दिक्कत ना हो और उनकी संख्या बढ़ती रहे.
मध्य प्रदेश में वन विभाग की ओर से जो कदम उठाए गए, उन पर गौर करें तो, बफर जोन से इंसानों को हटाया गया, लोगों को विस्थापित कर बसाया गया. साथ ही साथ निगरानी के लिए आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है और समय समय पर बाघों को लेकर जागरुकता अभियान भी चलाया जाता है. जंगल के पास रहने वालों का भी वन्य प्राणियों से लगाव है, उनके सहयोग से प्राकृतिक रास्तों को बचाने पर काम हो रहा है, ताकि बाघ एक से दूसरे जंगल में जा सकें. मध्य प्रदेश के लिए ये गर्व की बात है कि प्रदेश में बाघों के संरक्षण और प्रबंधन की चर्चा विदेशों में भी हो रही है.
कई अन्य देश भी मध्य प्रदेश के फॉर्मूले को अपना रहे हैं, ताकि वहां भी बाघों की संख्या बढ़ सके. जंगलों और बाघों के संरक्षण के प्रयासों के साथ ही साथ शिकारियों पर भी शिकंजा कसने की जरूरत है जो जंगलों में दिन-रात घात लगाए बैठे रहते हैं, जिससे जंगल में जानवर बेखौफ होकर घूम सकें और टाइगर स्टेट में टाइगर्स का दबदबा इसी तरह कायम रहे.
Source : Hemant Vashisth