निर्भया के गुनहगारों (nirbhya convicts) को तीसरी बार सांसों की मोहलत मिली है. तीसरी बार इनके डेथ वारंट पर रोक लगी है. कोर्ट ने मामले पर सुनवाई करते हुए अगले आदेश तक अपना फैसला सुरक्षित कर लिया है. निर्भया की मां सात सालों अपनी बेटी को इंसाफ दिलाने का इंतजार कर रही है. हर बार जब वो अदलात जाती हैं तो मन में एक उम्मीद रहती है कि आज उनकी बेटी को न्याय मिलेगा. लेकिन हर बार उनकी उम्मीद टूटती है. फिर भी वो हार नहीं मान रही हैं. एक मजबूत मां की तरह हर बार गिरती हैं और उठती हैं.
हमारी न्याय व्यवस्था में कितनी छेद है वो धीरे-धीरे सामने आ रहे हैं. इसके लिए दोषियों के वकील एपी सिंह का शुक्रिया अदा करना चाहिए कि वो इसे सामने ला रहे हैं. अपने मुवक्किल को बचाने के लिए वो हर उस पैतरे को आजमा रहे हैं जो हमारे कानून व्यवस्था को कमजोर करती है. कभी दया याचिका के नाम पर तो कभी क्यूरेटिव याचिका ने नाम पर फांसी की सजा को टालने की कोशिश की जा रही है. सवाल यह है कि आखिर कब तक गुहगार पैंतरे आजमा कर बचाते रहेंगे. कब तक कोई परिवार इंसान की आस लगाए बैठेगा.
एक कहावत है कि न्याय में देरी न्याय से वंचित करना है. ये सिर्फ निर्भया के मामले में ही नहीं ऐसे कई और मामले होते हैं जहां वक्त पर पीड़ित को इंसाफ नहीं मिलता . क्योंकि सिस्टम में मौजूद विकल्प का इस्तेमाल करके दोषियों को बचाने की कोशिश की जाती है. इसका जिक्र राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने खुद किया. माउंट आबू में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ब्रह्माकुमारीज संस्थान में बोलते हुए खुद कहा था कि जो अपराधी पॉक्सो एक्ट के तहत आते हैं उन्हें दया याचिका के अधिकार से वंचित कर दिया जाना चाहिए.
उन्होंने कहा कि इस प्रकार के जो अपराधी होते हैं उन्हें संविधान में एक दया याचिका का अधिकार दिया गया है. मैंने कहा है कि आप इस पर पुर्निविचार करिए. मतलब रामनाथ कोविंद भी कहते हैं कि कानून में जो खामियां है उसे दूर करने के लिए पुर्निविचार करना चाहिए. कानून में बदलाव को लेकर कई मंत्री पहले भी बोल चुके हैं.
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निर्भया कांड जब हुआ तो विरोध प्रदर्शन के बाद पॉस्को कानून बनाया गया. लेकिन उस वक्त ये नहीं पता था कि कानून में कई खामियां है जिसकी वजह से पॉस्को एक्ट के दोषी भी खुद को बचाने की जुगत लगा सकते हैं.
निर्भया की मां आशा देवी (Asha devi) आज खुद बोली कि वो हारी नहीं है और ना ही हार मानेंगी. लेकिन उन्होंने कहा कि अदालत को दोषियों को फांसी देने के अपने आदेश पर अमल करने में इतना समय क्यों लग रहा है? डेथ वारंट जारी होने के बाद बार-बार इसे स्थगित करना हमारे सिस्टम की विफलता को दर्शाता है. हमारा पूरा सिस्टम अपराधियों का समर्थन करता है.
अगर ऐसा ही चलता रहा तो हैदराबाद में जो हुआ वो फिर से दोहराया जाने लगेगा. हैदराबाद में रेप और हत्या के आरोप में जो चार लोग पकड़े गए थे. उनका एनकाउंटर कर दिया गया था. पुलिस ने घटना वाले जगह पर ले जाकर उनका एनकाउंटर कर दिया. जिसके बाद लोगों ने निर्भया के दोषियों के लिए भी यहां करने को कहा.
निर्भया को इंसाफ मिलते हर कोई देखना चाहता है. लेकिन कानून में मौजूद विकल्प का इस्तेमाल करते दोषियों की सजा को टाला जा रहा है. कानपुर में लड़कियों को इस बात से इतना गुस्सा आया कि उन्होंने आरोपियों के पोस्टर पर जूतों की झड़ी लगा दी. वो इस कदर नाराज थी कि अगर उनके सामने चारों दोषी आ जाए तो उन्हें गोली मार दें. यहीं नहीं छात्रों ने कहा कि सजा हैदराबाद की तर्ज पर होनी चाहिए. अब वक्त आ गया है कोर्ट कचहरी के चक्कर में तारीख पे तारीख तारीख पे तारीख मिलती ऐसे तो लगता है कि जीवन भर उनको फांसी नहीं हो पाएगी.
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न्याय के लिए सालों का इंतजार अब लोगों को बेचैन करने लगी है. वो चाहते हैं कि जघन्य अपराध में शामिल दोषियों को तुरंत सजा दी जाए. अगर सीधे रस्ते से नहीं तो फिर टेढ़े रस्ते से. जरा सोचिए अगर हम हैदराबाद एनकाउंटर को सही ठहराने लगे तो फिर क्या होगा. जंगल न्याय की तरफ लोग बढ़ने लगे.
वक्त है कि कानून में जो खामियां है उसे दूर किया जाए. सरकार इसपर विचार करे और उन तमाम खामियों को खत्म करने के लिए संशोधन करे जिसको हथियार बनाकर दोषी बचने की कोशिश करते हैं.
Source : Nitu Kumari