उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में 36 प्रतिशत वोट पाने वाली सपा और उसके घटक दल अब नाराज होकर समाजवादी पार्टी से दूर जा रहे हैं. इसकी वजह से 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर सपा की लड़ाई कमजोर होती दिखाई दे रही है. कांग्रेस, बीएसपी और अन्य गठबंधन दलों से हाथ मिलाने के बाद भी लगातार चार चुनाव हारने के बाद सपा का काम कैसे चलेगा? क्या अखिलेश यादव का स्वभाव इसका दोषी है या घटक दल अपना मतलब साध रहे हैं, ये बड़ा सवाल है?
याद करिये 2022 के अखिलेश की रथयात्रा की भीड़ और तस्वीर को देखकर लहा कि 2022 का चुनाव टक्कर का होगा पर नतीजा ने जोर का झटका धीमे से नहीं बल्कि बहुत तेज़ दिया. सपा और गठबंधन 125 तक ही पहुंच पाए. हार की पहली बागवत की शुरुआत चाचा शिवपाल ने शुरू की. टिकट बंटवारे से लेकर रणनीति में कमी तक बताया और फिर कई मौकों पर ना बुलाने से नाराज़ शिवपाल ने राष्ट्रपति चुनाव में बीजेपी के डिनर में शामिल होने पर अपना रास्ता भी अखिलेश से अलग ही कर लिया है.
महान दल ने विधान परिषद के सीट में अपनी सीट नहीं देखी तो गठबंधन से हट गए. सपा ने उनसे गाड़ी भी ले लिया. इस झटके के बाद सुभासपा के ओमप्रकाश राजभर ने तो अखिलेश के नाम पर पूरी पाठशाला खोल ली. कभी ट्विटर से हटने की बात कही तो कभी AC की ठंडक से जमीनी मेहनत करने की सलाह दी. कभी तो उन्होंने कहा कि अखिलेश के न आने के कारण उपचुनाव हारा. अब राष्ट्रपति के चुनाव में डिनर पार्टी में क्या गए कि बैठक के बाद ही अलग होना तय माना जा रहा है.
तीन अहम पार्टी की रार से गठबंधन में दरार साफ है. अब टूटने की खबरें आना बाकी है. बीजेपी कहती है कि हार का चौका लगा चुके अखिलेश अपने व्यवहार और अहंकार से सबका साथ और सबका विकास के बीजेपी के नारे के उलट अपने साथियों को अलग कर रहे हैं.
Source : Alok Pandey