हाल ही में केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने दावा किया कि मुल्क में नक्सलवाद अब सिर्फ 10 से 11 जिलों तक बचा है. तो क्या यह चुनाव के मद्देनजर नक्सलवाद को कमतर दिखाने की कोशिश है या वाकई नक्सलवाद अब खत्म हो चुका है? विपक्ष भले सवाल खड़े करे लेकिन आंकड़ें बताते हैं कि बीते सालों में नक्सलवाद पर लगाम लगी है.
क्या यही थी आंदोलन की वजह?
वैसे 1967 में पश्चिम बंगाल के नक्सलवाड़ी से शुरू हुए नक्सलवाद को लेकर बीते सालों में जब 'रेड कॉरीडोर' का खुलासा हुआ तो देश की सुरक्षा पर बड़े सवाल हुए. 1999 से 2016 तक नक्सली हिंसा में मुल्क में 13,000 जानें गईं, इनमें 3000 नक्सली भी थे!
तो क्या 60 के दशक में शुरू हुए नक्सली आंदोलन का मकसद ये हिंसा ही थी? 2014 में सरकार ने संसद में बताया कि नक्सलियों की सालाना कमाई 140 करोड़ है! तो क्या ये अवैध कमाई ही नक्सली आंदोलन का बुनियादी मकसद था?
सुरक्षा पर भी सियासत क्यों?
इन नक्सलियों को 2009 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बताया था लेकिन 2018 में कांग्रेस नेता राजबब्बर इन्हें क्रांतिकारी बता रहे हैं! बीते दिनों पुणे पुलिस कुछ लोगों पर एक्शन लिया तो अर्बन नक्सल के मुद्दे पर सियासत तेज हो गई.
विपक्ष ने आरोप लगाया कि सरकार गरीबों-आदिवासियों के लिए काम करने वालों की आवाज को दबा रही है. ये अलग बात है कि अक्टूबर 2009 में तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री पी. चिदंबरम ने नक्सलियों के पक्ष में खड़े होने वाले बुद्धिजीवियों पर जमकर हमला बोला था.
तो क्या नक्सलवाद जैसे संवेदनशील मुद्दे पर भी राजनेता सियासत के सुविधानुसार बयान बदलते हैं. बयानों में ऐसा ही विरोधाभास भाजपा का दिखता रहा है. सवाल यह भी कि क्या वाकई मुल्क से नक्सलवाद खत्म हो रहा है? अगर हां तो अर्बन नक्सल पर बवाल क्यों?
क्या वाकई नक्सलियों से निपटने के लिए केन्द्र और राज्य सरकारें गंभीर हैं? सूबों की पुलिस तैयार हैं? इसी मुद्दे पर देखिए बड़ी बहस 'इंडिया बोले', अनुराग दीक्षित के साथ इस सोमवार शाम 6 बजे सिर्फ न्यूज़ नेशन पर.
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Source : Anurag Dixit