कहते हैं जब कामयाबी मिलती है तो जिंदगी में कुछ कर गुजरने की हसरत और जवां हो जाती है. शोहरत के रथ पर सवार होकर मुश्किल से मुश्किल मंजिल भी आसान हो जाती है. पर दंगल और सीक्रेट सुपरस्टार फेम ज़ायरा वसीम की जिंदगी के सफर में इसका ठीक उल्टा हो गया. सिर्फ दो फिल्मों से देश की धड़कन बन चुकी ज़ायरा ने बॉलीवुड को अंतिम सलाम कर दिया है.
बॉलीवुड छोड़ने पर ज़ायरा ने लिखा
कामयाबी के अर्श पर पहुंच चुकीं ज़ायरा ने अचानक फिल्म इंडस्ट्री छोड़ने का ऐलान कर बॉलीवुड समेत अपने लाखों फैन्स को हैरान कर दिया है. ज़ायरा ने सोशल मीडिया पर अपने फैसले की जानकारी देते हुए कहा है कि फिल्मों में अदाकारी उनकी इबादत के आड़े आ रही थी. उनका फिल्मी करियर उन्हें उनके मजहब से दूर कर रहा था इसलिए उन्होंने ये कदम उठाया है. ज़ायरा ने इंस्टाग्राम पर बॉलीवुड छोड़ने को लेकर लिखा है.
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'फिल्मों में काम करते हुए मेरे मजहब के साथ मेरा संबंध खतरे में पड़ गया है. हालांकि मैं लगातार इसकी अनदेखी करती आ रही थी. मुझे लगता था सब ठीक है और मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा, पर मेरी जिंदगी से सारी बरकत खत्म हो गईं. बरकत का मतलब सिर्फ खुशियों, उपलब्धियों और आशीर्वाद से नहीं है, ये जिंदगी के स्थायित्व से जुड़ा है जिसके लिए मैं लगातार कड़ा संघर्ष करती रही हूं.'
वो क्या चीज है जिससे बेजार हुईं ज़ायरा
सवाल है कि सिर्फ 17 साल की उम्र में बॉलीवुड में अपनी ऐक्टिंग से तहलका मचाने वाली ज़ायरा वसीम ने ये फैसला क्यों किया. फिल्मों में काम करते हुए कैसे खतरे में पड़ गया जायरा का मजहब. किस बरकत की बात कर रही हैं ज़ायरा. उन्हें इतनी छोटी उम्र में ऐसी कामयाबी मिली, इतना प्यार मिला, कई बड़े अवॉर्ड मिले, इतनी बड़ी फैन फॉलोविंग मिली. पैसा, शोहरत, सक्सेस, सब कुछ तो मिला. फिर वो क्या चीज है जिसने ज़ायरा को बॉलीवुड से बेजार कर दिया. इस बारे में ज़ायरा वसीम ने लिखा है, '5 साल पहले मैंने एक ऐसा फैसला लिया था जिसने मेरी जिंदगी बदल दी. मैंने बॉलीवुड में कदम रखा जिसने शोहरत के रास्ते मेरे लिए खोल दिए. धीरे-धीरे युवाओं के रोल मॉडल के तौर पर मुझे देखा जाने लगा. बॉलीवुड में 5 साल पूरे होने पर मैं इतना कहना चाहती हूं कि मैं अपने काम से खुश नहीं हूं. मैं भले यहां फिट हो रही हूं लेकिन मैं यहां की नहीं हूं. यह मुझे मेरे ईमान से दूर कर रहा है.'
ज़ायरा का बॉलीवुड छोड़ना मुस्लिम होने की वजह
ज़ायरा ने अपने लंबे इंस्टाग्राम पोस्ट में बार बार मजहब, ईमान और बरकत जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया है. लेकिन कहीं भी ऐसी कोई वजह नहीं लिखी जिससे ये पता चले कि आखिर उन्होंने बॉलीवुड छोड़ने का फैसला क्यों किया. क्या इसकी वजह उनका मुस्लिम होना है. क्या मजहब उनकी एक्टिंग के आड़े आ रहा था. क्या बुर्कापरस्त कठमुल्लों के दबाव में ज़ायरा ने ये कदम उठाया. कई मौलवी और इस्लामिक विद्वान जायरा के फैसले को सही ठहरा रहे हैं.
ज़ायरा ने जब बाल कटवाए तब हुआ था विरोध
इसमें कोई शक नहीं कि जब से ज़ायरा ने फिल्मों में कदम रखा था तभी से कई कट्टरपंथी उनका विरोध कर रहे थे. आमिर खान की फिल्म दंगल में जब ज़ायरा ने सीन के मुताबिक अपने बाल छोटे करवाए तब भी मुस्लिम कठमुल्लों ने इसे इस्लाम के खिलाफ बताया था. फिर जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के साथ तस्वीरें खिंचवाने के बाद तो ज़ायरा को जान से मारने की धमकियां मिलने लगी थीं, जिसके चलते जायरा को सोशल मीडिया पर माफी मांगते हुए पोस्ट लिखनी पड़ी थी. आशंका जताई जा रही है कि शायद इसी विरोध और धमकियों की वजह से ज़ायरा ने बॉलीवुड छोड़ा है. जायरा की इंस्टाग्राम पोस्ट का ये हिस्सा पढ़िए.
ज़ायरा का इंस्टाग्राम पर झलका दर्द
'मेरी ये यात्रा काफी थकाने वाली रही. इन पांच सालों में मैं अपनी अंतरात्मा से लड़ती रही, छोटी सी जिंदगी में इतनी लंबी लड़ाई नहीं लड़ सकती, इसलिए मैं इस फील्ड से अपना रिश्ता तोड़ रही हूं. मैंने बहुत सोच-समझकर ये फैसला किया है.'
ज़ायरा का कही समर्थन तो कही असमर्थन के बोल
हालांकि ज़ायरा ने अपनी पोस्ट में कहीं भी किसी तरह के दबाव की बात नहीं लिखी है. पर उन्हें क्यों और किससे लड़ना पड़ रहा है, इसका भी कोई जिक्र नहीं है. शायद उसी दबाव के चलते जिससे उनका परिवार भी गुजरता रहा है, ज़ायरा ने बॉलीवुड को बाय-बाय कर दिया.
ज़ायरा के इस हैरान करने वाले फैसले से बॉलीवुड भी सकते में है, पर जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने जायरा के फैसले का समर्थन किया है. उन्होंने ट्विटर पर लिखा है.
'जायरा जो भी करें उसपर सवाल उठाने वाले हम कौन होते हैं? मैं उन्हें शुभकामनाएं देता हूं और उम्मीद करता हूं कि वह जो भी करें, उन्हें खुशी दे.'
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लेकिन जानी मानी मुस्लिम लेखिका तस्लीमा नसरीन ने जायरा के फैसले पर हैरानी जताई है. उन्होंने ट्वीट किया है.
'बॉलीवुड की प्रतिभाशाली अभिनेत्री जायरा वसीम अब अभिनय छोड़ना चाहती हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि उनका फिल्मी करियर अल्लाह की इबादत के आड़े आ रहा है. यह बेवकूफी भरा फैसला है. मुस्लिम समुदाय में कई लोगों की प्रतिभा जबरन बुर्के के अंधेरे में धकेल दी जाती है.'
जाहिर है ज़ायरा के फैसले पर मुस्लिम समुदाय भी दो हिस्सों में बंटा हुआ है. बेशक अगर ये ज़ायरा का आजाद फैसला है तो किसी को इस पर कोई ऐतराज नहीं होना चाहिए. लेकिन अगर इस फैसले की वजह कोई मजबूरी या दबाव है, तो इसे कतई जायज नहीं कहा जा सकता.
16 साल में शौक चढ़ा परवान, 19 में तोड़ा दम
16 साल की उम्र में फिल्मी दुनिया में कदम रखा और 19 साल की उम्र में सिल्वर स्क्रीन से संन्यास ले लिया. इन तीन सालों में कभी नफरत के तो कभी वहशत के ज़ायरा को कई बड़े जख्म झेलने पड़े. बोर्ड एक्जाम में 92 परसेंट मार्क्स लाकर पूरे कश्मीर का नाम रोशन करने वाली ज़ायरा की जिंदगी ने क्या क्या सितम सहे, इसकी फेहरिस्त कापी लंबी है.
फ्लाइट में ज़ायरा के साथ हुई थी बदसलूकी
करीब डेढ़ साल पुराने उस वीडियो का मजमून आज भी सबके जहन में जिंदा है जिसमें रोती हुईं ज़ायरा अपने साथ हुई ज्यादती का दर्द बयां कर रही हैं. उस वीडियो में ज़ायरा ने आरोप लगाया था कि फ्लाइट में उनके साथ एक शख्स ने बदतमीजी की और शिकायत करने के बाद भी एयरलाइंस वालों ने कोई कार्रवाई नहीं की.
वो घटना दिसंबर 2017 की है जब ज़ायरा वसीम दिल्ली से मुंबई जा रही थीं. आरोप है कि रास्ते में उनकी सीट के पीछे बैठे शख्स ने उन्हें बैड टच किया और फ्लाइट के क्रू मेंबर्स से शिकायत करने के बावजूद उन्होंने कुछ नहीं किया. उसके बाद उन्होंने मुंबई पहुंचकर उस शख्स का वीडियो और फोटो अपने इंस्टाग्राम पर शेयर किया.
हालांकि ये मामला मीडिया में उछला तो एयरलाइंस ने माफी मांगी और पुलिस में शिकायत के बाद आरोपी शख्स को गिरफ्तार भी किया गया. छेड़छाड़ की घटना के वक्त ज़ायरा की उम्र सिर्फ 17 साल थी. इसलिए आरोपी पर धारा 354 के साथ पॉक्सो ऐक्ट भी लगाया गया. जब मुंबई के दिंडोशी सेशन कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई, तो पुलिस के कई समन के बावजूद ज़ायरा कोर्ट में हाजिर नहीं हुईं. उसके बाद सेशन कोर्ट ने जायरा को समन जारी कर हाजिर होने को कहा.
ज़ायरा के साथ खड़े नजर आए थे क्रिकेटर इरफान पठान
उस घटना के बाद एक तरफ जहां बॉलीवुड समेत कई महिला संगठन ज़ायरा के समर्थन में खड़े हुए तो दूसरी ओर ज़ायरा को ट्रोल करने वालों की भी कमी नहीं थी. ज़ायरा के खिलाफ लिखने वालों का कहना था कि ज़ायरा सेलेब्रिटी होने का फायदा उठा रही हैं और पुलिस एकतरफा कार्रवाई कर रही है. इस पर क्रिकेटर इरफान पठान ने नाराज होकर तब ट्वीट किया था.उन्होंने कहा, 'एक लड़की को विमान में छेड़ा गया और लोग उसका देश और धर्म देख रहे हैं. हमारी सोच जैसी बन रही है, वह मुझे चौंका देती है.'
ज़ायरा को फिल्मों में काम करने को लेकर भी कट्टरपंथियों ने विरोध किया. दरअसल ज़ायरा वसीम कश्मीर से आती हैं, इसलिए वो हमेशा से कश्मीरी कट्टरपंथी और मुस्लिम चरमपंथियों के निशाने पर रही हैं.
मुफ्ती ने ज़ायरा को कश्मीरी बताया था रोड मॉडल
साल 2017 में कट्टरपंथियों ने ज़ायरा पर फिर हमला बोला. इस बार मामला था जम्मू कश्मीर की तत्कालीन मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती से मुलाकात का. दरअसल महबूबा मुफ्ती ने इस मुलाकात के दौरान ज़ायरा को कश्मीरी रोड मॉडल बताया था जिसके बाद मुस्लिम कट्टरपंथियों ने गदर काट दिया. ज़ायरा को फिर जान से मारने की धमकियां मिलने लगीं. ज़ायरा ने सोशल मीडिया पर माफी मांगते हुए एक पोस्ट लिखी. बाद में ज़ायरा ने पोस्ट डिलीट कर दी पर तब तक मामले ने तूल पकड़ लिया.
क्या कट्टरपंथियों के विरोध की वजह से ज़ायरा ने बॉलीवुड से रिश्ता तोड़ा
साफ है कश्मीरी कठमुल्लों को जायरा की अदाकारी हमेशा से चुभती रही है. पर सवाल है कि क्या कट्टरपंथियों के विरोध की वजह से ज़ायरा ने बॉलीवुड से रिश्ता तोड़ लिया या इसके पीछे कोई दूसरी वजह भी है. इसके लिए ज़ायरा के बचपन की हकीकत को समझना जरूरी है. दरअसल ज़ायरा काफी कम उम्र से ही डिप्रेशन की मरीज रही हैं और ये बात उन्होंने खुद सोशल मीडिया पर लिखी है, 'मुझे पहला अटैक उन्हें 12 साल की उम्र में आया था. मुझे अनगिनत पैनिक अटैक आते थे, मैं अनगिनत दवाइयां खाती थी जो कि मैं अभी भी खाती हूं.'
ज़ायरा बचपन से ही डिप्रेशन की शिकार रहीं
ज़ायरा ने पोस्ट लिखकर ये कबूल किया कि वो बचपन से ही डिप्रेशन की शिकार रहीं. पर डर या झिझक की वजह से कभी ये बात खुलकर नहीं कही, और कही भी तो किसी ने यकीन नहीं किया. ज़ायरा ने इस बारे में लिखा.
'हमारे समाज में डिप्रेशन को लेकर गलत धारणा की वजह मैं हमेशा से डिप्रेशन की बात करने से झिझकती रही. लोगों को ये लगता है कि डिप्रेशन की परेशानी के लिए "मैं बहुत छोटी हूं.' मुझे इस बात पर यकीन नहीं होता था कि दुनिया में करीब साढ़े तीन करोड़ लोगों की उम्र और मर्जी जाने बिना डिप्रेशन उन्हें अपनी चपेट में ले लेता हैं और मैं खुद भी इस बीमारी से जूझ रही हैं.'
ज़ायरा हर दिन पांच एंटी डिप्रेशन गोलियां खाती थीं
ज़ायरा के मुताबिक डिप्रेशन का ये दौर उनके लिए बेहद तकलीफ भरा रहा. इस दौरान उन्होंने काफी दवाइयां खायीं और कई बार अस्पताल के भी चक्कर लगाने पड़े, जिससे उनकी जिंदगी बुरी तरह प्रभावित हुई.ज़ायरा ने लिखा.'हर दिन करीब पांच एंटी डिप्रेशन गोलियां खाना, आधी रात को अटैक आने पर अस्पताल भागना, हर समय खालीपन महसूस करना, कभी जरूरत से ज्यादा खाना तो कभी भूखे रहना, शरीर में दर्द, आत्महत्या के ख्याल' ये सभी डिप्रेशन के दिनों में आम बात थी. उन मुश्किल दिनों ने मेरी जिन्दगी को हर तरीके से प्रभावित किया था. उन दिनों मेरा अपने दिमाग पर कोई कंट्रोल नहीं रहता था.'
ज़ायरा का कहना है कि वो अभी भी डिप्रेशन की दवा लेती हैं. तो क्या ज़ायरा के बॉलीवुड छोड़ने के पीछे डिप्रेशन का भी हाथ हो सकता है. दावे से कुछ भी कहना मुश्किल है, क्योंकि डिप्रेशन के दौर से गुजरने के बाद ही उन्होंने दंगल और सीक्रेट सुपरस्टार जैसी फिल्मों ने लाजवाब अभिनय किया. फरहान अख्तर के साथ उनकी आने वाली फिल्म 'स्काई इज पिंक' की भी खासी चर्चा है.
बॉलीवुड में मुस्लिम अदाकाराओं को लेकर कैसा नजरिया रहा
कला का कोई धर्म नहीं होता. सच्चा कलाकार कभी मजहबी नहीं हो सकता. पर ज़ायरा के बॉलीवुड छोड़ने को लेकर कयासों का दौर जारी है. कोई इसे मुस्लिम कट्टरपंथियों का दबाव बता रहा है तो किसी का कहना है कि ज़ायरा को फिल्म इंडस्ट्री में मुस्लिम होने की कीमत चुकानी पड़ी. लेकिन बॉलीवुड पर ऐसा आरोप लगाने से पहले उसके सेकुलर इतिहास को समझना पड़ेगा. खासकर मुस्लिम अदाकाराओं को लेकर बॉलीवुड का कैसा नजरिया रहा है, वो जान जरूरी है.
कैटरीना कैफ को धार्मिक पहचान को लेकर बॉलीवुड में नहीं हुई कोई परेशानी
कैटरीना कैफ की पहचान और शख्सियत के बारे में भला कौन नहीं जानता. खूबसूरती और अदाकारी दोनों में बेमिसाल. अब ये भी जान लीजिए कि कैटरीना के पिता भी कश्मीरी मुसलमान हैं. उनका नाम है मोहम्मद कैफ. हालांकि कैटरीना बहुत छोटी थी तभी उनके माता पिता अलग हो गए. कैटरीना की परवरिश उनकी ब्रिटिश मां सुजैन ने की. पर कश्मीरी मुस्लिम पिता की संतान होते हुए भी कैटरीना को कम से कम अपनी धार्मिक पहचान को लेकर तो बॉलीवुड में कभी कोई परेशानी नहीं हुई.
हुमा कुरैशी ने तोड़ी सारी बंदिशें
गैंग्स ऑफ वासेपुर फेम हुमा कुरैशी की बात करें तो इनकी धार्मिक पहचान भी बताने की जरूरत नहीं. मुस्लिम अदाकारा होते हुए भी इनकी ब्यूटी और ऐक्टिंग के कॉकटेल ने लाखों फैन्स को दीवाना बना रखा है. 'बदलापुर', 'जॉली एलएलबी' और 'एक थी डायन' जैसी कई ऐसी फिल्में हैं जो उनकी मजहबी पहचान की वजह से नहीं बल्कि अदाकारी की काबिलियत की वजह से सुर्खियों में रहीं.
ज़रीन खान की शख्सियत भी मजहबी बंदिशों से परे
ज़रीन खान की शख्सियत भी मजहबी बंदिशों से परे है. 'वीर', 'रेडी', 'हाउसफुल 2' और 'हेट स्टोरी 3' जैसी दर्जन भर फिल्में कर चुकी हैं. पर जाति या धर्म के आधार पर इनके साथ कोई भेदभाव हुआ हो, ऐसा एक भी वाकया नहीं.
ऐसे एक दो नहीं दर्जनों मुस्लिम चेहरे हैं, जिन्होंने बॉलीवुड को और जिन्हें बॉलीवुड ने गले से लगाया. फिर चाहे वो सना खान हों या माहिरा खान. हुमैमा मलिक हों या सबा कमर. बॉलीवुड में आने के बाद सबकी एक ही पहचान बन गई. अभिनेत्री होने की पहचान.
दीया मिर्जा ने फिल्मी दीवानों का दिल जीता
ऐसा आज से नहीं सालों से, दशकों से होता आया है. नब्बे के दशक में दीया मिर्जा ने फिल्मी दीवानों का दिल जीता. सैफ की बहन सोहा अली खान ने सबको अपना मुरीद बनाया. तब्बू यानी तबस्सुम फातिमा को भला कौन भूल सकता है, जिन्होंने कमर्शियल और रियलिस्टिक दोनों तरह की फिल्मों में सालों तक अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया और अभी भी उनके लाखों फैंस हैं.
शबाना आजमी तो दशकों तक बनी रही आईकॉन
थोड़ा और पीछे जाएं तो सत्तर और अस्सी का दशक भी मुस्लिम अदाकाराओं के हुनर से भरा पड़ा है. शबाना आजमी तो एक अरसे तक आर्ट फिल्मों का सबसे बड़ा आईकॉन बनी रहीं. कमर्शियल फिल्मों में भी उनका कमाल सबने देखा और महसूस किया पर उन्हें कभी नहीं लगा कि फिल्मों में फिरकापरस्ती है.
जीनत अमान और परवीन बॉबी ने तोड़ी हर सीमा
इसी तरह ब्यूटी क्वीन जीनत अमान हों या स्टालिश अदाकारा परवीन बॉबी. बॉलीवुड समेत पूरे देश ने उन्हें सिर आंखों पर बिठाया. रीना रॉय की धार्मिक पहचान भी मुस्लिम हैं पर उन्हें भी फिल्मी परदे पर कभी किसी धार्मिक भेदभाव की शिकायत नहीं हुई.
50-60 के दशक में मुस्लिम अदाकाराओं ने जीता था दिल
अब पचास और साठ के दशक की फिल्म इंडस्ट्री की मुस्लिम अदाकारों को भी याद कर लीजिए. ट्रेजडी क्वीन के नाम से मशहूर मीना कुमारी हों, मोनालिसा की तरह स्माइली ब्यूटी मधुबाला हों या फिर ब्यूटी और ऐक्टिंग की बेजोड़ संगम नरगिस. मुस्लिम होते हुए भी हिंदुस्तान के हर दिल में बसते हैं ये चेहरे. वहीदा रहमान की सादगी और सुंदरता की मिसाल तो आज भी दी जाती है.
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लब्बोलुआब ये कि अलग अलग दौर में सियासी और सामाजिक हालात चाहे जैसे भी रहे हों. पर बॉलीवुड ऐसे किसी भी मजहबी उन्माद से हमेशा आजाद रहा है. यही बॉलीवुड की सबसे खास पहचान भी है.
तो फिर सवाल यही है कि फिल्मों में जिंदगी की हर जंग लड़कर जीतने वाली 'धाकड़ गर्ल' ने रियल लाइफ में सरेंडर क्यों कर दिया. इस सवाल पर सीक्रेट सुपरस्टार में ज़ायरा पर फिल्माए उस गाने की पंक्तियां याद आती हैं:-
"कोई ये बता दे मैं हूं कहां
कोई तो बता दे मेरा पता
सही है कि नहीं मेरी ये डगर
लूं कि नहीं मैं अपना ये सफर
डर लगता है सपनों से कर दे न ये तबाह
डर लगता है कि अपनों से दे दे ना ये दगा
मै चांद हूं या दाग हूं मैं राख हूं या आग हूं
मैं बूंद हूं या हूं लहर
मैं हूं सुकूं या हूं कहर"