मास्टरस्ट्रोक जड़ने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कोई जवाब नहीं खासतौर पर ऐसे मौकों पर जबकि लोग मस्ती में अलमस्त होते हैं उस वक्त पर पीएम मोदी की ख़ास नज़र होती है. साल 2019 का पहला दिन नए साल के पहले दिन हर कोई मौज-मस्ती के मूड में होता है. लेकिन 2019 तो चुनावी साल है. सबसे बड़ी सियासी जंग का साल है और ऐसे मौके पर प्रधानमंत्री मोदी ने चल दिया मास्टरस्ट्रोक. राम मंदिर को लेकर पूरे देश में एक माहौल है। ये माहौल मंदिर के पक्ष में भी है, मंदिर को लेकर हो रही सियासत के इर्द-गिर्द भी है. ऐसे में पीएम मोदी ने अपने सबसे लंबे 95 मिनट के भाषण में ना सिर्फ लोकसभा चुनाव की सबसे बड़ी लड़ाई का बिगुल फूंक दिया बल्कि राममंदिर पर भी अपनी दो टूक राय पूरे देश के सामने रखकर अपना दांव चल दिया है.
मोदी का ये दांव सही मायने में मास्टरस्ट्रोक ही साबित होगा या फिर मोदी हिट विकेट हो जाएंगे इसके नतीजे तो मई में ही सामने आएंगे. फिलहाल ये समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर जिस राममंदिर को लेकर बीजेपी 1990 से राजनीति कर रही है और हर चुनाव में मुद्दा बना रही है उस पर पीएम मोदी ने सीधा और सपाट जवाब देकर कौन सा मास्टरस्ट्रोक खेला है.
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प्रधानमंत्री मोदी ने लोकसभा चुनाव के संभावित सबसे बड़े मुद्दे राम मंदिर पर दो टूक बोल दिया दिया कि अध्यादेश तबतक नहीं जब तक कोर्ट की प्रक्रिया चल रही है. आरएसएस, विश्व हिंदू परिषद से लेकर तमाम साधु-संत सरकार से अध्यादेश की मांग कर रहे थे, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर को प्राथमिकता में रखने से इनकार कर दिया है.
सुप्रीम कोर्ट के रुख को देखते हुए भगवा ब्रिगेड ने मोदी सरकार पर दवाब बनाना शुरू कर दिया कि सरकार संसद से कानून बनाकर अयोध्या में राम मंदिर का रास्ता साफ करे. मीडिया से लेकर समाज के हर तबके में इस पर जोरदार बहस लंबे समय से चल रही थी, लेकिन पीएम मोदी अबतक ख़ामोश थे.
आखिरकार साल के पहले दिन उन्होंने धमाकेदार इंटरव्यू में दो टूक लहजे में साफ कर दिया कि सरकार फिलहाल कोई अध्यादेश लाने नहीं जा रही.
मोदी ने टाला सुप्रीम कोर्ट से सीधा टकराव
प्रधानमंत्री ने राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले अध्यादेश ना लाने की बात कर ये सीधा संदेश दिया है कि वो सुप्रीम कोर्ट से सीधा टकराव नहीं चाहते. वैसे भी संविधान के दायरे में ये टकराव वाजिब भी नहीं है, संभव भी नहीं है. मोदी सरकार पहले ही ज्यूडिशियरी पर दबाव को लेकर आरोपों से घिरी है. सुप्रीम कोर्ट के चार-चार जजों के खुलेआम मीडिया के सामने आने के बाद से ही सरकार ऐसे आरोपों से घिरी है. संवैधानिक, लोकतांत्रिक और भारत के सांस्कृतिक ताने-बाने के मुताबिक भी राम मंदिर पर अध्यादेश सही कदम नहीं माना जा सकता.
पीएम मोदी को अहसास है कि अगर संघ और भगवा ब्रिगेड के दबाव में अगर अध्यादेश आता है तो सबसे पहले तो ये समाज में ही बड़ी हलचल को न्योता दे सकता है, जिसे थामना फिर किसी के बूते में नहीं होगा. ऐसी सूरत में अध्यादेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया जा सकता है, जहां अध्यादेश के खिलाफ फैसला आने की संभावना ज्यादा होती यानी एक हारी हुई बाजी मोदी कभी खेल नहीं सकते.
आरएसएस और भगवा ब्रिगेड को मोदी का कड़ा संदेश
ऐसा लगता है कि फिलहाल अध्यादेश ना लाने की बात कहकर पीएम मोदी ने आरएसएस को भी एक संदेश देने की कोशिश की है. लंबे समय से इस तरह की ख़बरें चर्चा में हैं कि संघ अब प्रधानमंत्री मोदी से पूरी तरह खुश नहीं है। कई बार तो ये चर्चा गडकरी को प्रधानमंत्री बनाने तक जा पहुंचती है. ये चर्चाएं बेमानी भी नहीं लगती हैं जब आरएसएस ने पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को अपने मंच पर बुलाया उस वक्त भी सियासी रणनीतिकार इसे पीएम मोदी की रीति-नीति से अलग आरएसएस की धारा के रूप में देख रहे थे.
संघ प्रमुख मोहन भागवत खुले मंच से कांग्रेस के पुराने नेताओं की तारीफ कर चुके हैं, कांग्रेस मुक्त भारत के पीएम मोदी के बयानों से उलट बयान दे चुके हैं. संघ भी मोदी सरकार के आखिरी साल में लगातार दबाव बना रहा है कि सरकार किसी भी तरह अयोध्या में राम मंदिर का रास्ता निकाले.
पीएम मोदी के इंटरव्यू के फौरन बाद संघ ने फिर दोहराया कि मंदिर तो हर हाल में चाहिए. संत समाज भी फिलहाल नाराज़ दिख रहा है. उसका कहना है कि जब राम मंदिर पर फैसला कोर्ट को ही करना है तो फिर बीजेपी राम मंदिर के नाम पर वोट क्यों मांगती है.
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संत समाज का कहना है कि मोदी को प्रचंड बहुमत राम मंदिर के लिए ही मिला था. ऐसा नहीं कि पीएम मोदी को संत समाज औ संघ की प्रतिक्रिया का अहसास नहीं है, फिरभी उन्होंने संघ की सोच से अलग बयान दिया है तो माना यही जा रहा है कि पीएम मोदी संघ को भी संदेश देना चाहते हैं कि भारत सरकार एकतरफा एजेंडा लागू नहीं कर सकती.रास्ता बीच का ही निकाला जा सकता है, जहां संविधान, वोटर और विचारधारा सबको सम्मान मिलता रहे.
पीएम मोदी इस चुनाव में संघ के उम्मीदवार के तौर पर नहीं खुद अपनी 5 साल की पारी की बुनियाद पर उतरना चाहते हैं. वैसे भी 2013 में जब नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया था, उस वक्त भी ये खुद मोदी के अपने प्रयासों का नतीजा था, बीजेपी में उस वक्त भी उनका तगडा विरोध हुआ था। इस बार शायद पीएम मोदी अपने मुखिया संगठन की नाराज़गी मोल लेकर भी एक प्रधानमंत्री के तौर पर ही अपनी वापसी की लड़ाई लड़ेंगे. इतना तो तय है कि लाख विरोध के बावजूद संघ ना ही सत्ता में सीधा ददखल देगा, ना ही चुनाव के वक्त बीजेपी से पल्ला झाड़ेगा.
संघ के स्वयंसेवक आखिर को तो बीजेपी को ही जिताएंगे..यानी नरेंद्र मोदी को जिताएंगे. शायद संघ के पास प्लान बी हो, कि नतीजों के बाद प्रधानमंत्री पद पर किसी दूसरे उम्मीदवार को सामने लाया जा सकता है, लेकिन मोदी के नाम अगर बीजेपी फिर सत्ता में आती है तो स्थिति 2014 से अलग नहीं होगी, इसलिए भी मोदी को कोई फिक्र नहीं है.
बीजेपी कार्यकर्ताओं, जनता को मोदी का संदेश
राम मंदिर को लेकर पीएम मोदी ने बीजेपी और जनता को भी एक संदेश दिया है। क्या पीएम मोदी के बयान का निहितार्थ ये नहीं निकाला जा सकता कि अध्यादेश वो ला सकते हैं, लेकिन थोड़ा इंतज़ार करो. अगर सुप्रीम कोर्ट ही मनमाफिक फैसला दे दे तो अध्यादेश की ज़रूरत ही नहीं और ऐसा नहीं होता है तो अध्यादेश भी आ सकता है. इंतज़ार का ये वक्त दरअसल एक सत्ता से दूसरी सत्ता के आने का है.
क्या मोदी का ये बयान उन्हें दोबारा चुने जाने का मास्टरस्ट्रोक नहीं हो सकता? हो सकता है, क्योंकि इतना तो सभी जानते हैं कि राम मंदिर को लेकर जैसा रुख बीजेपी का है वैसा दूसरी किसी पार्टी का नहीं है। बेशक़ कोई भी दल अयोध्या में राममंदिर का विरोध नहीं करता, लेकिन खुलेआम मंदिर बनाने की बात सिर्फ बीजेपी ही करती है.
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ऐसे में देर-सबेर जब भी मंदिर बनना है, जैसे भी मंदिर बनना है वो होना बीजेपी के हाथों ही है, ऐसा जनमानस तो तैयार है. तो फिर प्रधानमंत्री मोदी ने सुप्रीम कोर्ट की हीला-हवाली को अपनी दूसरी बार की सत्ता की बुनियाद बनाने का दांव चल दिया है.
अभी मामला कोर्ट में है, जिस पर सरकार का ज़ो नहीं, फिलहाल हमारी सरकार फिर बनवाओ तबतक सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी आ जाएगा, और जो भी होगा उस वक्त अध्यादेश भी लाया जा सकता है.
कांग्रेस को राममंदिर की राह में खलनायक बनाने का संदेश
प्रधानमंत्री मोदी ने इंटरव्यू में फिलहाल अध्यादेश ना लाने की बात कही तो सुप्रीम कोर्ट में मामला लटकने के लिए कांग्रेस को कसूरवार भी ठहराया. कांग्रेस नेता और वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल सुप्रीम कोर्ट में सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से पैरवी कर रहे हैं.
सिब्बल ने बीजेपी पर राम मंदिर को सियासी मुद्दा बनाकर वोट हासिल करने का आरोप लगाते हुए मामले की सुनवाई 2019 के चुनाव बाद करने की बात कही थी.
पीएम मोदी ने इस मामले को लेकर कांग्रेस को राम मंदिर की राह में खलनायक साबित करने की कोशिश भी की है. यानी प्रधानमंत्री की बात सुनकर मंदिर के लिए बेताब वोटबैंक निराश ज़रूर हो सकता है, लेकिन इसके लिए कसूरवार को कांग्रेस को ही मानें तो भी चुनावी खेल में बात बराबर ही मानी जाएगी, वोट बीजेपी के पास ही रहेंगे.
मीडिल क्लास और बुद्धिजीवी वर्ग को लुभाने का संदेश
राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के आसरे बैठने की बात करके पीएम मोदी ने उस वर्ग को अपने पाले में करने का दांव भी चला है, जो कट्टर नहीं है. बीजेपी के कट्टर समर्थक, मंदिर के भी कट्टर समर्थक हैं. लेकिन एक ऐसा वर्ग भी है जो मंदिर तो चाहता है, लेकिन बिना किसी हंगामे और सामाजिक ताना-बाना बिगाड़े. ऐसा वर्ग कट्टरता के दबाव को देखकर पीएम मोदी से दूर जा रहा था.
पीएम मोदी का बयान इस वर्ग को वापस उनके पाले में ला सकता है। ये ऐसा वर्ग है जो अपनी रोज़मर्रा की ज़रूरतों और करियर के लिए कभी सरकार का मुंह नहीं ताकता. ये वर्ग अपने बूते अपनी दुनिया बसाता है और लोकतंत्र का एक प्रहरी होने के नाते वोट भी देता है. इसे किसान, रोज़गार, सरकारी नौकरी, सरकारी घर, सब्सिडी जैसे मुद्दों से कोई लेना-देना नहीं. ये वर्ग तार्किक और सामंजस्य की बातें ही करता है. किसी भी तरह की कट्टरता से दूर भागता है. पीएम मोदी का निशाना ऐसा वर्ग भी हो सकता है.
सुप्रीम कोर्ट पर भरोसे का संदेश असली मास्टरस्ट्रोक
राममंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतज़ार करने की बात करके पीएम मोदी ने एक दूर की कौड़ी भी सेट करने की कोशिश की है. राम मंदिर के जरिये पीएम मोदी का ये दांव राफेल को लेकर हमलावर कांग्रेस के खिलाफ मास्टरस्ट्रोक बन सकता है. जब राम मंदिर ऐसे बीजेपी के कोर मुद्दे पर पीएम सुप्रीम कोर्ट के फैसले के साथ होने की बात कर रहे हैं तो फिर राफेल को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की बात भला जनता क्यों नहीं मानेगी.
राफेल को लेकर फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने जो कहा है वो मोदी सरकार के हक में है. कांग्रेस अब भी जेपीसी की मांग पर अड़ी है और आरोपों की बौछार कर रही है. लेकिन ना ही सरकार जेपीसी के लिए तैयार होने वाली है, ना ही संसद के पास अब इतना वक्त है कि विपक्ष लंबे समय तक दबाव बना पाए. ऐसे में जनता के बीच ही कांग्रेस इस मुद्दे को उछाल सकती है.
कांग्रेस के आरोपों के जवाब में बीजेपी के पास सुप्रीम कोर्ट का फैसला है ढाल के तौर पर मौजूद है और दलील के तौर पर अब राम मंदिर का हवाला दिया जा सकता है.
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पीएम मोदी का मास्टरस्ट्रोक ना बन जाए हिट विकेट?
प्रधानमंत्री मोदी ने बाकायदा तैयारी करके, एक खास वक्त पर देश को राम मंदिर के बारे में संदेश दिया है तो उसे सामान्य नहीं माना जा सकता है. यकीनन जितनी संभावनाएं पीएम मोदी के हक में जा सकती हैं उन सब का गणित उन्होंने समझ कर ही फिलहाल अध्यादेश ना लाने की बात कही है. लेकिन पीएम मोदी का ये मास्टरस्ट्रोक उल्टा भी पड़ सकता है अगर संघ अपने रुख पर सख्ती से अड़ जाए. ऐसी सूरत में सरकार तो बीजेपी की आ सकती है, लेकिन उसकी अगुवाई मोदी की जगह कोई और भी कर सकता है.
ऐसा भी हो सकता है कि संत समाज की नाराज़गी चुनाव नतीजों में भी दिख जाए. ऐसा भी हो सकता है कि गैर कट्टरवादी जिस वोटबैंक को पीएम नज़र में रख रहें हों, वो मोदी पर पूरी तरह यक़ीन ना करे. हो सकता है कि कांग्रेस खुद को खलनायक बनाने की बीजेपी की कोशिशों से साफ बच निकले.
ये भी हो सकता है कि सुप्रीम कोर्ट को लेकर राफेल से जो संजीवनी पीएम मोदी खुद को मिली मान रहे हैं, वो संजीवनी उनके हाथ से निकल जाए, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर की जा चुकी है.
याचिका दायर करने वाले भी बीजेपी के ही पुराने दिग्गज यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी हैं। यानी राम मंदिर पर जो मास्टरस्ट्रोक पीएम मोदी ने चला है वो उनकी उम्मीदों से उलट नतीजे भी ला सकता है.
(लेख में लिखी गई बात लेखक की निजी राय है.)
Source : Jayyant Awwasthi