राम ही राष्ट्र है.
भगवान श्रीराम इस राष्ट्र के प्राण है। मन मन में कण कण में सिर्फ राम है। 23 साल से ज्यादा इस देश के अलग-अलग हिस्सों को घूमने के बाद अपनी बुद्धि से जो समझ पाया उससे यही समझ आया कि ये राष्ट्र ही राम है। इसमें बीच-बीच में बहुत सा समय ऐसा आया जब लगा कि राष्ट्र के समाप्त होने का खतरा हो गया लेकिन हर बार राम कृपा से वापस लौट आया जीवन। राष्ट्र ने भी अपनी भाषाएं खोई, पंरपराएं खोई , जमीन खोई यहां तक कि इस बात को भी भूल गए कि ये राष्ट्र किस के नाम पर कैसे बना लेकिन एक नाम जो नहीं भूल पाएं वो नाम रहा राम का। हर कोशिश इस नाम को मिटाने की बेकार साबित हुई। किताबों से, अक्षरों से, परंपराओं से, जातियों से , सीमाओं से मुक्त ये गांव-गांव, घर घर बस राम राम में बदल गया। किताबों को जला दिया गया, मंदिरों को ढहा दिया गया और तमाम लोगों के मुंह पर डर जड़ दिया गया, लेकिन रामनाम बचा रहा।
"रामस्य चरितं कृत्स्नं कुरु त्वमृषिसत्तम ।
धर्मात्मनो भगवतो लोके रामस्य धीमतः ।।
वृत्तं कथय धीरस्य यथा ते नारदाच्छ्रुतम् ।
रहस्यं च प्रकाशं च यद् वृत्तं तस्य धीमतः ।।
(रामायण, बालकाण्ड, द्वितीय सर्ग, श्लोक ३२ एवं ३३)
{ऋषि-सत्तम, त्वम् रामस्य कृत्स्नं चरितं कुरु, (कस्य?) लोके धर्मात्मनः धीमतः भगवतः रामस्य । नारदात् ते यथा श्रुतम् (तथा एव तस्य) धीरस्य वृत्तं कथय, तस्य धीमतः रहस्यं च प्रकाशं च यद् वृत्तं (तत् कथय) ।}
हे ऋषिश्रेष्ठ, तुम श्रीराम के समस्त चरित्र का काव्यात्मक वर्णन करो, उन भगवान् राम का जो धर्मात्मा हैं, धैर्यवान् हैं, बुद्धिमान् हैं । देवर्षि नारद के मुख से जैसा सुना है वैसा उस धीर पुरुष के जीवनवृत्त का बखान करो; उस बुद्धिमान् पुरुष के साथ प्रकाशित (ज्ञात रूप में) तथा अप्रकाशित (अज्ञात तौर पर) में जो कुछ घटित हुआ उसकी चर्चा करो । सृष्टिकर्ता ने उन्हें आश्वस्त किया कि अंतर्दृष्टि के द्वारा उन्हें श्रीराम के जीवन की घटनाओं का ज्ञान हो जायेगा, चाहे उनकी चर्चा आम जन में होती आ रही हो या न।"
Disclaimer- यह लेख, लेखक के निजी विचारों पर आधारित है. इसका न्यूज स्टेट से कोई संबंध नहीं है.
Source : Dhirendra Pundir