एक तरफ महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ शिवसेना अंतर्कलह से जूझ रही है. पार्टी से बगावत का रुख अपनाए एकनाथ शिंदे की ताकत से शिवसेना दो-फाड़ होने के कगार पर है. उद्धव ठाकरे सरकार पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. इस दौरान सत्ता और संगठन के अस्तित्व का संघर्ष कर रहे उद्धव ठाकरे के खास सिपहसालार संजय राउत भी अपने 'कारनामों' से पार्टी और सरकार को क्षति पहुंचाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे हैं. बहरहाल, ईडी ने शिवसेना नेता संजय राउत को महाराष्ट्र में हुए घोटालों में उनकी संलिप्तता के संबंध में पूछताछ के लिए सम्मन जारी किया है.
महाराष्ट्र में दो महा-घोटाले- ₹6,500 करोड़ का पीएमसी बैंक घोटाला और ₹1,034 करोड़ का पात्रा चॉल (स्लम) पुनर्विकास परियोजना में घोटाला हुए. इन दोनों घोटालों ने मुंबई और महाराष्ट्र के आम आदमी को नुकसान पहुंचाया है. मराठी मानुष को लूटा गया है. यह कहना आसान है कि केंद्र द्वारा ईडी का इस्तेमाल किया जा रहा है, लेकिन सम्मन के पीछे के कारणों को जानना बेहद महत्वपूर्ण है.
मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि इस लेख को पढ़ने के बाद गरीबों के पैसे का इस्तेमाल करने वाले राजनेताओं के खिलाफ आपकी निराशा और गुस्सा बाहर आ जाएगा. आप समझ जाएंगे कि ईडी का इस्तेमाल केंद्र द्वारा राजनीति के लिए किया जा रहा है या ईडी नियमतः जनता का पैसा लूटने वाले घोटालेबाजों के खिलाफ कार्रवाई कर रहा है.
पीएमसी बैंक में धोखाधड़ी सितंबर 2019 में तब सामने आई जब आरबीआई ने पाया कि बैंक ने कथित तौर पर लगभग दिवालिया हाउसिंग डेवलपमेंट एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (एचडीआईएल) को दिए गए 4,355 करोड़ रुपये से अधिक के ऋण को छिपाने के लिए फर्जी खाते बनाए थे.
ईडी ने एचडीआईएल, उसके प्रमोटरों राकेश कुमार वधावन, उनके बेटे सारंग वधावन, पूर्व अध्यक्ष वरयाम सिंह और पूर्व प्रबंध निदेशक जॉय थॉमस के खिलाफ अक्टूबर, 2019 में पीएमसी बैंक में कथित ऋण धोखाधड़ी की जांच के लिए मनी-लॉन्ड्रिंग का मामला दर्ज किया. इस संबंध में ईडी और मुंबई की ईओडब्ल्यू ने निदेशकों के खिलाफ मामला दर्ज किया है.
डीएचएफएल के प्रमोटर कपिल वधावन और धीरज वधावन पर कोरोना कालखंड के दौरान लगे देशव्यापी लॉकडाउन का उल्लंघन करने और 20 लोगों के समूह के साथ महाबलेश्वर की यात्रा करने के लिए मामला दर्ज किया गया है. परिवार यस बैंक मामले में जांच से बचने की कोशिश कर रहा था.
एक IPS अधिकारी, जिसने उन्हें परिवार के अन्य सदस्यों और घरेलू नौकरों के साथ मुंबई से महाबलेश्वर की यात्रा करने के लिए पास जारी किया था, उसे निलंबित कर दिया गया है. नौकरशाह ने एक पत्र जारी कर वधावन को पारिवारिक आपातकाल का हवाला देते हुए लॉकडाउन के मानदंडों से छूट दी थी. विपक्ष में बैठी बीजेपी ने उस समय वधावन परिवार को दिए गए इस एहसान को लेकर महाराष्ट्र के तत्कालीन गृह मंत्री अनिल देशमुख के इस्तीफे की मांग की थी.
वर्ष 2010 में हुआ ₹1034 करोड़ का पात्रा चॉल घोटाला
म्हाडा (महाराष्ट्र हाउसिंग एंड एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी) ने गुरु-आशीष कंस्ट्रक्शन के निदेशक के रूप में सारंग वधावन के खिलाफ पात्रा चॉल मामले में शिकायत दर्ज की थी कि उन्होंने गोरेगांव में सिद्धार्थ नगर के पात्रा चॉल के 47 एकड़ में रहने वाले म्हाडा और 672 किरायेदारों को धोखा दिया है.
गुरु आशीष कंस्ट्रक्शन एचडीआईएल की सहायक कंपनी है और उसके निदेशक राकेश वधावन और सारंग वाधवान हैं. प्रवीण ने राकेश को एक निवेशक के रूप में गुरु आशीष के पिछले निदेशक से मिलवाया। इसके बाद, प्रवीण, राकेश और सारंग को कंपनी के निदेशक के रूप में नामित किया गया. गुरु-आशीष कंस्ट्रक्शन ने बिल्ड-अप एरिया में किरायेदारों को 767 वर्ग फुट और भूमि के कुछ हिस्से का व्यावसायिक रूप से दोहन करने के बदले में 2.28 लाख वर्ग फुट से अधिक का मुफ्त बिक्री घटक देने का वादा किया था.
MAHADA शिकायत में कहा गया है कि कंपनी ने MHADA द्वारा दी गई जुलाई 2011 की NOC का दुरुपयोग किया और अवैध रूप से सात बिल्डरों को परियोजना का उप-अनुबंध किया. प्रवीण राउत ने बिक्री की अनुमति के लिए म्हाडा को लिखा क्योंकि समझौते के अनुसार इसकी अनुमति नहीं थी, लेकिन बिक्री कथित तौर पर म्हाडा से संचार प्राप्त होने से पहले ही की गई थी.
ईडी ने कहा कि वधावन और प्रवीण द्वारा एचडीआईएल और उसकी समूह कंपनियों के खातों के माध्यम से बिक्री की आय को छीन लिया गया था. इसने दावा किया कि 2008-2010 में प्रवीण के खाते में कई चरणों में फंड ट्रांसफर हुए, जिनमें से ज्यादातर 1 करोड़ रुपये थे. ईडी ने दावा किया कि प्रवीण ने एजेंसी को बताया कि उसे मिले 95 करोड़ रुपये में से 50 करोड़ रुपये स्वेट इक्विटी की बिक्री के खिलाफ थे और शेष 45 करोड़ रुपये पालघर में एक भूमि सौदे से थे.
यह बहाना प्रवीण राउत और राकेश वधावन द्वारा वैधता का एक मुखौटा बनाने के लिए बनाया गया था और विस्थापित किरायेदारों और घर खरीदारों के लिए फ्लैटों के निर्माण के लिए इस राशि को अवैध रूप से स्थानांतरित कर दिया गया था. प्रवीण राउत के स्वेट इक्विटी के आवंटन का दावा कंपनी के खातों की किताबों में परिलक्षित नहीं होता है और एचडीआईएल के मुख्य वित्तीय अधिकारी ने इसका स्पष्ट रूप से खंडन किया है.
वाधवान को जमानत देने से इनकार कर दिया गया था. एक अन्य आवास घोटाले में भी 465 घर खरीदारों से रुपये ठगे गए. अक्टूबर 2014 तक गोरेगांव में 'द मीडोज' परियोजना में ₹131 करोड़ के घरों का वादा किया गया था, फ्लैटों की डिलीवरी अभी बाकी है.
गोरेगांव में एक चॉल पुनर्विकास परियोजना में कथित अनियमितताओं से संबंधित एक मामले में गिरफ्तार प्रवीण राउत ने 2008-2010 के बीच रियल एस्टेट कंपनी एचडीआईएल से "बिना किसी वैध कारण के" अपने बैंक खाते में 95 करोड़ रुपये प्राप्त किए और इसे संपत्ति हासिल करने के लिए स्थानांतरित कर दिया गया. और उनकी व्यावसायिक संस्थाओं, परिवार और अन्य के खातों में डायवर्ट किया गया.
ईडी की चार्जशीट में उल्लेख किया गया है कि जांच के दौरान तलाशी ली गई, जिसके परिणामस्वरूप दस्तावेजों की बरामदगी हुई, जिसमें अलीबाग में भूखंडों की खरीद से संबंधित दस्तावेज, शिवसेना सांसद संजय राउत की पत्नी वर्षा राउत के नाम पर और सांसद के करीबी स्वपन पाटकर और सुजीत पाटकर की पत्नी के नाम दर्ज हैं. चार्जशीट में पार्टनरशिप फर्म अवनी इंफ्रास्ट्रक्चर का भी जिक्र है, जहां वर्षा और माधुरी, प्रवीण राउत की पत्नी, दूसरों के साथ पार्टनर हैं.
ईडी ने कहा कि वर्षा ने फर्म में 5,625 रुपये का पूंजी निवेश किया था और उसका लाभ हिस्सा 14 लाख रुपये था.
ईडी अधिकारियों ने पाया है कि प्रवीण राउत ने अपनी पत्नी के खाते से शिवसेना नेता संजय राउत की पत्नी वर्षा को 55 लाख रुपये का भुगतान किया था. अधिकारियों को यह भी पता चला कि सांसद संजय राउत और संबंधित व्यक्तियों की घरेलू और अंतरराष्ट्रीय यात्रा के लिए टिकट व होटल बुक किए गए थे. साथ ही, अलीबाग में प्रवीण राउत द्वारा धन की प्राप्ति के बाद जमीन खरीदी गई थी और 2010-2012 में नकद में एक बड़ी राशि का भुगतान करने का संदेह है.
प्रवीण राउत के सहयोगी और संजय राउत के करीबी सुजीत पाटकर के आवास की तलाशी के दौरान, संजय राउत से संबंधित संपत्ति के दस्तावेजों की कुछ फोटोकॉपी की प्रतियां मिलीं. जब उन्होंने संपत्ति के विक्रेताओं के साथ जांच की, तो उन्हें पता चला कि विक्रेताओं को संपत्ति बेचने के लिए मजबूर किया गया था और उक्त भूमि पार्सल का पंजीकरण बाजार मूल्य से कम कीमत पर किया गया था. विक्रेताओं ने यह भी कहा कि उन्हें संपत्तियों के लिए चेक भुगतान के अलावा नकद में भी भुगतान प्राप्त हुआ.
वाधवान ग्रुप के दो भाई अलग हो चुके हैं. मैंने कनेक्शन दिखाने के लिए अभी दोनों मामलों का उपयोग किया है. मेरी पूरी रिसर्च इकोनॉमिक टाइम्स, टाइम्स ऑफ इंडिया, फ्री प्रेस जर्नल और इंडियन एक्सप्रेस लेखों पर आधारित है. ईडी की कार्रवाई का विरोध करने वालों से मैं पूछना चाहता हूं कि क्या आप उपरोक्त तथ्यों की जांच करेंगे? क्या आपको #NewIndia नहीं चाहिए?
लेखक- Himanshu Jain (@HemanNamo) एक राजनैतिक विश्लेषक हैं
Source : News Nation Bureau