दिल्ली का बॉस कौन होगा इसको लेकर केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच जारी तकरार अब आर पार के मोड़ पर है. अधिकारियों के अधिकार पर नियंत्रण करने को लेकर आम आदमी पार्टी और केंद्र खुलकर आमने सामने है. केंद्र सरकार के अध्यादेश के खिलाफ अब आम आदमी पार्टी सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की तैयारी में है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इसे सर्वोच्च अदालत के आदेश की अवहेलना और सुप्रीम कोर्ट के फैसले का अपमान बताया है. वहीं, केंद्र सरकार और बीजेपी इसे दिल्ली के हित में बता रही है. सबसे बड़ा सवाल है कि 2024 आम चुनाव से पहले केंद्र सरकार के इस अध्यादेश के खिलाफ क्या विपक्षी एकता मजबूत होगी. क्या अरविंद केजरीवाल इसी बहाने गुटों में बटे विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने में कामयाब होंगे. अगर केजरीवाल का यह सियासी दांव सफल होता है तो निश्चित तौर पर बीजेपी के लिए यह अध्यादेश सिरदर्द बन जाएगा. ऐसे इसलिए कि हाल ही में कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस की प्रचंड जीत ने बेजान पड़े विपक्षी दलों में जान फूंक दी है. इसकी झलक भी बंगलुरु में सिद्धरमैया के शपथ समारोह में देखने को मिला है. विपक्ष के खिलाफ सभी विपक्षी दल एकजुट होकर उस मंच पर खड़े दिखे.
हालांकि, अध्यादेश को चुनौती देना आम आदमी पार्टी के लिए मुश्किल भरा काम है. ऐसा इसलिए कि अध्यादेश लाने का अधिकार केंद्र के पास निहित है. भारत के संविधान का अनुच्छेद 123 देश के राष्ट्रपति को अध्यादेश जारी करने की शक्ति देता है. इस अनुच्छेद के अनुसार, केंद्र को अगर कोई ऐसा विषय लगता है जिस पर तत्काल प्रभाव से कानून बनाने की जरूरत है और तो वह अध्यादेश लाया जा सकता है. उस अध्यादेश को उतना ही प्रभावी माना जाता है जितना संसद से पास किए गए कानून को माना जाता है. लेकिन ध्यान रहे कि किसी नागरिक के उनके मूल अधिकार नहीं छीना जा सके. हमारे देश में कानून बनाने का अधिकार संसद के पास है. अध्यादेश को केंद्रीय मंत्रिमंडल की सलाह पर राष्ट्रपति जारी करते हैं.
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अध्यादेश कोर्ट में 5 मिनट नहीं टिकेगा- सीएम केजरीवाल
बता दें कि 19 मई की देर रात केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पलटने वाला अध्यादेश जारी कर दिया. केंद्र सरकार 'राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (संशोधन) अध्यादेश, 2023' लेकर आई है. इस अध्यादेश के तहत किसी भी अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग से जुड़ा अंतिम निर्णय लेने का अधिकार उपराज्यपाल को वापस दे दिया गया है. इसके बाद 20 मई की शाम मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने केंद्र पर जोरदार हमला बोला. शनिवार को मुख्यमंत्री केजरीवाल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सरकार को आड़े हाथ लेते हुए कहा कि अध्यादेश को लाकर केंद्र सरकार ने जनता और देश के साथ एक भद्दा मजाक किया है और सुप्रीम कोर्ट के फैसले की अवहेलना की है. सरकार शीर्ष कोर्ट के फैसले को सीधी चुनौती दे रही है कि आप जो भी आदेश जारी करोगे हम उसे पलट देंगे. केजरीवाल ने कहा कि वह केंद्र सरकार के इस अध्यादेश के खिलाफ दिल्ली के घर-घर जाकर लोगों से बताएंगे कि उनका हक छीना जा रहा है. केजरीवाल ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाते हुए आगे कहा कि केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट की गर्मी की छुट्टियों का इंतजार कर रही थी कि कोर्ट जैसे बंद हो वह अध्यादेश जारी कर देगा. क्योंकि उन्हें यह अच्छी तरह से मालूम है कि यह अध्यादेश सुप्रीम कोर्ट में 5 मिनट भी नहीं टिक पाएगा. 1 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में हम इस अध्यादेश के खिलाफ याचिका लगाएंगे.
क्या है पूरा मामला
दरअसल, दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश के तहत आता है. दिल्ली के पास स्वतंत्र अधिकार नहीं है. दिल्ली अपना विधानसभा नहीं बना सकता. राजधानी दिल्ली को संविधान के अनुच्छेद 239 (AA) के तहत नेशनल कैपिटल टेरिटरी घोषित किया जा चुका है. अब इस पूरे विवाद का जड़ ये है कि दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार का तर्क है कि जनता उन्हें पूर्ण बहुमत के साथ दिल्ली संभालने की कमान सौंपी है. ऐसे में उनके हाथ में ही अधिकारों का नियंत्रण होना चाहिए. जैसे दिल्ली के अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग पर नियंत्रण सिर्फ दिल्ली सरकार के पास ही होना चाहिए. इसमें कोई दखलांदाजी नहीं होनी चाहिए. वहीं, केंद्र का कहना है दिल्ली देश की राजधानी है यहां देश और विदेश से लोग आते हैं. दिल्ली के अधिकारों को लेकर केंद्र का यह भी कहना है कि राजधानी दिल्ली कोई आम जगह नहीं है. देश की महत्वपूर्ण संस्थाओं का ऑफिस और संवैधानिक पदाधिकारियों के दफ्तर और आवास भी हैं. ऐसे में अगर यहां किसी तरह की छोटी से भूल भी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की छवि खराब करने के लिए काफी होगी. इसके अलावा दिल्ली यूनियन टेरिटरी भी है. इसका संचालक करने का अधिकार उप राज्यपाल के पास होता है. इसलिए यह अधिकार उप राज्यपाल का है.
इन वजहों से केंद्र के लिए अध्यादेश बन जाएगा घाटे का सौदा
विपक्ष की एकजुटता
अध्यादेश के बहाने आम आदमी पार्टी विपक्षी एकता को मजबूत करने में एकजुट हो गई है. आप के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अध्यादेश के खिलाफ विपक्षी दलों के नेताओं से मुलाकात कर राज्यसभा में बिल पारित नहीं होने का आग्रह भी करेंगे. केजरीवाल ने इसकी शुरुआत भी कर दी है. अध्यादेश आने के बाद केजरीवाल ने सबसे पहले मुलाकात बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिले और बीजेपी को रोकने के लिए 2024 की रणनीति पर खुलकर चर्चा की. केजरीवाल नीतीश के अलावा राजद नेता और उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव से भी एक मंच पर आकर ताकत दिखाने की बात कही. इससे पहले अरविंद केजरीवाल उद्धव ठाकरे के बेटे और उद्धव गुट के शिवसेना नेता आदित्य ठाकरे से भी मुलाकात कर बीजेपी के खिलाफ माहौल तैयार करने पर सहमति जताई. केजरीवाल ने कहा कि 2024 में बीजेपी को रोकने और अध्यादेश को पारित नहीं होने के लिए वह विपक्ष के हर नेताओं से मुलाकात करेंगे. केजरीवाल का आरोप है कि बीजेपी तानाशाही रवैया अपना कर संविधान के साथ खिलवाड़ करना चाह रही है.
चुनी सरकार को काम करने से रोक रही बीजेपी
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का तर्क है कि आम आदमी पार्टी लोकतांत्रिक तरीके से चुनकर दिल्ली की सत्ता में आई है. दिल्ली की जनता का पार्टी को आशीर्वाद प्राप्त है तो उसमें केंद्र सरकार अड़ंगा क्या लगाना चाह रही है. केंद्र और बीजेपी जान बूझकर परेशान करना चाहती है और सरकार को उथल पुथल करने की कोशिश कर रही है. मुख्यमंत्री केजरीवाल ने यह भी आरोप मढ़ा कि दिल्ली सरकार के कई मंत्रियों और नेताओं को परेशान करने और छवि खराब करने के लिए जेल के अंदर डाला गया है. पार्टी आने वाले समय में इन मुद्दों को जनता तक पहुंचाएगी.
लोकतंत्र और सुप्रीम कोर्ट का अपमान
अधिकारियों के अधिकार के खिलाफ आए अध्यादेश को आम आदमी पार्टी ने लोकतंत्र के लिए खतरनाक बताया. वहीं सुप्रीम कोर्ट के फैसले की अवहेलना करार दिया है. मुख्यमंत्री केजरीवाल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला सर्वमान्य होता है, लेकिन केंद्र सरकार अपनी तानाशाही रवैये की वजह से सुप्रीम कोर्ट के फैसले को भी मानने को तैयार नहीं है. केजरीवाल इस मुद्दे को जनता के बीच ले जाने की अपील की है. उन्होंने कहा कि दिल्ली की जनता के घर-घर जाकर वह इस बारे में बताएंगे. साथ ही 1 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट खुलने के बाद इस अध्यादेश के खिलाफ याचिका दायर करेंगे.