आख़िरकार कांग्रेस ने 2019 आम चुनाव को देखते हुए अपनी सबसे बड़ी चाल चल दी है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने छोटी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा को कांग्रेस का महासचिव बनाने की घोषणा की है. इसके साथ ही प्रियंका गांधी वाड्रा फरवरी के पहले सप्ताह से लोकसभा चुनाव के मद्देनजर सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश के पूर्वी हिस्से की कमान संभालेंगी. साफ़ है कि प्रियंका का सामना वाराणसी में प्रधानमंत्री मोदी से और गोरखपुर में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से होना है. कांग्रेस समर्थक पिछले कई सालों से प्रियंका गांधी को सक्रिय राजनीति में लाने की मांग कर रहे थे. ऐसे में कांग्रेस को पूरा भरोसा है कि लोकसभा चुनाव से ठीक पहले इस बड़े ऐलान के बाद ज़मीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं के बीच उत्साह बढ़ेगा और ज़मीनी स्तर पर संगठन मजबूत होगा.
हालांकि अब जबकि महज़ चुनाव में केवल 70-80 दिन का समय बाकी रह गया है तो क्या वाकई आगामी लोकसभा चुनाव में पार्टी को इसका फ़ायदा मिलेगा? कई राजनीतिक पंडित इस बात से इत्तेफ़ाक़ नहीं रखते. उनका मानना है कि कांग्रेस को यह फ़ैसला लेने में जल्दबाजी दिखानी चाहिए थी.
हालांकि एक सच यह भी है कि कांग्रेस के अचानक लिए गए इस फ़ैसले से बीजेपी को इसकी काट ढूंढ़ने में समय लगेगा और तब तक कांग्रेस 2019 लोकसभा चुनाव में इसका फ़ायदा ले सकती है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के नए मास्टर स्ट्रोक से पार्टी को उम्मीद है कि देश के सबसे बड़े राज्य यूपी में उन्हें फ़ायदा मिलेगा.
कांग्रेस ने प्रियंका को लांच करके एक ही वार में SP-BSP गठबंधन और बीजेपी को क्षति पहुंचाने की कोशिश की है. प्रियंका के आने से यूपी में वैसे मतदाता जो पहले कांग्रेस के समर्थक थे लेकिन हाल के दिनों में छिटकते जा रहे थे एक बार फिर से कांग्रेस से जुड़ेंगे. ज़ाहिर है कांग्रेस यूपी में दलित, मुस्लिम और ब्राह्मणों को साधने की फिराक में है. कम से कम प्रियंका का चेहरा सामने लाने से ब्राह्मण मतदाता एक बार फिर मजबूती के साथ कांग्रेस से जुड़ेंगे.
ऐसे में BJP को सबसे ज़्यादा नुकसान की आशंका है क्योंकि SP-BSP अपने पारंपरिक वोटरों (दलित और ओबीसी) को साथ लेकर चलेगी और कांग्रेस ब्राह्मणों को वापस अपने साथ फिर से जोड़ने की. ऐसे में बीजेपी को सभी समुदायों से नुकसान होगा और मुस्लिम वोटर एक बार फिर से निर्णायक भूमिका में आ सकते हैं.
प्रियंका फिलहाल विदेश में हैं. कांग्रेस प्रियंका को यूपी में शानदार तरीके से लॉन्च करने की रणनीति बना रही है. सूत्रों के मुताबिक यूपी कांग्रेस 10 फरवरी को लखनऊ में प्रियंका की मौजूदगी में रमाबाई मैदान में एक बड़ी रैली का आयोजन करने जा रही है. बताया जा रहा है कि इस रैली को पिछले ढाई दशक की सबसे बड़ी रैली बनाने की कोशिश की जा रही है.
प्रियंका गांधी वाड्रा के साथ आने से कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं में उत्साह बढ़ गया है वहीं बीजेपी इसे वंशवाद की राजनीति बताकर निशाना साध रही है.
प्रियंका गांधी वाड्रा की ख़ासियत
कांग्रेसी नेताओं का मानना है कि प्रियंका गांधी वाड्रा एक अच्छी प्रशासक हैं और काफी छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखती हैं. बताया जाता है कि राहुल गांधी के अध्यक्ष रहते हुए जब पहले अधिवेशन का आयोजन हुआ था तो उसमें सभी के भाषण के 'फैक्ट चेक' का जिम्मेदारी भी उनके ऊपर थी. इतना ही नहीं प्रियंका ने ही मंच पर बोलने वाले वक्ताओं की सूची को अंतिम रूप दिया और पहली बार युवा और अनुभवी वक्ताओं का एक मिश्रण तैयार किया. रायबरेली और अमेठी में पार्टी के कार्यक्रमों की ज़िम्मेदीर प्रियंका गांधी ही संभालती हैं. प्रियंका बड़ी सभाओं के बजाय छोटी सभाएं करना पसंद करती हैं. प्रियंका कांग्रेस कार्यकर्ताओं से भी बीच-बीच में समय निकालकर मिलती रहती हैं.
यात्रा के दौरान बीच सड़क पर रुक कर किसी भी कार्यकर्ता को नाम से बुलाकर से मुलाक़ात करतीं हैं. लोगों के बीच रहना, उनसे बात करना यह कुछ ऐसे गुण हैं जो समर्थकों को ख़ूब पसंद आता है. इसी वजह से उनका कार्यकर्ताओं के साथ अच्छा जुड़ाव है.
प्रियंका गांधी वाड्रा के सक्रिय राजनीति में आने का दुष्परिणाम
प्रियंका गांधी एक तेज़-तर्रार नेता और बेहतर कुशल वक्ता भी हैं. सक्रिय राजनीति में आने की वजह से उन्हें चुनाव प्रचार करनी होगी और इस दौरान वह जनसभाओं को भी संबोधित करेंगी. ऐसे में मीडिया उनकी बातों को टेलीकास्ट भी करेगी. चूंकि प्रियंका एक कुशल वक्ता हैं ऐसे में संभव है कि लोगों के बीच उनकी प्रसिद्धी बढ़े. राहुल गांधी ने हाल के दिनों में हालांकि अपने बोलचाल और भाषण के अंदाज़ में काफी बदलाव किया है इसके बावजूद प्रिंयका के सामने उनका पलड़ा कम ही है. ऐसे में यह ख़तरा है कि प्रियंका की कांग्रेस पर पकड़ मजबूत होती चली जाएगी और राहुल कहीं उनकी लोकप्रियता के पीछे छिपकर रह जाएंगे.
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कांग्रेस ने पीएम मोदी को हराने के लिए प्रियंका को राजनीति में उतार तो दिया है लेकिन इस फ़ैसले के बाद डर है कि राहुल की कांग्रेस कहीं प्रियंका की कांग्रेस होकर न रह जाए.
Source : Deepak Singh Svaroci