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फ्रांस के खिलाफ सड़कों पर उतरे लोग इस्लामिक कट्टरता पर चुप क्यों

एक बड़ा सवाल यह उठता है कि किसी सिरफिरे शख्स द्वारा इस्लाम के नाम पर किए गए कत्लेआम को आखिर निंदनीय क्यों नहीं मान रहा वैश्विक मुस्लिम समुदाय?

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Nihar Saxena
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Bhopal France Rally

भोपाल के इकबाल मैदान पर जुटे हजारों लोग कोरोना की परवाह किए बगैर.( Photo Credit : न्यूज नेशन)

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फ्रांस (France) में पैगंबर मोहम्मद के कार्टून और फ्रांसीसी राष्ट्रपति की टिप्पणी को लेकर मुस्लिम देशों में जारी विरोध-प्रदर्शन की आंच भारत तक पहुंच गई है. मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल (Bhopal) में कांग्रेस विधायक के नेतृत्व में फ्रांस के खिलाफ विशाल रैली निकाली गई, वहीं मुंबई (Mumbai) के भिंडी बाजार में रातोंरात सड़क को फ्रांसीसी राष्ट्रपति के पोस्टरों से पाट दिया गया. यह सब तब हुआ जब भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने फ्रांस में बीते कुछ माह से जारी इस्लामिक आतंकवाद के खिलाफ एकजुटता दिखाते हुए साथ खड़े होने की बात कही थी. इसके साथ-साथ तमाम मुस्लिम धर्म गुरुओं समेत दारुल उलूम जैसे संगठन भी मुखर हैं. एक बड़ा सवाल यह उठता है कि किसी सिरफिरे शख्स द्वारा इस्लाम के नाम पर किए गए कत्लेआम को आखिर निंदनीय क्यों नहीं मान रहा वैश्विक मुस्लिम समुदाय? 

रोहिंग्या मुसलमानों के पक्ष में भी धरना-प्रदर्शन
तमाम मुस्लिम नेता फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों के बयान को गलत ठहराते हुए इस्लामोफोबिया और फासिस्ट रवैये के खिलाफ मुखर विरोध दर्ज करा रहे हैं. यह तब है जब मैक्रों कह चुके हैं उन्होंने किसी धर्म के खिलाफ किसी तरह की हेट स्पीच नहीं दी है. उन्होंने जोर देकर कहा कि वह मुसलमानों के खिलाफ नहीं हैं. गौरतलब है कि कुछ ऐसा ही नजारा उस वक्त भी भारत में देखने में आया था जब म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों पर बौद्ध अनुयायियों के हमले के बाद जान बचा कर भागे रोहिंग्या मुसलमानों को न सिर्फ भारत में शरण देने की मांग उठी, बल्कि कुछ नेताओं ने तो यहां तक कह दिया कि ऐसा न होने पर भारत की सड़कों पर खून बहेगा. 

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कांग्रेस विधायक ने कोरोना गाइडलाइन का विरोध कर जुटाई भीड़
एक बड़ सवाल यह उठता है कि कैसे और किसकी शह पर भोपाल में हजारों की संख्या वाली भीड़ इकबाल मैदान पर उतर आई. कथित तौर पर कांग्रेस के विधायक आरिफ मसूद ने इस रैली का आयोजन किया. सोशल मीडिया के जरिए हजारों की भीड़ इकबाल मैदान में जुटाई गई, जहां मैक्रों के पुतले जलाए गए. शिवराज सरकार द्वारा कार्रवाई की बात पर कांग्रेस विधायक मसूद ने रैली निकालने का बचाव किया. मसूद ने कहा, 'फ्रांस के राष्ट्रपति ने जो हमारे धर्मगुरु और मजहब के बारे में टिप्पणी की, हमने उसका विरोध किया है. किसी का मजहब इजाजत नहीं देता कि किसी के धर्मगुरु के खिलाफ टिप्पणी की जाए. उन्होंने जो टिप्पणी की और कार्टून बनाया हमने उसका विरोध किया.' उन्होंने कहा कि वह किसी भी कार्रवाई के लिए तैयार हैं.

मुंबई में रातोंरात सड़क पर मैक्रों के पोस्टर 
भोपाल की ही तर्ज पर मुंबई में भी फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों के खिलाफ प्रदर्शन देखने को मिला. फ्रांस का विरोध कर रहे मुस्लिम देशों की तर्ज पर मुंबई के भिंडी बाजार में भी रातोंरात सड़क पर मैक्रों के पोस्टर लगा दिए गए. सुबह जब लोग बाहर निकले तो सड़कों पर ये पोस्टर देखकर हैरान रह गए. सोशल मीडिया पर भी पोस्टर से पटी सड़क का विडियो वायरल हो गया. मुंबई में ये पोस्टर किसने लगाए, अभी तक यह रहस्य है. किसी संगठन ने अभी तक इसकी जिम्मेदारी नहीं ली है. एक बड़ा सवाल तो यही उठता है कि आखिर कौन हैं वह लोग जो देखते ही देखते हजारों लाखों की संख्या में भीड़ को मनचाहे तरीके से इस्तेमाल कर लेते हैं? 

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सही इस्लाम का पक्षधर क्यों नहीं बनते मुसलमान
इसमें कोई शक नहीं है कि इस्लामिक कट्टरता की देन वह विचारधारा है, जो इस्लाम को श्रेष्ठ बताते हुए दूसरे धर्मों को कमतर बताती है. जेहाद को प्रेरित करती है. सीरिया में इस्लमिक स्टेट के अत्याचार, महिलाओं को सेक्स स्लेव बनाने का चलन समेत अफगानिस्तान में तालिबान का वर्चस्व यही बताता है कि मुस्लिम संप्रदाय सिर्फ इस्लामोफोबिया के नाम पर फिर से कट्टरपंथियों की ओर से बरगलाया जा रहा है. आखिर आज जहां-जहां फ्रांस के राष्ट्रपति का विरोध हो रहा है, वहां उस सिरफिरे की निंदा करने मुस्लिमों की भीड़ सड़कों पर क्यों नहीं उतरी, जिसने नीस शहर में चर्च में घुसकर तीन मासूम लोगों को जिबह कर दिया. क्यों नहीं भीड़ वैश्विक आतंक के प्रणेता हाफिज सईद और मसूद अजहर के खिलाफ सड़कों पर उतरती है, जो बीते कई सालों से भारतीय सरजमीं को अपनी नापाक साजिशों से घाव पर घाव देते आ रहे हैं. यह सही है कि इस्लाम आतंकवाद की शिक्षा कतई नहीं देता है, लेकिन इस्लामिक व्याख्या के आधार पर आतंकवाद को प्रश्रय और विस्तार देने वाली विचारधारा के खिलाफ भी ऐसी ही भीड़ को उतरना होगा, उसके बाद कहीं जाकर वैश्विक नजरिये में बदलाव आ सकेगा.

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