Anti-Hindutva Agenda Setting: राहुल गांधी 'देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी' कांग्रेस पार्टी के भूतपूर्व अध्यक्ष हैं. पूरे देश को कांग्रेस कार्यकर्ता की हैसियत से जोड़ने के लिए राजनीतिक यात्रा पर निकले हैं. वो इतने आम कांग्रेसी कार्यकर्ता हैं कि उनके समर्थन में कार्यकारी (तत्कालीन) कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पहुंचती हैं. फिर नए नवेले बने 'गैर गांधी और दलित' कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी पहुंच जाते हैं. यात्रा का नाम 'भारत जोड़ो यात्रा' है, जो 7 सितंबर से शुरू हुई और करीब 150 दिन तक चलेगी. एक आम कांग्रेस कार्यकर्ता ये रैली शुरू करता है, तो फोकस गरीबी, महंगाई, बेरोजगारी पर 'कुछ दिन' रहता है, फिर वो पुरानी लाइन पर वापस आ जाता है. उसकी पुरानी लाइन है एंटी बीजेपी, एंटी आरएसएस, एंटी हिंदू महासभा और एंटी हिंदुत्व. क्योंकि वो जब शुरू की तीनों चीजों की बुराई करते करते इतना आगे बढ़ जाता है, यानी एक्स्ट्रीम पर पहुंच जाता है, तो वो उसी लाइन पर पहुंच जाता है, जिसे एंटी हिंदुत्व लाइन कह सकते हैं. और एंटी हिंदुत्व पॉलिटिक्स के साथ कांग्रेस नेताओं का मोह किसी से छिपा नहीं है. भले ही वो कितने भी मंदिर जाएं, जनेऊ पहनें या 'कुछ भी' कर लें.
वीर सावरवर बीच में क्यों आए?
राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो यात्रा केरल, कर्नाटक, तेलंगाना' से गुजर चुकी है. अब महाराष्ट्र में पहुंच चुकी है. ये वही महाराष्ट्र है, जो कांग्रेस की तमाम राजनीतिक प्रयोगों की नर्सरी साबित हुई है, ये अलग बात है कि हर बार उसे मुंह की खानी पड़ी. यही वो महाराष्ट्र है, जहां उसके खिलाफ कई राजनीतिक पार्टियां जन्मीं, मजबूत हुईं और अब कांग्रेस के साथ भी हैं. यहीं पर उस आरएसएस का हेडक्वॉर्टर है, जो खुद कांग्रेस को मुसलमानों का रहनुमा साबित करने के लिए खाद-पानी का इंतजाम अपने आप कर देता है, क्योंकि कांग्रेस को उसके बिना कुछ किये भी खाद-पानी मिल जाता है. अब महाराष्ट्र में राहुल गांधी और उनकी 'भारत जोड़ो यात्रा' पहुंची हो और कोई खास विवाद न हो, तो ऐसा हो ही नहीं सकता था. कुछ समय पहले कर्नाटक में भी वीर सावरकर की तस्वीरें राहुल गांधी की यात्रा वाले पोस्टरों में लगी हुई थी. खुद कांग्रेसी कार्यकर्ता भी उन्हें 'चाहने वाले निकले'. लेकिन महाराष्ट्र में आते ही राहुल गांधी को वीर सावरकर क्यों याद आ गए, इसका अंदाजा लगना कठिन नहीं है.
अब राहुल गांधी के खिलाफ केस
राहुल गांधी ने मय सबूत कहा है कि वीर सावरकर ने देश को धोखा दिया. नेहरू को धोखा दिया. महात्मा गांधी को धोखा दिया. जाने किस किस को धोखा दिया. वो अंग्रेजों के गुलाम रहे और भी तमाम बातें. अब वीर सावरकर के पोते ने राहुल गांधी के खिलाफ केस भी दर्ज करा दिया है. राहुल गांधी ने इसके साथ ही ललकारा महाराष्ट्र की सरकार को, जिसमें शामिल मुख्यमंत्री कुछ समय पहले तक कांग्रेस के साथ ही सरकार चला रहे थे, लेकिन दबाव में थे. फिर दबाव नहीं रह पाए तो कांग्रेस का सीधे-सीधे नाम लेकर अपने साथियों के साथ कांग्रेस और उसके 'कथित' सहयोगी शिवसेवा को झटका दे डाला और कांग्रेस विरोधी 'शिवसेना' ने बीजेपी के साथ सरकार बना ली. अब राहुल गांधी उस 'द्रोही शिवसेना' को ललकार रहे हैं. वीर सावरकर का नाम ले रहे हैं. खैर, मामला इतना सीधा हो, ऐसा भी नहीं है.
एंटी हिंदुत्व एजेंडा सेटिंग के लिए बयान?
राहुल गांधी ने अब तक वीर सावरकर का नाम इसलिए नहीं लिया, क्योंकि कर्नाटक, केरल, तेलंगाना में क्या हो रहा है, उससे पूरे देश को फर्क नहीं पड़ रहा. लेकिन महाराष्ट्र में वीर सावरकर को कुछ कहने का मतलब है कि मराठाओं को याद दिलाना. कि आपका अतीत ये था. महाराष्ट्र में वीर शिवाजी के अलावा किसी नाम के सामने वीर लगता है, तो वो सावरकर ही हैं. दोनों ही हिंदुत्व का पर्याय माने जाते हैं. वैसे, वीर सावरकर पर कांग्रेस लंबे समय से निशाना साधती रही है, लेकिन इस बार का निशाना साधना सिर्फ सावरकर पर निशाना साधना नहीं है, बल्कि हिंदुत्व के खिलाफ जाकर कांग्रेस की उस लकीर को भी पहचान देना है, जो बीच में सॉफ्ट हिंदुत्व, मंदिरों के चक्कर की वजह से मिट रही थी. कई चुनावों में कांग्रेस को निराशा मिल चुकी है. एक तरफ मुसलमानों की रहनुमा होने के नाम पर कांग्रेस वाले सिर्फ बयान देते हैं, तो दूसरी तरफ राज्यों की राजनीति में छोटी पार्टियां मुसलमानों के वोट बटोर ले जाती हैं, क्योंकि बीच में ये फिर सॉफ्ट हिंदुत्व पर शिफ्ट होने लगते हैं. ऐसे में राहुल गांधी के इस बयान को सिर्फ इसी अर्थ में देखा जाना चाहिए कि वो अपनी 'पार्टी' की चिंता करने वाले आम कार्यकर्ता हैं और पार्टी को उसके कोर से अलग जाते नहीं देख पा रहे हैं. ऐसे में उनके इस बयान को एंटी हिंदुत्व पॉटिलिक्स की पिच पर एजेंडा सेटिंग के तौर पर ही लिया जाए, यही काफी है.
(इस लेख को लिखा है श्रवण शुक्ल ने. बतौर पत्रकार दशक भर से भी लंबे समय से राजनीतिक गतिविधियों के गवाह रहे हैं. कई चुनावों को कवर करने का अनुभव रहा है.)
(अस्वीकरण: लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इससे संस्थान का सहमत होना आवश्यक नहीं है.)
Source : Shravan Shukla