शरद यादव (Sharad Yadav) ऐसे समाजवादी नेता थे, जो अपने राजनीतिक जीवन के एक बड़े हिस्से में भारतीय राजनीति (Indian Politics) की एक धुरी बने रहे. विशेष रूप से भारतीय राजनीति में गठबंधन सरकारों (Coalition Government) के शीर्ष दौर में. उस दौरान शरद यादव ने कई गठबंधन किए और इस राजनीतिक यात्रा के कई मोड़ों पर दोस्तों को दुश्मन और फिर से गठबंधन बनाने के लिए वापस लौटते मित्रों के रूप में देखा. लगभग पांच दशकों के अपने राजनीतिक जीवन में शरद यादव ने केंद्रीय मंत्री, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के संयोजक और जनता दल-यूनाइटेड के अध्यक्ष के रूप में जिम्मेदारियों का निर्वहन किया. समाजवादी विचारधारा के इस दिग्गज नेता ने गुरुवार को गुरुग्राम के फोर्टिस अस्पताल में अंतिम सांस ली, जहां उन्हें दिल्ली में अपने आवास पर गिरने के बाद भर्ती कराया गया था. शरद यादव लंबे समय से गुर्दे से संबंधित समस्याओं से पीड़ित थे. इस फेर में उन्हें नियमित रूप से डायलिसिस करानी पड़ती थी. इस कद्दावर समाजवादी नेता का जन्म 1 जुलाई 1947 को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद के बाबई गांव में हुआ था.
1974 से राष्ट्रीय राजनीति के फलक पर उभरे
वह समाजवादी विचारधारा के दिवंगत मुलायम सिंह यादव और जॉर्ज फर्नांडीस जैसे अन्य नेताओं के समकक्ष एक प्रमुख नेता थे. बीती सदी के 70 के दशक में कांग्रेस विरोधी आंदोलन के दौरान शरद यादव के राजनीतिक करियर का उदय हुआ. यह साल 1974 की बात है, जब शरद यादव ने कांग्रेस के खिलाफ विपक्ष के उम्मीदवार के रूप में मध्य प्रदेश के जबलपुर से लोकसभा उपचुनाव में जीत दर्ज की थी. इस जीत ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ उनकी राजनीतिक लड़ाई को न सिर्फ बढ़ावा दिया, बल्कि राजनीति के राष्ट्रीय फलक पर भी ला बैठाया. आपातकाल के बाद शरद यादव ने 1977 में फिर से जीत हासिल की. अब उनकी गिनती आपातकाल विरोधी आंदोलन से निकले कई नेताओं में होने लगी थी.
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लालू प्रसाद को मधेपुरा से हरा शरद यादव बने अटल सरकार में मंत्री
1979 में शरद यादव लोकदल के राष्ट्रीय महासचिव बने. आठ साल बाद यानी 1987 में शरद यादव उन राजनीतिक घटनाओं में शामिल रहे, जिनकी वजह से 1988 में वीपी सिंह के नेतृत्व में जनता दल (जद) की नींव पड़ी और वह अस्तित्व में आया. 1989-90 में जब वीपी सिंह अल्पकालिक गठबंधन सरकार के प्रधानमंत्री बने, तो शरद यादव को कपड़ा और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय के प्रमुख के रूप में कैबिनेट में शामिल किया गया. शरद यादव ने 1989 में वीपी सिंह सरकार में मंत्री के रूप में कार्य किया, लेकिन राजनीति में उनका चरम एक दशक बाद 1990 के दशक के अंत में आया. शरद यादव बिहार के मधेपुरा में लालू प्रसाद यादव के खिलाफ चुनावी समर में उतरे थे. इस संसदीय सीट यादव जाति के मतदाताओं का वर्चस्व था. इसके बावजूद शरद यादव ने लालू प्रसाद यादव को पटखनी दे अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री पद हासिल किया.
1999 में एनडीए सरकार का हिस्सा बनने पर जनता दल में हुई टूट
1997 में शरद यादव जनता दल के अध्यक्ष बने. हालांकि 1999 में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार का एक घटक बनने के बाद जनता दल को टूट का सामना करना पड़ा. एचडी देवेगौड़ा के नेतृत्व में जनता दल के एक खेमे ने शरद यादव का एनडीए सरकार का हिस्सा बनने का कड़ा विरोध किया.देवेगौड़ा ने इस कदम के विरोधस्वरूप मूल पार्टी में टूट करा एक नई पार्टी बनाई, जो जनता दल (सेक्युलर) या जद (एस) के रूप में जानी गई. यादव अपने स्वयं के गुट के प्रमुख बने रहे और उन्होंने अपनी पार्टी को जनता दल-यूनाइटेड (जद-यू) का नाम दिया. शरद यादव ने एनडीए कैबिनेट में नागरिक उड्डयन, श्रम और उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री के रूप में कार्य किया. शरद यादव ने 2003 में छोटे दलों के विलय के बाद जद-यू को एक नई पार्टी के रूप में पुनर्गठित किया.
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विगत कई सालों से राजनीतिक हाशिये पर थे शरद यादव
2006 में शरद यादव फिर से जद-यू पार्टी अध्यक्ष चुने गए. 2009 के लोकसभा चुनाव में शरद यादव फिर से मधेपुरा लोकसभा सीट से चुने गए, लेकिन 2014 आम चुनावों में जद-यू की हार के बाद शरद यादव और नीतीश कुमार के संबंधों में बदलाव दिखने लगा था. 2017 के बिहार विधानसभा चुनावों में, जब नीतीश कुमार के नेतृत्व में जद-यू ने भाजपा के साथ गठबंधन किया तो शरद यादव ने इसे स्वीकार न कर बागी होना बेहतर समझा. हालांकि इसके पहले 2004 औऱ 2009 आम चुनवा में जद-यू और बीजेपी ने मिलकर चुनाव लड़ा था. जद-यू से अलग होकर शरद यादव ने अपनी खुद की पार्टी लोकतांत्रिक जनता दल शुरू की थी. हालांकि मार्च 2020 में लालू यादव के संगठन राजद में विलय हो गया. शरद यादव ने इस विलय को एकजुट विपक्ष की ओर पहला कदम करार दिया था. यह अलग बात है कि अब तक शरद यादव बिहार और राष्ट्रीय राजनीति में लगभग हाशिये पर चले गए थे और इसी बीच उन्होंने गुरुवार को भारतीय राजनीति को अलविदा कह दिया.
HIGHLIGHTS
- 1974 में जबलपुर लोकसभा उपचुनाव में जीत दर्ज कर राजनीति में उभरे
- आपातकाल के बाद 1977 में फिर जीते और राष्ट्रीय फलक पर काबिज हुए
- राजनीति के तमाम उतार-चढ़ाव देखने के बाद कई सालों से हाशिये पर थे