सुप्रीम कोर्ट की यह परंपरा रही है कि एक मौजूदा जज की टिप्पणियां ओबिटर डिक्टम बनी रहती हैं. लेकिन भारत में उन्हें गंभीरता से लिया जाता है. एक न्यूज डिबेट के दौरान अनुचित टिप्पणी को लेकर नूपुर शर्मा के खिलाफ विभिन्न राज्यों में कई एफआईआर दर्ज किए गए हैं. इस सम्बन्ध में उनकी जान को गंभीर खतरा भी है और लोग खुले तौर पर उनका सिर काटने पर पुरस्कार की घोषणा कर रहे हैं. इसमें सांसद और सार्वजनिक पदों पर बैठे अन्य लोग भी शामिल हैं.
एक लुकआउट सर्कुलर के तहत नूपुर शर्मा को पश्चिम बंगाल के नारकेलडांगा और एमहर्स्ट पुलिस स्टेशनों के सामने पेश होने के लिए कहा गया था. नूपुर शर्मा के खिलाफ देश के अलग-अलग राज्यों में कई केस दर्ज हुए हैं. उन्होंने कई राज्यों में उनके खिलाफ दर्ज सभी एफआईआर को क्लब करने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, क्योंकि इन सभी FIRs का कारण एक है. इससे पूर्व, अर्नब गोस्वामी समेत तमाम लोगों को लगभग समान परिस्थितियों में कोर्ट से राहत मिली थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने नूपुर की याचिका ख़ारिज कर दी.
मैं केवल यह आशा कर सकता हूं कि आगामी कुछ दिनों में एक और रिट सारे मामलों को एक जगह शिफ्ट करने के समर्थन में होगी, यह नूपुर शर्मा का मौलिक अधिकार है. सुप्रीम कोर्ट ने उनकी रिट याचिका पर गौर करते हुए कहा कि उदयपुर की घटना और भारत की वर्तमान स्थिति के लिए वह अकेले जिम्मेदार हैं.
इस अवलोकन ने मुझे और मेरे जैसे कई आम नागरिकों को चौंका दिया. सभी को लगता है कि यह कुछ ज्यादा ही हो गया. यह कमेंट बिना किसी जांच या मुकदमे पर चर्चा किए बगैर दिया गया था. यह टिप्पणी नूपुर के जीवन को एक बड़े जोखिम में डाल सकता है, क्योंकि उसे पहले से ही कट्टरपंथी समूहों द्वारा सिर काट दिए जाने का खतरा है. हो सकता है कि कुछ लोगों द्वारा इस टिप्पणी को औचित्य के रूप में लिया जा सकता है.
यहां मैं माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणी पर नहीं जा रहा हूं, या नूपुर किसी अपराध की दोषी हैं या नहीं, मैं वकील नहीं हूं, और न ही मैं अदालतों की प्रक्रियाओं को जानता हूं. लेकिन मुझे पता है कि उनकी याचिका कई राज्यों में दर्ज एफआईआर को एक करने के बारे में थी, जिनमें से कुछ उस न्यूज़ डिबेट से संबंधित भी नहीं थे और नूपुर शर्मा को मिल रही धमकियों को देखते हुए उन्हें रद्द किया जा सकता था और अन्य FIRs को क्लब किया जा सकता था. रिट में केवल 2 याचिकाएं थीं 1) FIR रद्द करने के लिए या 2) उन्हें एक साथ जोड़ देने के लिए.
प्राथमिकी की जांच अभी पूरी नहीं हुई है और न ही मुकदमा शुरू हुआ है, इसलिए जाहिर तौर पर उसका अपराध सिद्ध नहीं हुआ है. सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि दिल्ली पुलिस ने अभी तक उसे गिरफ्तार क्यों नहीं किया? मुझे आश्चर्य होता है कि माननीय उच्चतम न्यायालय के समक्ष ऐसा क्या था, जो ऐसी टिप्पणियां की गई और अंततः वह आदेश में भी नहीं दिखी.
उच्चतम न्यायालय केवल विभिन्न राज्यों में दर्ज अलग-अलग प्राथमिकी को एक साथ करने पर सुनवाई कर रहा था, न कि दर्ज FIRs के अपराध पर. कई लोगों ने नूपुर को दोषी कहना शुरू कर दिया है और उसके खून के प्यासे धमकीबाज कट्टरपंथियों को शीर्ष अदालत से कोई चेतावनी नहीं मिली.
हम भारत में बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं, जो कानून को अपने हाथ में नहीं लेते हैं. हम न्याय के लिए अदालतों में जाते हैं.
लेकिन माननीय न्यायालय द्वारा की गईं इन टिप्पणियों के खिलाफ लोगों का गुस्सा देखकर यह लगता है कि यह टिप्पणी लोगों को न्यायिक प्रक्रिया से दूर ले जाएगी. जबकि लोगों को आशावादी बनाना न्यायपालिका का प्रथम कर्तव्य है.
कई वरिष्ठ अधिवक्ताओं और पूर्व न्यायाधीशों ने भी कल सर्वोच्च न्यायालय के बारे में इसी तरह की टिप्पणी की है. मैं याचिकाकर्ता का बचाव नहीं, बल्कि एक सामान्य नागरिक की तरह उसकी सुरक्षा के लिए प्रार्थना कर रहा हूँ. जो माननीय न्यायालय द्वारा की गई इन टिप्पणियों के बाद मुश्किल लग रहा है.
मैं सुप्रीम कोर्ट का सम्मान करता हूँ और यह आगे भी जारी रखूंगा. लेकिन मैं चाहता हूं कि मेरी आवाज सुनी जाए और माननीय मुख्य न्यायाधीश इस पर तत्काल विचार करें.
(नोटः लेखक Himanshu Jain (@HemanNamo) एक राजनीतिक विश्लेषक हैं)
Source : Himanshu Jain
याचिकाकर्ता पर तल्ख टिप्पणियां और कट्टरपंथियों पर चुप, क्यों?
सुप्रीम कोर्ट की यह परंपरा रही है कि एक मौजूदा जज की टिप्पणियां ओबिटर डिक्टम बनी रहती हैं. लेकिन भारत में उन्हें गंभीरता से लिया जाता है. एक न्यूज डिबेट के दौरान अनुचित टिप्पणी को लेकर नूपुर शर्मा के खिलाफ विभिन्न राज्यों में कई एफआईआर दर्ज किए गए है
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सुप्रीम कोर्ट की यह परंपरा रही है कि एक मौजूदा जज की टिप्पणियां ओबिटर डिक्टम बनी रहती हैं. लेकिन भारत में उन्हें गंभीरता से लिया जाता है. एक न्यूज डिबेट के दौरान अनुचित टिप्पणी को लेकर नूपुर शर्मा के खिलाफ विभिन्न राज्यों में कई एफआईआर दर्ज किए गए हैं. इस सम्बन्ध में उनकी जान को गंभीर खतरा भी है और लोग खुले तौर पर उनका सिर काटने पर पुरस्कार की घोषणा कर रहे हैं. इसमें सांसद और सार्वजनिक पदों पर बैठे अन्य लोग भी शामिल हैं.
एक लुकआउट सर्कुलर के तहत नूपुर शर्मा को पश्चिम बंगाल के नारकेलडांगा और एमहर्स्ट पुलिस स्टेशनों के सामने पेश होने के लिए कहा गया था. नूपुर शर्मा के खिलाफ देश के अलग-अलग राज्यों में कई केस दर्ज हुए हैं. उन्होंने कई राज्यों में उनके खिलाफ दर्ज सभी एफआईआर को क्लब करने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, क्योंकि इन सभी FIRs का कारण एक है. इससे पूर्व, अर्नब गोस्वामी समेत तमाम लोगों को लगभग समान परिस्थितियों में कोर्ट से राहत मिली थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने नूपुर की याचिका ख़ारिज कर दी.
मैं केवल यह आशा कर सकता हूं कि आगामी कुछ दिनों में एक और रिट सारे मामलों को एक जगह शिफ्ट करने के समर्थन में होगी, यह नूपुर शर्मा का मौलिक अधिकार है. सुप्रीम कोर्ट ने उनकी रिट याचिका पर गौर करते हुए कहा कि उदयपुर की घटना और भारत की वर्तमान स्थिति के लिए वह अकेले जिम्मेदार हैं.
इस अवलोकन ने मुझे और मेरे जैसे कई आम नागरिकों को चौंका दिया. सभी को लगता है कि यह कुछ ज्यादा ही हो गया. यह कमेंट बिना किसी जांच या मुकदमे पर चर्चा किए बगैर दिया गया था. यह टिप्पणी नूपुर के जीवन को एक बड़े जोखिम में डाल सकता है, क्योंकि उसे पहले से ही कट्टरपंथी समूहों द्वारा सिर काट दिए जाने का खतरा है. हो सकता है कि कुछ लोगों द्वारा इस टिप्पणी को औचित्य के रूप में लिया जा सकता है.
यहां मैं माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणी पर नहीं जा रहा हूं, या नूपुर किसी अपराध की दोषी हैं या नहीं, मैं वकील नहीं हूं, और न ही मैं अदालतों की प्रक्रियाओं को जानता हूं. लेकिन मुझे पता है कि उनकी याचिका कई राज्यों में दर्ज एफआईआर को एक करने के बारे में थी, जिनमें से कुछ उस न्यूज़ डिबेट से संबंधित भी नहीं थे और नूपुर शर्मा को मिल रही धमकियों को देखते हुए उन्हें रद्द किया जा सकता था और अन्य FIRs को क्लब किया जा सकता था. रिट में केवल 2 याचिकाएं थीं 1) FIR रद्द करने के लिए या 2) उन्हें एक साथ जोड़ देने के लिए.
प्राथमिकी की जांच अभी पूरी नहीं हुई है और न ही मुकदमा शुरू हुआ है, इसलिए जाहिर तौर पर उसका अपराध सिद्ध नहीं हुआ है. सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि दिल्ली पुलिस ने अभी तक उसे गिरफ्तार क्यों नहीं किया? मुझे आश्चर्य होता है कि माननीय उच्चतम न्यायालय के समक्ष ऐसा क्या था, जो ऐसी टिप्पणियां की गई और अंततः वह आदेश में भी नहीं दिखी.
उच्चतम न्यायालय केवल विभिन्न राज्यों में दर्ज अलग-अलग प्राथमिकी को एक साथ करने पर सुनवाई कर रहा था, न कि दर्ज FIRs के अपराध पर. कई लोगों ने नूपुर को दोषी कहना शुरू कर दिया है और उसके खून के प्यासे धमकीबाज कट्टरपंथियों को शीर्ष अदालत से कोई चेतावनी नहीं मिली.
हम भारत में बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं, जो कानून को अपने हाथ में नहीं लेते हैं. हम न्याय के लिए अदालतों में जाते हैं.
लेकिन माननीय न्यायालय द्वारा की गईं इन टिप्पणियों के खिलाफ लोगों का गुस्सा देखकर यह लगता है कि यह टिप्पणी लोगों को न्यायिक प्रक्रिया से दूर ले जाएगी. जबकि लोगों को आशावादी बनाना न्यायपालिका का प्रथम कर्तव्य है.
कई वरिष्ठ अधिवक्ताओं और पूर्व न्यायाधीशों ने भी कल सर्वोच्च न्यायालय के बारे में इसी तरह की टिप्पणी की है. मैं याचिकाकर्ता का बचाव नहीं, बल्कि एक सामान्य नागरिक की तरह उसकी सुरक्षा के लिए प्रार्थना कर रहा हूँ. जो माननीय न्यायालय द्वारा की गई इन टिप्पणियों के बाद मुश्किल लग रहा है.
मैं सुप्रीम कोर्ट का सम्मान करता हूँ और यह आगे भी जारी रखूंगा. लेकिन मैं चाहता हूं कि मेरी आवाज सुनी जाए और माननीय मुख्य न्यायाधीश इस पर तत्काल विचार करें.
(नोटः लेखक Himanshu Jain (@HemanNamo) एक राजनीतिक विश्लेषक हैं)
Source : Himanshu Jain