जमात जिस तरह से बर्ताव कर रही है उसके बचाव के लिए किए जा रहे बर्तावों के सामने कुछ नहीं है. बहुत से पत्रकारों को पढ़ा और देखा उनके पास सिर्फ सवाल है जवाब नहीं. क्या अंतर है फंसे होने और छिपे होने में और औरतों के दीन की या काफिर होने में ये गाजियाबाद से निजामुद्दीन का सफर बताता है.
बेंगलोर से एक बात शुरू हुई. ट्वीट पर इनंफोसिस कंपनी के एक युवा ने लिखा कि बाहर जाकर छींकों, खांसों कोरोना फैलाओ. बात आई-गई हो गई. ट्वीट पर कंपनी ने एक्शन लिया और नौकरी ले ली. लगा मामला खत्म हो गया. कुछ दिन बाद निजामुद्दीन में सैकड़ों लोगों के छिपे होने की खबर आने लगी. छिपे हुए लिखने के लिए शाहिद सिद्दीकी की तरह मुझे हिंदी काव्याकरण नहीं पलटना है, क्योंकि छिपे होना और फंसे होना का क्या अंतर है वो मुझे मालूम है.
खैर रिपोर्ट करनी शुरू की. एक के बाद एक बसों में भरकर जमाती निकलने शुरू हो गए. उनको अलग-अलग जगह पर ले जाने का काम शुरू होने लगा. अचानक रिपोर्टर ने कहा कि पुलिस ने थोड़ा दूर हटने के लिए कहा है. लगा कि शायद एतिहात बरती जा रही रही होगी, लेकिन कुछ देर बाद खबर आनी शुरू हुई कि ये तमाम लोग थूक फेंक रहे हैं वहां लोगों पर सड़कों पर. फिर एक चैनल की एंकर को भागते हुए चिकित्साकर्मी ने बताया कि गाड़ियों की खिड़कियां बंद कराई जा रही हैं, क्योंकि ये थूक रहे हैं.
लगा कि ये क्या है. क्या ये किसी रेशनल दिमाग में बात आ सकती है. आखिर ये सैकड़ों लोग वहां क्या कर रहे थे. फिर अगर इनको हॉस्पिटल भेजा जा रहा है तो फिर पुलिसकर्मियों और स्वास्थ्यकर्मियों सहित सड़क पर थूकने से क्या हासिल कर रहे हैं और फिर याद आ गया है अरे भाई बेंगलोर से मिली लाइन पर चलना शुरू हो गया है. फिर शुरू हो गया एक और विक्टिम कार्ड का सामने आना. लगातार पिछले कुछ सालों से दिख रहा है कि एक गैंग सिर्फ मोदी विरोध को अपना आधार बनाए बैठा और ये मोदी का विरोध नहीं जनतंत्र का विरोध बनकर खड़ा हो गया.
तमंचे के दम पर मोदी को सत्ता नहीं मिली है उसको इस देश की जनता ने अभूतपूर्व बहुमत लाइनों में खड़े होकर और अपने आपको अंग्रेजी मीडिया और अंग्रेजी बोलने वालों की गालियों को सुनकर भी दिया. खैर ये लोग क्या चाहते हैं इस पर अपने को कोई आपत्ति नहीं है क्योंकि जब तक वो किसी पीनल कोड के टूटने के दायरे में नहीं आती है उनका उतना ही अधिकार है जितना किसी दूसरे आदमी का हो सकता है और पहला बयान आया कि इन लोगों ने कहा था कि वो पुलिस प्रशासन को गुहार की थी उन्हें निकाला जाएं.
एक तमाम वामपंथी जो इस देश में सेक्युलरिज्म का ठेका अकेले लिए हुए बोलने लगे कि वहां देखिये राम नवमी देखिये (हालांकि वहां भी देख लीजिए) फलां ने ये किया. फलां ने ये किया, लेकिन वीडियो भी आ गया. एसएचओ की उस वीडियो पर भी बहुत बातें हुईं, लेकिन मैंने देखा और सोचने लगा कि किस तरह से पुलिस प्रशासन भी इनकी न्यूसेंस वैल्यू से डरने लगे. पुलिस अधिकारी शुरू में ही बोलता है कि ये कैमरे लगाए हुए हैं और फिर अपनी बात शुरू करता है.
फिर आप गिनिये एक-एक बात एक झूठ, पुलिस अधिकारी कह रहा है कि आपको पहले से ही कहा हुआ है, लेकिन आप मान नहीं रहे हैं, फिर पूछता है कि कितनी संख्या है तो वो उस वीडियो में भी साफ तौर पर झूठ बोलते हैं कि हजार है और जब बाहर निकले तो संख्या 2300 से ज्यादा निकली. और कहां से आएं हुए हैं तो जवाब आया कि फ्लां फला से लेकिन किसी ने भी एक बार नहीं कहा कि विदेशी है.
आप सोचिए कि कितनी संख्या में विदेशी हैं, लेकिन वो साफ नहीं बोल रहे हैं. इसके बाद स्पीच का आना शुरू हुआ. फिर शुरू हुआ हॉस्पिटल्स से खबरों का आना. नर्सिंग स्टॉफ के सामने नंगे घूम रहे हैं. भद्दी-भद्दी गालियां और अश्लील इशारे. ये सब सड़क पर घूमते हुए लोग नहीं जमात की उस जमात में शामिल हैं जो इस्लाम की प्रीचिंग करते हैं. ये प्रीचर है उपदेशक हैं. हालत ये हुई कि छह लोगों को वहां से निकाल कर किसी और जगह भेजना पड़ा. इलाज चल रहा है (नहीं तो इसका भी गलत मतलब हो जाएंगा).
इसके बाद अलग-अलग जगहों पर इनको खोजा गया जो पहले जा चुके है. आंकड़े खुद बोल रहे हैं कि ये किस तरह से इस वक्त देश के सामने एक बड़ा संकट खड़ा कर चुके हैं. ये संकट यकीनन कुछ लोगों को सुकून दे रहा होगा. आगरा की एक मस्जिद का सिर्फ एक उदाहरण दे रहा हूं मस्जिद के बाहर गेट पर ताला लगा था और आसपास के लोगों ने कहा कि ये तो कई दिन से बंद है कोई आया गया नहीं है, लेकिन पुलिस ने तलाशी ली और अंदर से 18 लोग निकले जो जमात से लौटे थे. फिर मुंगेर, सीतमढ़ी... बहुत लंबी कतार है. तमिलनाडु अंडमान जैसे इलाकों तक जमाती इस घातक बीमारी को फैला चुके हैं.
अब इसके बाद सवालों को देख लीजिए, वैष्णो देवी में 400 लोग हैं तो उनके फंसे क्यों लिखा जाता है तो शाहिद सिद्दीकी साहब वो संख्या बता रहे होंगे निकलने के लिए छिप कर बीमारी को फैलाने के लिए नहीं. और बाहर कही ताला नहीं लगा होगा. पथराव नहीं हुआ है. रामनवमी के जुलूस की कुछ फोटो आप लोगों को भी शेयर करनी चाहिए. ताकि उन लोगों के खिलाफ भी एफआईआर लिखाई जा सके.
ऐसे बहुत से वीडियो देख रहा हूं जिसमें कोरोना को काफिरों के खिलाफ ऊपरवाले का भेजा गया हथियार बता रहे हैं और भी बहुत सी कहानियां हैं, लेकिन मैं सोचता हूं कि जो लोग इसको फैलाकर सिर्फ काफिरों को मारने का हथियार मान रहे हैं उनसे ज्यादा खतरा उन लोगों से जो ये जानते हैं कि जमात का जमाती एजेंडा क्या है और वो इसको लिख क्या रहे हैं.
गाजियाबाद के सीएमएस रविंद्र सिंह राणा ने बताया कि जमात से आए यह छह लोग गंदे-गंदे इशारे किया करते थे. स्टाफ नर्स के साथ बदतमीजी किया करते थे उसे बीड़ी सिगरेट मांगा किया करते थे. और तो और कपड़े उतार कर आइसोलेशन वार्ड में डांस किया करते थे घूमा करते थे मना करने के बाद भी वह लोग नहीं मान रहे थे. एक साथ सभी लोग कमरे में बैठकर बातचीत किया करते थे. इन सब बातों से परेशान होकर जिला प्रशासन ने स्टाफ नर्स द्वारा दी गई कंप्लेंट पर एक्शन लेते हुए एफआईआर दर्ज कराई. सीएमएस ने यह भी बताया कि यहां पर छह लोग आइसोलेशन वार्ड में एडमिट थे. पांच को यहां पर रात ही शिफ्ट कर दिया गया है, जबकि एक व्यक्ति जोकि कोरोना वायरस है उसका इलाज अभी भी अस्पताल में किया जा रहा है.
(ये लेखक के अपने विचार हैं. न्यूज स्टेट का इस विचारों से कोई वास्ता नहीं है)
Source : Dhirendra Pundir