शाम के लगभग 5:30 बजे थे और मैं अपने ही ख्यालों में खोया हुआ कार ड्राइव कर रहा था. पिछले 24 घंटों में मैं करीब हजार किलोमीटर सड़क नाप चुका था. एक्सप्रेस वे पर लगे स्पीडोमीटर को चकमा देने के लिए गति थोड़ी कम तो की थी फिर भी औसत रफ्तार आज थोड़ा सा ज्यादा ही थी. पिछले 500 किलोमीटर की दूरी मैंने लगभग 4:30 घंटे में तय की थी. गूगल मैप दिखा रहा था कि मैं लगभग एक घंटे में अपने फ्लैट पर पहुंच जाऊंगा. डीएनडी को पार करते हुए जैसे ही मैं 500 मीटर आगे बढ़ा तभी मुझे एक गरीब परिवार अपने 5 बच्चों के साथ सड़क के किनारे चलता हुआ दिखाई दिया. उन्हें देखकर मैं अपनी गाड़ी की रफ्तार धीमी करते हुए थोड़ा आगे जाकर रुक गया.
गाड़ी से उतरा और कपड़े से अपनी गाड़ी को साफ करने का दिखावा करने लगा, पर मैं यह भी देख रहा था कि परिवार मेरे नजदीक कब तक पहुंचेगा. परिवार के नजदीक आते ही उसके मुखिया से यह पूछा कि आपको कहां जाना है? मैले से कपड़े पहने, चेहरे और शरीर पर ढेर सारी घमौरियां लिए सिर के ऊपर रखी अपनी गठरी को थोड़ा सा संभालते हुए वह बोला बाबूजी हम पालम जा रहे हैं वहीं झुग्गी में हम रहते हैं. मैंने थोड़ा कड़े लफ्जों के साथ उससे बोला अपना सामान इस डिक्की में रख सकते हो और गाड़ी में पीछे वाली सीट पर बैठ जाओ, मैं उधर ही जा रहा हूं, रास्ते में छोड़ दूंगा. मेरे अंदर अभी से महान उदार हृदय वाला एक महापुरुष जन्म लेने लगा था. उन लोगों को अपनी गाड़ी में जगह देते हुए मैं तिरछी निगाह से आने जाने वाली गाड़ियों पर भी नजर रखे हुए था.
एक आभासी ख्याल मेरे दिमाग में था कि आने जाने वाले लोग सोच रहे होंगे ये कितना नेक दिल इंसान हैं. मैंने अपनी गाड़ी की डिक्की में उनके बर्तनों की पोटली, खाने का सामान, कुछ कपड़ों की पोटली रखने को बोल दिया. इसके बात संवेदनहीन मन से उन सब लोगों को अपनी गाड़ी की पिछली सीट पर बैठने को बोल दिया. अब मुखिया मुझसे बोला बाबूजी आगे दो लोग और जा रहे हैं अगर आप उनको भी अपनी गाड़ी में बैठा लेंगे तो आपकी बहुत कृपा होगी. उनमें से एक अपाहिज लड़की भी है. अब मेरा हृदय और ज्यादा दयालु हो गया. अब बारी थी मैं अपने आप को एक महामानव की तरह आभास कराऊं, कुछ दूर जाकर उस व्यक्ति के परिवार के और सदस्य भी मिल गए. मैंने अपनी गाड़ी रोकी और उनको बैठने के लिए बोल दिया. वो लोग मेरी गाड़ी की पिछली सीट पर सवार होते चले गए. लगभग 4 वयस्क 5 बच्चे और सामान की तीन चार गठरियां अब पिछली सीट पर थीं. अभी भी 4 बच्चे और एक वयस्क बचा हुआ था.
आज मेरे मन में जुनून था एक नेक दिल फरिश्ता बनने का. अपने मास्क को नाक के थोड़ा और ऊपर चढ़ाते हुए मैं उस आदमी से बोला कि बच्चों के साथ आगे वाली सीट पर मेरे साथ बैठ सकते हो. वो आदमी और बच्चे मेरे बगल वाली सीट पर बैठ गए. गाड़ी स्टार्ट करते ही उस आदमी की पत्नी बोली बाबूजी आप बहुत नेक दिल इंसान हो भगवान आपका भला करेगा. मैंने उसको लगभग झड़कते हुए चुप करा दिया. इस व्यवहार से बच्चे खिल खिलाकर हंस दिए. अब मेरे अंदर का महान इंसान थोड़ा सामान्य होने लगा. फिर मैंने बच्चों से पूछा बच्चों गाड़ी में बैठ कर मजा आ रहा है ना.
सारे बच्चे एक साथ हां बोले. फिर मेरे मस्तिष्क ने बच्चों से पूछा कि ऐसा मजा लेने के लिए पता है क्या करना पड़ता है. मुझे रत्ती भर संदेह नहीं था कि कीड़े मकोड़ों की तरह जिंदगी जीने वाले बच्चों में से कोई मेरी बात का जवाब देगा. तभी लगभग 5 से 6 साल की एक लड़की तपाक से बोली हां मुझे पता है पढ़ाई करने से हम ऐसी जिंदगी जी सकते हैं. अब मैं खुद को सामान्य स्तर से थोड़ा नीचे महसूस करने लगा था. उलझे बालों और मैले कुचैले कपड़े पहने हुए जिसे देख कर लग रहा था कि वह पिछले एक महीने से ना नहाई हो, पर उसकी आंखों की चमक को देखकर ऐसा लगता था कि मानो उसकी आंखें दिन में चार-पांच बार आसुओं से नहाती हों, बड़े हंस कर जवाब दे रही थी वो मेरी हर बात का और उसका हर एक जवाब मुझे यह बता रहा था कि मुझे मौका नहीं मिला साहब आपको मौका मिल गया . इसलिए आप गाड़ी में चल रहे हो और हमें पाठ पढ़ा रहे हो अगर मुझे भी मौका मिलता तो मैं आप जैसों को स्कूल में पढ़ा रही होती.
अब गरीबी की वो गंध जाने क्यों मेरी नाक में चुभने लगी थी. इतनी दरिद्रता में रहते हुए भी उस बच्ची का वो खिलखिलाना, उसकी आंखों की चमक अब मुझे असहज कर रही थी. तभी अचानक से आगे बैठे हुए एक बच्चे की कोहनी मेरी कोहनी से टच कर गई मैंने बोला ज्यादा हिलो मत चुपचाप बैठे रहो. यूं ही बात करते करते मैं लगभग दिल्ली गुड़गांव के बॉर्डर तक पहुंच गया, पालम फ्लाईओवर से उतरते ही मैंने अपनी गाड़ी एक साइड में लगा दी और उन लोगों से गाड़ी से उतरने के लिए बोला. वह लोग एक-एक करके गाड़ी से उतर गए और अपना सामान भी डिग्गी से बाहर निकाल लिया. मेरी जासूस निगाहें यह देख रही थीं कि कहीं वह मेरा कोई सामान तो नहीं निकाल रहे.
जाते-जाते मैंने उस छोटी लड़की से फिर से पूछा बेटा पढ़ाई करोगे. बच्ची बोली जी सर लड़ेंगे और पढ़ेंगे. मैं मुस्कुराया और आगे बढ़ चला लेकिन गरीबी की वो गंध गाड़ी के अंदर मुझे अधमरा कर रही थी इसलिए मैंने अपनी गाड़ी के चारों शीशे खोल दिए और गाड़ी को 80 की रफ्तार पर आगे बढ़ा दिया. तभी गाड़ी के पीछे रखी किताब तेज हवा से खुल गई और उसके पन्ने जोर जोर से फड़फड़ाने लगे कि मानो पीछे वाले शीशे से देखते हुए उस बच्ची को बाय बोल रहे हों. मैंने मुस्कुराते हुए और ये सोचते हुए कि घर पहुंचते ही दो बार साबुन से नहाना है और गाड़ी की भी सफाई करानी है, गाड़ी के शीशे बंद कर दिए और आगे बढ़ चला.
Source : News Nation Bureau