उपयोग और उपभोग या यूं कहें उपयोग के लिए उपभोग भारतीयता या भारतीय संस्कृति का ज्ञान है. उपभोग के लिए उपयोग कहीं से भी हमारी पहचान नहीं रही है. जल प्रकृति का दिया उपहार है, सबका इस पर बराबरी का हक है चाहे कोई राजा है या रंक है. जल के बिना कल संभव नहीं है. हमने बेहतर कल के आस शहर बनाएं पर हम प्राकृतिक संसाधनों का दोहन अपनी सीमा से ज्यादा करने लगे. जल की जरूरत सबके लिए लगभग बराबर है अगर बात उपयोग तक सीमित है. किन्तु उपभोग पर ये अलग हो जाती है. संसाधन युक्त होने का कतई ये मतलब भारतीय परम्परा अनुसार नहीं है कि हम दूसरों के साधन पर डाका डालें या प्रकृति द्वारा दिए गए संसाधन का दोहन करे. भारतीय संस्कृति कहती कि अपने पेट भरने की चिंता के साथ दूसरों के पेट भरने की चिंता ही संस्कृति है, वरना दूसरे का छीन कर खा लेना तो विकृति है. आज तेजी से घटता हुआ जलस्तर कल की आस में बसाए गए शहरो के लिए अलार्म है कि संसाधन सम्पन्न भले ही आप होगे पर मुख्य साधन का उपयोग करिए, उपभोग करेंगे तो ये शहर मरूस्थल में तब्दील है जायेंगे.
आज दिल्ली के पाश कॉलोनियों तक को टैंकर के भरोसे जीना पड़ रहा है. ये पश्चिमवाद का परिणाम है कि हम आय से ज्यादा खर्च करने लगे हैं जीवन में क्रेडिट कार्ड और इएमआई का महत्त्व बढ़ा चुके हैं . पर क्रेडिट कार्ड की भी लिमिट या सीमा होती है जो आपके आय के अनुपात में होती है. बैंक में कर्ज लेने में भी सीमा निर्धारित है पर धरती से जल लेने में आज तक कोई सीमा नहीं है. और नहीं हम सीमा के अनुसार लेना चाहते हैं . उपभोक्तावाद ने भी जल बर्बादी में इक बडी भूमिका निभाई है. आज मोटर के कारण जल निकालने की मेहनत शून्य हुई और जल बर्बादी चरम की तरफ बढ़ गई. गाड़ी धोने से लेकर नहाने तक में जल की मात्रा बढ़ती गई. टोटी खोल कर ब्रश करने की आदत और भी बहुत सी जगह जल बर्बादी चरम पर पहुंची क्योंकि जल निकालने में मेहनत शून्य हुई है.
पहले भारतीय परम्परानुसार जल को माथे से लगा स्नान की परम्परा थी, अब तो जलक्रीड़ा है , नल खुला है, स्विमिंग पुल है,सशवर है . अधिक जल का उपयोग पाप का भागी बनता था ये नैतिक शिक्षा समाज और परिवार से मिलती थी. गंगा मैया का रूप होता था जल ,नहाने से पहले नमन की परम्परा थी . पर पश्चिमवाद के प्रभाव ने परम्पराओं से दूर किया और अब जल हमसे दूर होता जा रहा है. जल प्रदूषण की बात दूर अभी तो पर्याप्त जलापूर्ति हो ये लक्ष्य पूरा नहीं हो पा रहा. कैंसर के विषाणु युक्त जल , विकृत जल आजकल विकसित शहरो की पहचान है. और ये शहर अपनी विकृतितता गाव तक फैला रहे हैं. न ही वैकल्पिक जल के समानांतर कोई साधन तलाशने की शुरुआत हो रही है. अगर आंकड़ों की बात करें तो धरती से निकला जा रहा जल और उसके रिचार्ज के लिए किए गए प्रयासों में जमीन आसमान सा अंतर है और उसका परिणाम साफ देखने को मिलना शुरू हो चुका है. जैसे जैसे कावरड एरिया बढ़ रहा है जल के धरती के अंदर जाने वाला क्षेत्र सिकुड़ रहा है.
हमारे देश में दुनिया की आबादी का 18 प्रतिशत जनसंख्या है पर लगभग 4 प्रतिशत जल संसाधन है. जो इसे दुनिया के सबसे अधिक जल दुर्लभता या संकट वाले देशों में एक बनता है. भूजल स्तर में सुधार के लिए बहुत योजनाएं चल रही है पर उनको ध्यान से देखने पर पता चलता है कि उनमें अधिकतम गांवों में केन्द्रित है. इसका इक उदाहरण अटलभू जल योजना है . गांवों में आज भी पानी सिर्फ उपयोग के लिए या फसलों में प्रयोग होता है. जलस्तर ज्यादा नीचे शहरों के जा रहे हैं जो बेहतर आस के लिए और साधन सम्पन्न लोगों के लिए बसाए गए. दिल्ली जैसे शहर में पानी के लिए मारा मारी, टैंकरों के पीछे दौड़ में दिखाने के लिए पर्याप्त है कि जल के बिना कल क्या दृश्य होने वाला है. जल अभाव के मुख्य कारण घटती वृक्षों की संख्या और बढ़ता कंक्रीट का क्षेत्रफल है. पंजाब में पानी बचाओ पैसा कमाओ जैसी योजनाएं चली पर इनका प्रभाव जमीन से ज्यादा कागज पर ही सीमित रहा.
आज बेहतर कल के लिए या तो पानी बचाने की परियोजना को सख्ती से लागू करना होगा या फिर वैकल्पिक साधन जो जल के समान हो उसकी खोज करनी होगी. इसके अभाव में वैकल्पिक ऊर्जा के स्त्रोत या वैकल्पिक पेट्रोल, डीजल के स्त्रोत धरे के धरे रह जाएंगे. अब यही समय है जब हमें फिर से जल स्त्रोतो को पुनर्जीवित करने के बारे में सोचना पड़ेगा . जल के संरक्षण को बढ़ाने के लिए व्यक्तिगत, सामुदायिक व संस्थागत स्तर पर काम करना पड़ेगा. जिस तरह हम आपने आने वाले कल के लिए घर, जमीन छोड़कर जाने के लिए जी-तोड़ मेहनत करते हैं ठीक वैसे ही जल भी छोड़ कर जाए इसके लिए पर्याप्त प्रयास करना पड़ेगा. अन्यथा सब कुछ बेकार हो जाएंगा. पीने योग्य स्वच्छ जल तो अब बिना आर ओ के किसी शहर में उपलब्ध ही नहीं है ये कैसा विकास है. क्या विकास की पहचान विकृत जल , वायु से ही होगी . ये सोचने,समझाने और जागने का समय है. बेहतर कल बिना जल संभव नही हो सकता.
रहीम दास जी ने कहा था..
रहिमन पानी राखिए पानी बिन सब सून . पानी बिना न उबरे मोती मानुष चून.
रिपोर्ट-
डॉ. कौशल कांत मिश्रा
डॉ. विनय पाठक
Source : News Nation Bureau