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West Bengal By Polls: कांग्रेस का गढ़ बना TMC का ठिकाना, भवानीपुर का अपना ही इतिहास है

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के 30 सितंबर को होने वाले उपचुनाव में बतौर टीएमसी उम्मीदवार यहाँ से चुनावी मैदान में उतरने के कारण भवानीपुर सुर्खियों में है. एक समय कांग्रेस का गढ़ रहा भवानीपुर अब तृणमूल कांग्रेस का गढ़ है.

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nitu pandey
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ममता बनर्जी ( Photo Credit : File Photo )

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मिनी भारत के नाम से मशहूर पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता की हॉट सीट भवानीपुर विधानसभा क्षेत्र का इतिहास भी रोचक है. ब्रितानी ईस्ट इंडिया कंपनी ने 10वें मुगल सम्राट फर्रुखसियर के राज में भवानीपुर में ही अपनी जड़ें जमाई थी. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के 30 सितंबर को होने वाले उपचुनाव में बतौर टीएमसी उम्मीदवार यहाँ से चुनावी मैदान में उतरने के कारण भवानीपुर सुर्खियों में है. एक समय कांग्रेस का गढ़ रहा भवानीपुर अब तृणमूल कांग्रेस का गढ़ है. भाजपा से प्रियंका टिबड़ेवाल प्रत्याशी है.  ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल में अपने ठिकाने या चौकी के इर्दगिर्द के 38 गांवों से किराया वसूलने का अधिकार फर्रुखसियर से हासिल कर लिया. इन्हीं गांवों में भवानीपुर भी शुमार था. 20वीं सदी की शुरुआत से भवानीपुर का विस्तार शुरू हुआ. यहां अलग-अलग ट्रेड के लोग, वकील और संभ्रांत लोगों की बस्तियां बन गईं. भवानीपुर कोलकाता में एक अलग पहचान वाला इलाका बन गया. 

मारवाड़ी गुजराती बाहुल्य

भवानीपुर सीट से 2011 में विधानसभा चुनाव लड़ चुके एडवोकेट नारायण जैन कहते हैं कि 87.14 फीसदी साक्षरता दर वाले क्षेत्र भवानीपुर सीट से ममता 2 बार (2011, 2016 में) विधायक रह चुकी हैं. दिलचस्प तथ्य ये है कि भवानीपुर ममता का गृह क्षेत्र भी है. 1952 में भवानीपुर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र बना. 1977 में सीमांकन के बाद यह निर्वाचन क्षेत्र खत्म कर दिया गया. 2011 में भवानीपुर फिर एक अलग निर्वाचन क्षेत्र बना. तृणमूल यहां सभी तीन विधानसभा चुनावों में विजयी रही है. इस क्षेत्र में 65 फीसदी गैर-बांग्लाभाषी हिन्दू हैं जिसमें अधिकांश गुजराती मारवाड़ी हैं.

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एक फरमान ने बदल दी बंगाल की तस्वीर

11 जनवरी 1713 से 28 फरवरी 1719 तक औरंगाबाद से साम्राज्य चलाने वाले 10 वें मुगल सम्राट फर्रुखसियर के एक फरमान ने बंगाल की तस्वीर बदल दी. फर्रुखसियर ने ही बंगाल में ईस्ट इंडिया कंपनी को अपनी जड़ें जमाने में मदद की थी. दरअसल 1715 में एक ब्रितानी शिष्टमंडल जॉन सुरमन के नेतृत्व में फर्रुखसियर के दरबार में पहुंचा था. फर्रुखसियर उस समय जानलेवा घाव से पीड़ित था. शिष्टमंडल में शामिल डॉक्टर हैमिल्टन नामक डाक्टर ने उसका इलाज किया और वह ठीक हो गया. इससे खुश होकर फर्रुखसियर ने अंग्रेजों को भारत में कहीं भी व्यापार करने की अनुमति व फिरंगियों के बनाए सिक्कों को भारत में सभी जगह चलाने की मान्यता दे दी.

Source : Devbrat Tiwari

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