कैराना के पलायन की पीड़ा और मुजफ्फरनगर दंगों के दाग अभी कम ही पड़े थे कि नाहिद हसन और रफीक अंसारी के सपा प्रत्याशी बनने से पूरा पश्चिमी उत्तर प्रदेश फिर से आशंकाग्रस्त हो गया है. ऐसा होना स्वाभाविक भी था, क्योंकि ये दोनों कैराना से हिंदुओं के पलायन के मास्टर माइंड थे. समाजवादी पार्टी के इस फैसले ने समूचे प्रदेश के सियासी तापमान को एकाएक बढ़ा दिया है. जिस आचरण के कारण अखिलेश सरकार को उच्चतम न्यायालय ने 'दंगों वाली सरकार' के नाम से पुकारा था, उसकी पुनरावृति समाजवादी पार्टी के भविष्य के इरादों को साफ करती है. यह तुष्टीकरण की तेजाबी तलवार से पश्चिमी उत्तर प्रदेश को फिर दंगों के दावानल में झोंकने की मंसूबेबन्दी नहीं तो और क्या है? क्या कैराना के जरिये इस क्षेत्र को कश्मीर बनाने की तैयारी नहीं दिख रही है?
वरिष्ठ पत्रकार भास्कर दूबे कहते हैं कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुस्लिम और जाट का एक पाले में होना विजय की गारंटी मानी जाती है. सपा और रालोद का गठबंधन इसी 'वोट बैंक' की 'गारंटी' को भुनाने की कोशिश है. लेकिन तुष्टिकरण की वेदी पर 'जीवन और जीविका' गंवाने को विवश हुई 'हरित प्रदेश' की जनता फिर झांसे में नहीं आने वाली. वह 'सुरक्षा' की गारंटी चाहती है. उसके लिए योगी का 'दंगा मुक्त शासन काल' किसी मुंहमांगी 'मुराद' से कम नहीं था.
तो क्या मान लिया जाए कि जनता के मध्य 'असुरक्षा बोध' बढ़ाते सपा प्रमुख के कदमों ने यूपी की सत्ता का 'प्रवेश द्वार' कहे जाने वाले पश्चिमी यूपी में भाजपा को बढ़त प्रदान कर दी है? क्या जाति के जज्बात पर शांति का अहसास भारी पड़ेगा? क्या बहन की लाज बचाने गए सचिन और गौरव की मुजफ्फरनगर में की गई निर्मम हत्या आज भी स्वाभिमानी जाट समुदाय को कचोटती है? सत्ता के स्वयंवर में तुष्टीकरण के सोहर गाता विपक्ष क्या पलायन के आर्तनाद के सम्मुख सुरहीन हो गया है? क्या हत्या के उन अपराधियों को पश्चिम का 'जाट' माफ कर देगा, जिन्हें समाजवादी पार्टी बुलाकर अपने गले का हार बनाती थी?
राजनीतिक विश्लेषक डॉ महेंद्र कुमार सिंह बताते हैं कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में संघर्ष जिन्ना बनाम गन्ना, प्रगति बनाम पलायन, तुष्टीकरण बनाम 'सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास' का है. आस्था, अस्मिता और अर्थव्यवस्था की कसौटी पर जनता सभी दलों का मूल्यांकन कर रही है.
सामाजिक चिंतक अशोक मिश्रा कहते हैं कि कभी अपराधियों के लिए सफारी जोन रहा पश्चिमी यूपी आज आमजन के लिए सेफ जोन बन गया है. दनादन होती मुठभेड़ों से पस्त बदमाशों के लिए अब कारागार, कब्रिस्तान अथवा कोई दूसरा प्रदेश ही ठिकाना बचा है. सपा सरकार में दंगों की प्रयोगशाला बना यह क्षेत्र आज पूरी तरह से दंगा मुक्त है. यही कारण है कि यहां विकास कुलांचे भर रहा है.
दरअसल सुरक्षा की स्याही से ही तरक्की की तस्वीर बनती है. और तरक्की से ही क्षेत्र की तकदीर बनती है. अतः अन्य क्षेत्रों की तरह ही सुरक्षा पश्चिम उत्तर प्रदेश की भी प्राथमिक आवश्यकता है. सुरक्षा यानी आर्थिक सुरक्षा, अस्मिता की सुरक्षा, जीवन की सुरक्षा, संभावनाओं की सुरक्षा, जीविका की सुरक्षा. योगी इसे सुनिश्चित करने में सफल हुए हैं.
दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस-वे, गंगा एक्सप्रेस-वे, आईटी पार्क, इलेक्ट्रॉनिक बस चार्जिंग स्टेशन का लोकार्पण और जेवर एयरपोर्ट, मेरठ में ध्यानचंद विश्वविद्यालय, अलीगढ़ में राजा महेंद्र प्रताप सिंह विश्वविद्यालय का शिलान्यास, रक्षा गलियारे की आधारशिला तथा नोएडा में विश्वस्तरीय फिल्म सिटी निर्माण का निर्णय विकास की नई पटकथा लिख रहा है. बागपत, शामली, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर होते हुए 12 हजार करोड़ की लागत से बनने वाले दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेस-वे के निर्माण का ऐलान क्षेत्र में बहुआयामी विकास की संभावनाओं को नए आयाम प्रदान कर रहा है. इसके साथ ही आतंकी गतिविधियों के कारण चर्चित देवबंद की जमीन पर एटीएस मुख्यालय का निर्माण योगी की नीति ‘काम भी-लगाम भी’ को बखूबी बयान करता है.
दीगर है कि योगी सरकार ने 43 लाख गरीबों को पक्के मकान, 2 करोड़ 61 लाख गरीबों को घरों में शौचालय, 1 करोड़ 56 लाख परिवारों को नि:शुल्क रसोई गैस कनेक्शन, 9 करोड़ लोगों को आयुष्मान भारत योजना और मुख्यमंत्री जन आरोग्य योजना से 5 लाख रुपये का स्वास्थ्य बीमा कवर प्रदान करने का कार्य किया है तो वृद्धावस्था पेंशन, दिव्यांग पेंशन, विधवा पेंशन की राशि को दोगुना कर वंचित तबके को बड़ी सहूलियत प्रदान की गई. सामाजिक न्याय की भावना को पोषित करती इन सभी योजनाओं का लाभ पश्चिमी यूपी के लाखों नागरिकों को भी मिला है, वह भी बिना किसी भेदभाव के. ये सभी कार्य तो पूर्ववर्ती सरकारें भी कर सकती थीं, फिर सवाल है कि आखिर क्यों नहीं हुए. क्या विकास उनके एजेण्डे में नहीं था अथवा सामर्थ्य का अभाव था. कारणों के अनेक विवेचनात्मक पहलू हो सकते हैं, लेकिन सपा सरकार में दंगों की फसल लहलहायी, गन्ना किसान भुगतान के लिए परेशान रहा, हिन्दू व्यापारियों का पलायन हुआ, यह सच था.
जबकि योगी सरकार में गन्ना किसानों को रिकॉर्ड भुगतान प्राप्त हुआ. भुगतान राशि पूर्व की बसपा सरकार द्वारा की गई धनराशि का तीन गुना और सपा सरकार से 1.5 गुना अधिक है. आकड़े कहते हैं कि बसपा और सपा की सरकारों ने 10 साल में जितना भुगतान गन्ना किसानों को किया आकड़े था, लगभग उतना योगी सरकार ने अपने साढ़े 4 साल में किया है. उत्तर प्रदेश में 45.74 लाख से अधिक गन्ना किसानों को 2017-2021 के बीच ₹1,56,508 करोड़ से अधिक का रिकॉर्ड गन्ना मूल्य भुगतान किया गया है जो सरकार के किसान समर्थक रुख को दर्शाता है. योगी सरकार ने गन्ना किसानों के लिए बीते सालों में अभूतपूर्व काम किया है. हाल ही में गन्ना किसानों के लिए लाभकारी मूल्य को 350 तक बढ़ाया है.
उल्लेखनीय है कि 2007-2012 तक मायावती सरकार के दौरान महज 30 लाख गन्ना किसानों को 52,131 करोड़ और अखिलेश शासन के दौरान वर्ष 2012-2017 तक 33 लाख किसानों को 95,215 करोड़ का भुगतान किया गया था. ज्ञातव्य है कि योगी सरकार ने अखिलेश सरकार के बाद से गन्ना किसानों के 10,661 करोड़ के बकाया को भी मंजूरी दे दी है. यही नहीं, निजी नलकूपों के लिए बिजली दरें में की गई 50 फीसदी की कटौती भी गन्ना फसल की लागत को कम कर गन्ना किसानों के मुनाफे में बढ़ोत्तरी करेगी.
अर्थव्यवस्था के साथ अस्मिता के मुहाने पर भी योगी सरकार ने पश्चिम के लोगों के मन में गौरवबोध उत्पन्न किया है. अब देखिए, हजारों वर्षों से परम सिद्ध शक्तिपीठ मां शाकम्भरी देवी मंदिर सहारनपुर में स्थापित है, लेकिन आम नागरिक देवबंद में स्थित इस्लामी मरकज की शीर्ष संस्थान दारुल उलूम के कारण सहारनपुर को जानता है. लेकिन योगी सरकार ने राज्य सरकार द्वारा स्थापित सहारनपुर स्टेट यूनिवर्सिटी को मां शाकंभरी देवी को समर्पित करते हुए आम जनता की भावनाओं के अनुरूप उक्त विश्वविद्यालय का नाम शाकंभरी विश्वविद्यालय कर दिया है.
ऐसे ही अलीगढ़ मुस्लिम यूनीवर्सिटी के निर्माण के लिए सैकड़ों बीघे जमीन समेत अनेक संसाधन दान स्वरूप मुहैया कराने वाले महान जाट राजा महेंद्र प्रताप सिंह इतिहास के पन्नों में दफ्न हो गए थे. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के किसी भी कोने में उनका नाम तक अंकित नहीं है. ऐसे महान राष्ट्रभक्त के प्रति कृतज्ञता और श्रद्धांजलि स्वरूप भाजपा सरकार राज्य स्तरीय विश्वविद्यालय बना रही है. इस तरह हाशिए पर पड़ी अस्मिता को सम्मान देने के प्रयासों ने भाजपा को अन्य दलों से काफी आगे कर दिया है. सवाल है कि सपा और बसपा ने अपनी हुकूमतों में यह कार्य क्यों नहीं किए?
हैरत होती है कि खुद को जाट हितों के ठेकेदार बताने वाले राष्ट्रीय लोक दल ने भी कभी राजा महेंद्र प्रताप सिंह के त्याग और बलिदान को सम्मान देने के लिए संघर्ष नहीं किया. आलम तो यह है कि आज रालोद उस पार्टी का दामन थामकर अपनी राजनीतिक वैतरणी पार करना चाहती है, जिसकी सरपरस्ती में कभी सम्प्रदाय विशेष के लोगों ने बाकायदा सत्ता सहयोग से जाट समुदाय का दमन करने का दुस्साहस किया था. कौन नहीं जानता कि मुजफ्फरनगर दंगे में उस संमय के सबसे कद्दावर सपा नेता व मंत्री आज़म ख़ान के दबाव में पुलिस ने दंगाइयों के ख़िलाफ़ कोई भी परिणामदायक कार्रवाई नहीं की थी. टीवी समाचार चैनलों के स्टिंग ऑपरेशन में यह बात सामने आयी कि थानेदार तक को आज़म खान सीधे निर्देश दे रहे थे. क्या जाट समुदाय उस पीड़ा, पलायन, अपमान, असुरक्षा, अस्थिरता को भूल जायेगा या मतदान के समय उसके मानस को ये बिंदु भी प्रभावित करेंगे?
सपा, दंगों के दागियों को अपना उम्मीदवार न बनाकर इस चुनाव में एक फैसलाकुन दांव खेल सकती थी, लेकिन उसने बहुसंख्यक एवं प्रभावशाली जाट मतदाताओं की जिम्मेदारी रालोद पर छोड़ते हुए खुद को मुस्लिम मतों पर केंद्रित करने की रणनीति अपनायी. लेकिन शायद अखिलेश भूल गए कि इंजीनियरिंग और ‘सोशल इंजीनियरिंग’ में फर्क होता है. ‘सोशल इंजीनियरिंग’ में सुरक्षा और अस्मिता के भाव की बड़ी भूमिका होती है. और पश्चिम में सपा-रालोद गठबंधन इस ‘भाव’ से विमुख है. खत्म हो चुके किसान आंदोलन की धीमी आंच के चूल्हे पर इस गठबंधन की वोट की रोटी पकती नहीं दिख रही है.
ऐसे में जब योगी अपनी जनसभाओं में लगभग दहाड़ते हुए कहते हैं कि “कैराना और मुजफ्फरनगर में जो गर्मी दिखाई दे रही है, यह सब शांत हो जाएगी. क्योंकि मैं, मई और जून में भी शिमला बना देता हूं. यह गर्मी 10 मार्च के बाद 24 घंटे में खत्म हो जाएगी. 25 वां घंटा नहीं लगेगा. दो लड़कों की जोड़ी दंगा कराने की साजिश के लिए आई है.” तब पश्चिम के आहत और घायल रहे हिंदू समुदाय को अपना नायक बोलते हुए दिखाई पड़ता है. ऐसा नायक जिसने, क्षेत्र में जाति, मत, मजहब को देखे बगैर सिर्फ मानक और पात्रता के आधार लोगों को सरकार की योजनाओं का लाभ दिलाया. जिसके शासन में किसी भी दंगाई और बदमाश ने सिर उठाने की हिम्मत नहीं दिखाई. जो विगत पांच वर्षों में आस्था, अस्मिता और अर्थव्यवस्था की कसौटी पर खरा उतरा है. लिहाजा, पश्चिम में कमल खिलने की संभावनाएं बलवती दिखाई पड़ रही हैं. कहा जा सकता है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश, भाजपा की विजय का प्रवेश द्वार बनने जा रहा है.
(प्रणय विक्रम सिंह स्वतंत्र पत्रकार हैं और लेख में व्यक्त विचार निजी हैं.)
Source : News Nation Bureau