देश में आज कई महिलाएं और लड़कियां अपने साथ हो रहे यौन शोषण पर खुलकर बोलने लगी है. पहले चाहे जो भी मजबूरी रही हो लेकिन अब वे अपनी बात हिम्मत के साथ आगे रख रही हैं. ऐसे में सोशल मीडिया पर #MeToo कैंपेन चालू है. अब एक सवाल यह उठता है कि आखिर एक लड़की को कब #MeToo कहने की जरूरत पड़ती है.
हां तुम बिना मर्जी मुझे छुओगे तो मैं कहूंगी #MeToo
क्योंकि आज मेरे गाल खींचोग तो कल मेरे किसी और अंग को छुओगे.
हां तुम मेरे कपड़े की तारीफ करोगे तब भी मैं कहूंगी #MeToo
क्योंकि जब तुम्हारी नजरे मेरे कपड़ों को भेदती है तो हां मैं हो जाती हूं असहज.
हां तुम मुझे फोन करोगे तब भी मैं कहूंगी #MeToo
क्योंकि नहीं होता सहन जब तुम मुझसे फोन पर अश्लील बातें करते हो.
हां जब तुम मुझे I Like u कहोगे तब भी मैं कहूंगी #MeToo
क्योंकि मेरे मना करने के बाद भी मुझे दोस्तों के सामने अपनी गर्लफेंड बोलना नहीं सहन होता मुझसे.
मुझे ऑफ़िस में ज़्यादा काम करने को कहाँ इसलिए मैंने #MeToo नहीं लिखा बल्कि संपादक की गलत निगाहों से असहज होकर कहा.
ये कुछ चंद शब्द भला हम सबको सामान्य लगता है लेकिन कभी-कभी इसके मायने बिल्कुल इसका उलट होता है. जब कोई लड़का जबरदस्ती किसी लड़की के फेसबुक. whatsapp, और फोन के इनबॅाक्स में आकर आपसे नॅार्मल बातों से शुरू होकर अश्लीलता के चरम सीमा तक जा पहुंचता है तो लिखना पड़ता है #MeToo .
तो आसान सी दिखने वाले बातों के पीछे की भी सच्चाई जानने की कोशिश कीजिए बजाय लड़कियों के इस कैंपेन को गरियाने का. क्योंकि ये कैंपेन हिम्मत है उनकी.
#Stopsexualharrasment
#Metoocampaign
यह विनीता मंडल के निजी विचार हैं. विनीता पेशे से पत्रकार हैं.
Source : Vineeta Mandal