मंदसौर किसान आंदोलन: मान ली जाती स्वामीनाथन रिपोर्ट तो किसानों को जान नहीं गंवानी पड़ती

Why Centre Is not Ready To Implement Swaminathan commission recommendations Even After Violent Farmers Protest

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Abhishek Parashar
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मंदसौर किसान आंदोलन: मान ली जाती स्वामीनाथन रिपोर्ट तो किसानों को जान नहीं गंवानी पड़ती

जंतर-मंतर पर तमिलनाडु के किसानों के साथ कांग्रेस वाइस प्रेसिडेंट राहुल गांधी (फाइल फोटो)

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मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में कर्ज माफी के साथ स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू किए जाने की मांग कर रहे हैं।

मध्य प्रदेश में जहां आंदोलन के दौरान पांच किसान पुलिस की फायरिंग में मारे जा चुके हैं वहीं महाराष्ट्र में अब रोजाना की आपूर्ति पर संकट मंडराने लगा है। लेकिन आयोग की सिफारिशों को लागू करने की बजाए एक बार फिर से इसे लेकर बीजेपी (भारतीय जनता पार्टी) और कांग्रेस के बीच बयानबाजी शुरू हो गई है।

किसान आंदोलनों का सामना कर रही बीजेपी ने यह कहने में देर नहीं लगाई कि कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू नहीं किया, इसलिए उसे मौजूदा किसान आंदोलन पर कोई अधिकार नहीं है।

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लेकिन पिछले आम चुनाव में स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने का वादा कर सत्ता में आई मोदी सरकार उन कारणों को बताने से परहेज कर रही है, जिसकी वजह से आयोग की सिफारिशों को लागू नहीं किया जा सका है।

अपनी सिफारिशें सौंपते हुए आयोग ने देश में किसानों की समस्या के लिए लंबित पड़े भूमि सुधार, सिंचाई के लिए पानी की गुणवत्ता और मात्रा, तकनीक की कमी के साथ समय पर कर्ज नहीं मिलने की समस्या को कृषि संकट के लिए जिम्मेदार बताते हुए उन उपायों को सुझाया था, जिससे किसानों की आमदनी देश के किसी नौकरशाह की आमदनी की तरह हो पाती।

लेकिन आयोग की सिफारिशों को तत्कालीन यूपीए सरकार ने लागू नहीं किया और अब बीजेपी भी इससे हाथ पीछे खींचती दिखाई दे रही है। इसकी सबसे बड़ी वजह राजनीतिक और आर्थिक रूप से संवेदनशील सिफाऱिशों का मौजूद होना है, जिसे कोई सरकार हाथ लगाना नहीं चाहेगी।

मसलन भूमि सुधार जैसे राजनीतिक रुप से संवेदनशील मुद्दे को शायद ही बीजेपी सरकार हाथ लगाएगी क्योंकि इससे पार्टी का वोट बैंक सबसे ज्यादा प्रभावित होगा वहीं कर्ज की दरों को कम किया जाना बीजेपी के आर्थिक एजेंडे के खिलाफ जाएगा।

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वैसे भी बीजेपी किसानों की कर्ज माफी की मांग को यह कहते हुए खारिज करती रही है कि उनका मकसद किसानों की स्थिति को मजबूत करना है, न कि उन्हें कर्ज पर आश्रित बनाना।

हालांकि सिफारिशों के व्यापक दायरे को देखते हुए कहा यह कहने का जोखिम उठाया जा सकता है कि अगर समय रहते स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें मान ली जाती तो आज किसानों को इन मांगों के साथ सड़क पर नहीं उतरना पड़ता और शायद जान नहीं गंवानी पड़ती।

कृषि को समवर्ती सूची में शामिल किया जाना

1.आयोग ने सबसे अहम सुझाव कृषि को संविधान की समवर्ती सूची में शामिल किए जाने का सुझाव दिया था। फिलहाल कृषि राज्यों के क्षेत्राधिकार में आता है।

इसे समवर्ती सूची में शामिल किए जाने का सबसे बड़ा फायदा यह होता कि किसानों से जुड़ी नीतियों को तय करते वक्त राज्य और केंद्र आपस में बातचीत करते और पूरे देश में किसानों के लिए बनने वाली नीतियां एकसमान होती। साथ ही राज्यों को फंड की दिक्ततों का सामना करना नहीं पड़ता।

4 फीसदी की दर से दी जाए क़ृषि कर्ज

1. फिलहाल सड़कों पर उतरे किसान कर्ज माफी की मांग कर रहे हैं और केंद्र सरकार यह साफ कर चुकी है कि देश भर के किसानों की कर्ज माफी की उसकी कोई योजना नहीं है।

आयोग ने अपनी सिफारिश में किसानों को दी जाने वाली कर्ज की ब्याज दर को घटाकर 4 फीसदी लाने का सुझाव दिया था। फिलहाल किसानों को कर्ज के लिए इससे दोगुने से अधिक का ब्याज देना होता है।

2.आयोग ने प्राकृतिक आपदा (बाढ़ और सूखा) जैसी स्थिति में कर्ज भुगतान पर तब तक रोक लगाने की सिफारिश की थी जब तक कि खेती के लिए स्थिति सामान्य नहीं हो जाए।

किसानों की आत्महत्या की रोकथाम

1. आयोग ने किसानों की आत्महत्या को प्राथमिकता पर रखा था। किसानों के बीच आत्महत्या को रोकने के लिए नैशनल रुरल हैल्थ मिशन को उन इलाकों में लागू किए जाने की सिफारिश की थी, जहां सबसे ज्यादा किसान आत्महत्या करते हैं।

2.साथ ही सभी फसलों को फसल बीमा में लाए जाने की सिफारिश की गई थी।

3.आयोग ने किसानों को स्वास्थ्य बीमा का भी लाभ दिए जाने की सिफारिश की थी।

अभी देश के जिन दो राज्यों में किसान आंदोलन हो रहे हैं, वह आत्महत्या करने वाले शीर्ष 5 राज्यों में शुमार है।

2015 में सबसे ज्यादा महाराष्ट्र में 3,030 किसानों ने आत्महत्या की। जबकि तेलंगाना में 1,358, कर्नाटक 1,197, छत्तीसगढ़ 854 और मध्य प्रदेश में 516 किसानों ने आत्महत्या की।

नैशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआऱबी) के आंकड़ों के मुताबिक 2015 में कुल 8007 किसानों ने आत्महत्या की जबकि 2014 में यह संख्या 5650 थी।

कृषि से भार हटाने की कवायद

आयोग ने कहा था देश की श्रमशक्ति में बेहद धीमी गति से सुधार हो रहा है। 1961 में जहां कृषि में 75.9 फीसदी लोग शामिल थे, उनकी संख्या 1999-2000 में कम होकर 59.9 फीसदी ही हो पाई है, और इसमें ग्रामीण क्षेत्र में कृषि पर सबसे ज्यादा बोझ रहा। आयोग ने कृषि पर पड़ रहे इस बोझ को कम करने की सिफारिश की थी।

इसे पूरा करने के लिए आयोग ने अर्थव्यवस्था की ग्रोथ रेट बढ़ाने और मजदूर आधारित इंडस्ट्री को बढ़ावा देने की सिफारिश की थी।

आयोग ने ट्रेड, रेस्त्रां और होटल्स, ट्रांसपोर्ट, निर्माण जैसे गैर कृषि क्षेत्रों को बढ़ावा देने की सिफारिश करते हुए किसानों की आय को नौकरशाहों की आय के बराबर किए जाने की बात की थी।

लेकिन आयोग की सिफारिशों को लागू करने का वादा कर सत्ता में आई बीजेपी अभी तक किसानों के लिए अपने घोषणापत्र में शामिल वादों को पूरा तक नहीं कर पाई है।

2014 के आम चुनाव से पहले बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में कृषि को भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए सबसे बड़ा क्षेत्र मानते हुए किसानों की आय को दोगुनी करने के साथ फसल लागत से 50 फीसदी अधिक मुनाफा दिलाने का वादा किया था।

लेकिन केन्द्र सरकार साफ कर चुकी है कि लागत मूल्य पर 50 फीसदी बढ़ोतरी से मंडी में दिक्कतें आ सकती है। लिहाजा इसे लागू नहीं किया जा सकता।

इसके अलावा सरकार ने नैशनल एग्रीकल्चर मार्केट को बनाने का वादा किया था, लेकिन यह अभी तक घोषणापत्र में ही पड़ा हुआ है।

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HIGHLIGHTS

  • देश भर में चल रहा किसानों का आंदोलन कर्ज माफी और स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू किए जाने की मांग कर रहा है
  • आयोग की सिफारिशों का लागू करने का वादा कर सत्ता में आई बीजेपी सरकार भी इन सिफारिशों को लागू करने से हाथ पीछे खींच चुकी है

Source : Abhishek Parashar

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