साल भर से भी ज्यादा लंबे खिंच चुके रूस यूक्रेन युद्ध के बीच दुनिया के समीकरणों में उथल-पुथल देखने को मिल रहा है. अमेरिका की अगुवाई में बने संगठन नाटो का तुर्किए जैसा देश अमेरिका की बजाय रूस के ज्यादा करीब दिखाई दे रहा है तो वहीं कभी अमेरिका का बगलबच्चा कहा जाने वाला पाकिस्तान अब रूस से कच्चा तेल खरीद रहा है और वो भी तब जबकि अमेरिका ने रूसी तेल पर पाबंदी लगाई है. लेकिन दुनिया की राजनीति में सबसे ज्यादा जिस देश की चर्चा है वो है भारत... भारत ने अभी तक अपनी आजाद विदेश नीति कायम रखी है, लेकिन अब अमेरिका के साथ बढ़ती भारत की नजदीकियों के चलते ये चर्चा है कि क्या भारत रूस का साथ छोड़कर अमेरिका के पहलू में जा सकता है?
भारत के पीएम नरेंद्र मोदी जल्द ही अमेरिका की राजकीय यात्रा पर जा रहे हैं. माना जा रहा है कि इस यात्रा के दौरान भारत और अमेरिका के बीच कई बड़ी डिफेंस डील्स हो सकती हैं. जाहिर है अमेरिका रूस को पछाड़कर भारत को सबसे ज्यादा हथियार बेचने वाला देश बनना चाहता है, लेकिन सवाल है कि क्या भारत अमेरिका पर ठीक वैसे ही भरोसा कर सकता है जैसा भरोसा रूस पर है. क्योंकि, इतिहास गवाह कि इससे पहले कई बार अमेरिका भारत को गच्चा दे चुका है और अमेरिका के साथ दोस्ती में ऐसी कई शर्तें हैं जो भारत के लिए भारी पड़ सकती हैं.
दरअसल, भारत और रूस की दोस्ती कई दशक पुरानी है और इस दोस्ती का जो सबसे मजबूत आधार है वो भारत की फौजौं के पास मौजूद रूसी हथियार. ऐसे हथियार जिन्हें भारत को बेचने में रूस ने कभी ना तो कोई आनाकानी की और ना उनके इस्तेमाल की कोई शर्त लगाई. लेकिन, अमेरिका के साथ हथियारों की डील में कई पेंच फंसे हुए हैं और भारत अमेरिका से फाइटर जेट्स जैसे बड़े हथियार खरीदने से पहले कई बार सोचेगा.
अगर भारत अमेरिका से फाइटर जेट्स खरीदता है तो उसके साथ कई शर्तें जुड़ी हुई होंगी जैसे भारत अमेरिका से खरीदे गए फाइटर जेट्स पर न्यूक्लियर हथियार तैनात नहीं कर सकता. यही नहीं इन जेट्स को किन हालात में इस्तेमाल करना है और किन हालात में नहीं, ये शर्त भी अमेरिकी कांग्रेस के बनाए नियमों से तय होती है.
अगर अमेरिकी सरकार इसकी मंजूरी दे भी दे तो भी इसे किसी छोटे से अमेरिकी कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है. जबकि ये बंदिश रूस से खरीदे गए फाइटर जेट्स में लागू नहीं होती है. अमेरिका से खरीदे गए हथियारों के हार्डवेयर में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता. ना कोई चीज हटाई जा सकती है और ना ही जोड़ी जा सकती है, जबकि भारत रूसी हथियारों में अपनी सहूलियत के हिसाब से फेरबदल करता रहा है. सुखाई 30 फाइटर जेट में ब्रह्मोस मिसाइल का इंटीग्रहेशन इसकी एक नजीर है.
हालांकि, भारत की फौजों के पार अब कुछ अच्छे अमेरिका हथियार मौजूद हैं और पिछले कुछ सालों में भारत-अमेरिका के बीच 21 बिलियन डॉलर्स की डिफेंस डील्स हुई हैं, जिसमें C-130 J स्पेशल ऑपरेशंस प्लेन, C-17 ट्रांसपोर्ट प्लेन P-8i सबमरीन हंटर प्लेन, CH-47 चिनूक हेलीकॉप्टर, हार्पून एंटीशिप मिसाइल, M777 होवित्जर तोप और MH-80 सी हॉक हेलीकप्टर शामिल हैं.
भारत ने अभी तक फाइटर जेट्स या बड़े हथियारों के मामले में अमेरिका को तरजीह नहीं दी है, क्योंकि चीन और पाकिस्तान जैसे दो दुश्मन देशों से घिरा भारत बड़े हथियारों के इस्तेमाल को लेकर कोई बंदिश नहीं चाहता है. यही नहीं, अमेरिका का इतिहास भी भारत को लेकर बेहद दागदार रहा है. पाकिस्तान के मसले को लेकर अमेरिका ने कई बार इंटरनेशनल स्तर पर भारत को मुश्किल में डाला है, जबकि रूस ने छह बार भारत को बचाने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में वीटो का इस्तेमाल किया है.
यानी इतिहास तो रूस के पक्ष में गवाही दे रहा है, लेकिन वर्तमान में रूस की दोस्ती भारत से कही ज्यादा भारत के दुश्मन चीन के साथ बढ़ गई है. यूक्रेन जंग के मसले पर चीन खुलकर रूस का साथ दे रहा है और शायद पुतिन जिनपिंग अहसानों के बोझ तले इतने दब गए हैं कि उन्हें भारत के हित नजर नहीं आ रहे.
लेकिन यूक्रेन युद्ध शुरू होने से पहले साल 2020 में लद्दाख सेक्टर में जब चीन के सैनिकों ने भारत की सीमा में घुसने की कोशिश की और गलवान घाटी में दोनों देशों के सैनिकों के बीच खूनी संघर्ष हुआ तब भी पुतिन ने भारत के हित में चीन की मुश्किलें कम करने के लिए कुछ नहीं किया. इसके अलावा रूस अब भारत के एक और दुश्मन देश पाकिस्तान के साथ भी मेल-जोल बढ़ा रहा है. हाल ही में रूस का कच्चा तेल पाकिस्तान पहुंचा है और ये ऑयल डील भी चीन ने ही कराई है.
यानी रूस अब शायद भारत के लिए उतना भरोसेमंद साथी नहीं रह गया है, जितना पहले हुआ करता था. लेकिन रूस का साथ तो अब भारत की मजबूरी भी बन गया है. भारत की फौजों के पास रूस से आया इतना साजोसामान है, जिसे आने वाले कुछ दशकों तक बदला नहीं जा सकता. एक रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय फौजों के पास मौजूद 90 फीसदी आर्मर्ड व्हीकल्स, 69 फीसदी लड़ाकू विमान और 44 फीसदी नेवी की पंडुब्बियां और जहाज रूस से ही खरीदे गए हैं.
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जाहिर है इतने बड़े हथियारों के जखीरे की सप्लाई करने वाले देश को भारत नजरअंदाज नहीं कर सकता. बदलते वक्त के साथ भारत की रूस से दोस्ती कमजोर जरूर हो सकती है, लेकिन इसे खत्म करना ना भारत के हित में है ना ही रूस के... और संभवत: अमेरिका भी ये बात जानता है. रूस से S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम खरीदने की सजा के तौर पर उसने भारत पर कोई पाबंदी नहीं लगाई है, जबकि उसका कानून काट्सा इस बात की इजाजत देता है. तो जाहिर है भारत इस वक्त वाकई बड़े धर्म संकट से गुजर रहा है. एक ओर अमेरिका के साथ होने वाली दोस्ती से सुनहरे भविष्य वादा है तो दूसरी ओर मजबूत और टिकाऊ दोस्ती के इतिहास वाला रूस. अब देखना होगा कि भारत इन हालात में खुद को कैसे प्रोजेक्ट करता है.
सुमित दुबे की रिपोर्ट
Source : News Nation Bureau