पाकिस्तान के वज़ीर-ए-आज़म इमरान खान नियाज़ी के हाथ में क्या ये पक्के सबूत हैं या फिर वो खौफ कि उनका और उनके पाकिस्तानी जम्हूरियत का भी वही हश्र होने वाला है, जो बंटवारे के बाद से पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों का हुआ था। इसी खौफ में इमरान के चेहरे की हवाई उड़ी हुई हैं और इसी फिक्र में 27 मार्च को इस्लामाबाद की रैली में उन्होंने तुरूप का इक्का पेश कर दिया। वो तुरूप का इक्का साबित हुई ''एक चिट्ठी'' जिसे लहराते हुए वो नज़र तकरीर दे रहे थे कि ये चिट्ठी नहीं विदेशी साज़िशों का पुलिंदा है। इसके साथ ही अपना लिखा हुआ भाषण पढ़ रहे थे। अब इमरान कि इस चिट्ठी के बाद विपक्ष लगातार उन पर हमलावर हो गया और इमरान को कुर्सी से हटाने को बेताब शरीफ और भुट्टो खानदान बरछी भाला लेकर इमरान पर चढ़ाई करने लगे।
आखिर क्यों फूटा चिट्ठी का बम
इमरान जिस साज़िशों वाली चिट्ठी को दिखाकर चलते बने उस पर दो दिन तक उनके सिपहसलार को कुछ अता पता नहीं था यहां तक की सड़क, सियासत और टीवी चैनलों तक में इमरान के चिट्टी बम के धमाके की गूंज रही। ये कशमक्श बरकरार रही कि आखिर खतरा पाकिस्तान पर है या फिर इमरान की कुर्सी पर। इमरान जिस चिट्ठी के सहारे बाजी पटलने का माद्दा रखने का दम भर रहे थे, उस पर आज भी इमरान सरकार के तमाम मंत्री खाली हाथ ही नज़र आए। पावर पैक्ड प्रेस कॉन्फ्रेंस में चिट्ठी का राज़ तो नहीं खोला मगर इतना साफ कर दिया कि इमरान सरेंडर नहीं करेंगे। पाकिस्तानी जम्हूरियत का काला अध्याय यही है कि इमरान से पहले आज तक कोई भी पीएम अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया। तो वही लोकतंत्र को फौजी बूटों तले रौंदकर फौज के तानाशाहों ने 10-10 साल राज किया। इसे समझने के लिए आपको पाकिस्तान इतिहास के दो और वज़ीर-ए-आज़म और उनके किरदारों के बारे में बताते है। इसमें पहले नंबर पर लियाक़त अली खान, ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो और उनके बाद बेटी बेनजीर भुट्टो है। जो सत्ता से बेदखल होने से पहले लेटर बम फोड़ चुके है।
अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या इमरान उसी रास्ते पर हैं? खैर अब ये पाकिस्तान की संसद और पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट का फैसला तय करेगा कि इमरान रहेंगे या जाएंगे मगर पाकिस्तान का स्याह इतिहास ऐसा है कि उसमें इमरान का लेटर बम फोड़ना संयोग नहीं बल्कि एक प्रयोग ज्यादा लग रहा है।
Source : Rashi