दुनिया भर में आज महिला दिवस का जश्न मन रहा है. इस मौके पर दुनिया भर में महिलाओं की ताकत को सलाम किया जाता है. उनकी समान भागीदारी तय करने के दावे और और वादे किए जाते हैं, इस बार के अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की थीम भी 'बेलेंस फॉर बैटर' है यानि लैंगिक तौर पर असंतुलन और असमानता को खत्म करना. ऐसे में समझना ये भी जरूरी है कि आजादी के 70 साल बाद भी हमारे मुल्क में आधी आबादी आखिर खड़ी कहां है? बीते साल अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस से पहले रेडियो पर अपनी 'मन की बात' में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने महिला सशक्तिकरण पर जोर दिया था. महिला दिवस के 100 साल पूरे होने पर देश भर में कार्यक्रम आयोजित करने का भरोसा दिलाया. माना कि मोदी सरकार के 'न्यू इंडिया' का सपना तभी पूरा हो सकेगा जबकि सामाजिक और आर्थिक लिहाज से महिलाओं की बराबर की भागीदारी हो. हालांकिं एक साल बाद भी कई मोर्चे पर प्रधानमंत्री की ये बातें बेमानी ही लगती हैं.
महिलाओं के खिलाफ बढ़ा अपराध
2014 से 2016 तक के आंकड़ों पर नजर डालें तो 2014 में जहां महिलाओं के प्रति 3 लाख 40 हजार अपराध के मामले दर्ज किए गए थे, जबकि 2016 में ये बढ़कर 3 लाख 51 हजार हो गए. इन तीन सालों में अकेले उत्तर प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध 38 हजार से बढ़कर 48 हजार से ज्याद हो गए. 10 हजार ज्यादा! या कहें हर दिन औसतन 133 मामले! यकीनन कानून व्यवस्था राज्यों की जिम्मेदारी है, लेकिन तब जबकि ज्यादातर राज्यों में भाजपा सत्ता में हो तो सवाल मोदी के उस नारे पर भी उठता है, जिसमें वादा था कि — बहुत हुआ नारी पर अत्याचार, अबकी बार मोदी सरकार!
बिहार सबसे बदतर, गोवा सबसे बेहतर
बीते साल 'प्लान इंडिया' नाम से एक रिपोर्ट जारी की गई, जिसमें देश भर की महिलाओं की मौजूदा तस्वीर पेश की गई. रिपोर्ट के मुताबिक देश की आधी आबादी के लिए बिहार सबसे असुरक्षित राज्य है. महिलाओं के लिए उत्तर प्रदेश, दिल्ली और झारखंड की भी हालत खराब है. जबकि महिलाओं के लिए गोवा सबसे सुरक्षित है. गोवा के बाद केरल, मिजोरम, सिक्किम और मणिपुर सबसे सुरक्षित राज्य माने गए हैं.
अफसोसजनक बात ये कि संवेदनशील ढंग से इन अपराधों से निपटने के लिए पुलिस थानों में महिला पुलिस ही मौजूद नहीं है. आधी आबादी की बात सुनने के लिए देश भर के पुलिस विभाग में सिर्फ 7.28 फीसदी महिलाएं हैं. देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में महिलाओं की हिस्सेदारी महज़ 3.81 फीसदी है. केन्द्रीय गृह मंत्रालय साल 2009, 2012 और 2016 में पुलिस बल में महिलाओं की हिस्सेदारी को बढ़ाकर 33 फीसदी करने की सलाह देता रहा, लेकिन हर किसी ने अनसुना कर दिया. इस मोर्चे पर भाजपा ही नहीं कांग्रेस और बाकी दल भी बराबर के दोषी हैं. वैसे महिलाओं की कम हिस्सेदारी सिर्फ पुलिसबल तक ही सीमित नहीं है. भारतीय सेना में सिर्फ 1561 महिला अफसर हैं. दुनिया की सबसे बड़ी सैन्य ताकतों में से एक भारतीय थल सेना में आधी आबादी की ये हिस्सेदारी निराश करती है.
तकनीक में महिलाओं की बढ़ती हिस्सेदारी
हालांकिं विज्ञान, इंजीनियरिंग और तकनीक के क्षेत्र में महिलाओं ने अपनी ताकत का लोहा जरूर मनवाया है. देश के 2 लाख 83 हजार वैज्ञानिक, इंजीनियर और तकनीकी जानकारों में 39,389 महिलाएं हैं, करीब 14 फीसदी. बेशक हिस्सेदारी यहां भी बेहद कम है, लेकिन सुरक्षा बल जितनी नहीं!
जमीन से महरूम आधी आबादी
खेती—किसानी में पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर मेहनत करने वाली महिलाओं की जमीन के मालिकाना हक के मामले में भी हिस्सेदारी बेहद कम है. सबसे ज्यादा कृषि उत्पादक सूबे पंजाब में केवल 0.8 फीसदी महिलाओं के नाम जमीन हक है. उत्तर प्रदेश में 6.1 फीसदी, राजस्थान में 7.1 फीसदी जबकि मध्य प्रदेश में 8.6 फीसदी जमीन ही आधी आबादी के नाम है. हांलाकिं उत्तर के मुकाबले दक्षिण और पूर्वोत्तर हिस्सों में हालात बेहतर हैं.
राजनीति में हाशिए पर महिला
मौजूदा दौर में भाजपा देश के करीब 20 राज्यों की सत्ता में है, लेकिन उन राज्यों की विधानसभा में महिलाओं की हिस्सेदारी आज भी 33 फीसदी के दशकों पुराने वादे से बेहद कम है. सिर्फ विधानसभा ही नहीं देश की सबसे बड़ी संस्था यानि संसद में भी महिलाओं की भागीदारी आबादी के मुकाबले बेहद कम है. 545 सांसदों वाली लोक सभा में महिला सांसदों हिस्सेदारी सिर्फ 66 है. मोदी सरकार तमाम हो—हल्ले के बीच जीएसटी बिल को तो कानून बनवा लेती है, लेकिन दशकों से लटका महिला आरक्षण बिल मानों किसी को याद तक नहीं! वैसे महिलाओं की अनदेखी का ये मामला सिर्फ भाजपा तक सीमित नहीं है. कांग्रेस समेत बाकी दल भी इस मामले में बराबर के दोषी हैं. जैसे कि नागालैंड, जिस सूबे के इतिहास मे आज तक कोई महिला विधायक नहीं चुनी जा सकी!
विकास से भी कोसों दूर है आधी आबादी!
विकास के हर मोर्चे पर आधी आबादी पिछड़ी नजर आती है. यूपी, बिहार और झारखंड में करीब 11 करोड़ ग्रामीण आबादी निरक्षर है. जाहिर है बड़ी हिस्सेदारी महिलाओं की है. सेहत के मोर्चे पर बीते 70 सालों में हालात सुधरे तो हैं, लेकिन महिलाओं का बेहतर स्वास्थ्य आज भी बड़ी चुनौती है. बाल विवाह आज भी बड़ी समस्या है.
थोड़ा किया, काफी किया जाना बाकी
मोदी सरकार दावा कर सकती है कि छोटे—मझोले कारोबार के लिए चलाई जा रही मुद्रा योजना के तहत दिए जाने वाले 10 लाख रूपए तक के कर्ज में महिलाओं को तरजीह दी गई है. 75 फीसदी तक कर्ज महिलाओं को ही मिला है. गैस कनेक्शन की उज्ज्वला योजना से महिलाओं के हालात सुधरे हैं. इसमें कोई शक भी नहीं है, लेकिन 'न्यू इंडिया' के सपने को पूरा करने के लिए देश की आधी आबादी के लिए राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक लिहाज से कई मोर्चों पर काफी कुछ किया जाना अभी बाकी है.
उम्मीद है कि हालात सुधारने के लिए जल्द ईमानदार कोशिश हो सकेगी, जो वक्त की सख्त जरूरत भी है. जाहिर है सोच बदलने से लेकर बेहतर नीतियां बनाने और उसका क्रियान्वयन करने जैसे हर मोर्चे पर काफी कुछ करना बाकी है. तभी आधी आबादी के हौंसलों को बेहतर और जरूरी उड़ान मिल सकेगी.
Source : अनुराग दीक्षित