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World Menstrual Hygiene Day 2019: ऑफिस-कॉलेज में सेनिटरी वेडिंग मशीन का होना कितना जरूरी?

आज जब अधिकत्तर लोग पीरियड्स को लेकर जागरुक है, तब भी अधिकत्तर जगहों पर सेनिटरी पैड मशीन उपलब्ध नहीं है. महिलाओं की पीरियड के समय पैड के लिए यहां-वहां भटकना पड़ता है या फिर किसी और चीज से काम चलाना पड़ता है.

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Vineeta Mandal
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World Menstrual Hygiene Day 2019:  ऑफिस-कॉलेज में सेनिटरी वेडिंग मशीन का होना कितना जरूरी?

World Menstrual Hygiene Day 2019

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आज विश्व मासिक धर्म स्वच्छता दिवस (World Menstrual Hygiene Day) मनाया जा रहा है. मासिक धर्म शब्द से शायद नई पीढ़ी ज्यादा फ्रेंडली न हो इसलिए हम यहां इसके दूसरे नाम का जिक्र करेंगे. मासिक धर्म को आमतौर पर पीरियड्स नाम से ज्यादा जाना जाता है. तो आज के दिन लोग इसी पर खूब चर्चा करेंगे, बताएंगे की पीरियड्स के समय किन बातों का ख्याल रखना है और किस का नहीं. पीरियड्स में सफाई का ख्याल नहीं रखने से औरतें कई बीमारियों की चपेट में भी आ जाती है इसलिए इन दिनों में उन्हें कपड़ें की जगह सेनिटरी पैड के इस्तेमाल की सलाह दी जाती है. लेकिन जिस देश में एक वक्त के खाने के लिए भी दिन भर जद्दोजहद करनी पड़ती है वहां औरतों के लिए सेनिटरी पैड पर कौन इतना खर्चा करेगा. खैर आज हम पीरियड्स में सावधानी बरतने से ज्यादा सेनिटरी पैड की उपलब्धता के मुद्दें पर बात करेंगे.

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आज जब अधिकत्तर लोग पीरियड्स को लेकर जागरुक है, तब भी अधिकत्तर जगहों पर सेनिटरी पैड मशीन उपलब्ध नहीं है. महिलाओं की पीरियड के समय पैड के लिए यहां-वहां भटकना पड़ता है या फिर किसी और चीज से काम चलाना पड़ता है. कुछ महीने पहले मैंने इसी मुद्दें को लेकर कई कामकाजी महिला, लड़कियों से बात की जिसमें कई स्कूल-कॉलेज की छात्राओं ने भी अपनी परेशानियां सामने रखी.

एक मीडिया संस्थान में काम करने वाली गुंजन कुमारी ने बताया कि ऑफिस के दौरान उन्हें डेट से पहले पीरियड हो गया, जिस वजह से उस समय उनके पास पैड नहीं था और ब्लीडिंग शुरू हो चुकी थी इसलिए उन्होंने टिशू पेपर का इस्तेमाल किया. पेपर जल्दी भीग रहा था जिस वजह से वो पूरा दिन बाथरुम का चक्कर लगाती रही.

वहीं दूसरी मीडिया संस्थान में काम करने वाली ज्योति का कहना है कि वो अब बैग में पैड रखना कभी नहीं भूलती हैं. क्योंकि इसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा था. एक बार पूरे ऑफिस में वो चक्कर लगाती रही और सबसे पूछती रही कि पैड है! पैड है! पैड है! लेकिन सबके मुंह पर एक ही जवाब यार भूल गए, नहीं है. मजबूरन उन्हें अपना दुपट्टा फाड़ के उसका इस्तेमाल करना पड़ा.

सोनम जो कई सालों से कई मीडिया संस्थान में जॉब कर चुकी है, उन्होंने भी बताया कि पीरियड्स में उन्हें बहुत दर्द रहता है और ऑफिस टाइम में कई बार उन्हें डेट से पहले पीरियड आ जाते थे जिसके बाद उन्हें उसी दर्द में पैड के लिए ऑफिस से बाहर मेडिकल खोजना पड़ता है.

कॉलेज छात्रा शिवानी का भी कहना है कि ऑफिस में ही नहीं बल्कि कॉलेज-स्कूलों में भी सेनिटरी पैड मशीन की सुविधा होनी चाहिए क्योंकि पैड न होने पर इस तरह के समस्याओं से उन्हें भी सामना करना पड़ता है.

शिवानी की बात सुनकर मुझे अपना एक किस्सा याद आता है. जब मैं सातवीं क्लास में थी तब मुझे पीरियड्स आने शुरू हुए थे, मम्मी ने ही सब बताया. लेकिन मेरे अंदर इसे लेकर बहुत शर्म और हिचक रहती थी इसलिए जब स्कूल में अचानक पीरियड आ जाते तो मैं किसी को कुछ नहीं बताकर पेपर या घर जाकर कोई कपड़े का इस्तेमाल कर लिया करती थी.

यहां हमने चंद लोगों की बात की शिवानी, गुंजन, ज्योति और सोनम जैसी कई कामकाजी महिलाएं है जिनकी समस्याएं इसी तरह है. हालांकि इस ओर कदम उठाते हुए कई ऑफिसों में सेनिटरी पैड मशीन की सुविधा दी गई लेकिन अधिकत्तर जगह आज भी महिलाओं की इस जरूरत की अनदेखी की जाती है.

सरकार ने भी माना जरूरी है सेनिटरी पैड

बता दें कि अभी हाल ही में महिला कर्मचारियों की सुविधा और हाईजीन के लिए सरकार ने नया नियम लागू किया है. इस नियम के तहत हर फैक्ट्री के टॉयलेट में महिलाओं के इस्तेमाल के लिए सैनिटरी नैपकिन या पैड रखना अनिवार्य होगा. भारत सरकार के श्रम मंत्रालय ने 8 फरवरी को मॉडल फैक्ट्री रूल्स के तहत नोटिफिकेशन जारी करके इस नियम को लागू किया है.

नोटिफिकेशन के मुताबिक, सैनिटरी नैपकिन भारतीय मानकों के अनुरूप होने चाहिए. कंपनी को यह सुनिश्चित होगा कि टॉयलेट में पैड की संख्या बरकरार रखी जाए और इसकी कमी न हो पाए. इसके साथ ही इसमें यह भी कहा गया है कि सभी महिला टॉयलेट्स में डिस्पोजेबल डस्टबिन भी रखें जाएं, जिससे नैपकिन्स को कलेक्ट किया जा सके. कंपनी को यूज्ड नैपकिन्स के निपटान की भी उचित व्यवस्था करनी होगी.

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वहीं बात करें ग्रामिण इलाकों में तो आज भी महिलाएं कपड़ें का ही इस्तेमाल करती है. उन्हें लगता है सेनिटरी पैड पर इतना पैसा खर्च करना बर्बाद है या फिर उनके पास इतने पैसे नहीं होते कि वो सेनिटरी पैड खरीद सके. सरकारी सेनिटरी पेड की सुविधा अब भी कई इलाकों में पहुंच से दूर है.

(डिस्क्लेमर: इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने विचार हैं. इस लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NewsState और News Nation उत्तरदायी नहीं है. इस लेख में सभी जानकारी जैसे थी वैसी ही दी गई हैं. इस लेख में दी गई कोई भी जानकारी अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NewsState और News Nation के नहीं हैं तथा NewsState और News Nation उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.)

Source : Vineeta Mandal

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