बॉलीवुड के पांच प्रसिद्ध हिंदी गीतकार
बॉलीवुड ने अपने सौ साल के लंबे सफर में कई उपलब्धियां हासिल की हैं। इन उपलब्धियों में एक बड़ा योगदान गीतकारों का रहा है। हिंदी फिल्मों में गीतों का प्रचलन उसी समय शुरु हो गया था, जब पहली बोलती फिल्म ‘आलमआरा’ बनी। फिल्म ‘आलम आरा’ के साथ चला गीतों का कारवां आज भी जारी है। हिंदी दिवस पर मिलते हैं, कुछ ऐसे गीतकारों से जिन्होंने हिंदी में गीत लिखे और वो गीत आज भी लोगों के कानों में रस घोलते हैं।
गीतकार कवि प्रदीप
'ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आँख में भर लो पानी’ गीत से भला कौन भारतीय परिचित नहीं होगा। इसे लिखने वाले गीतकार कवि प्रदीप हैं। "चल चल रे नौजवान", ‘आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं’, "दे दी हमें आजादी बिना खडग ढाल" काफी प्रसिद्ध गीत हैं। 1943 की फिल्म किस्मत के गीत "दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिंदुस्तान हमारा है" लिखी और इस गीत से नाराज हो तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने उनकी गिरफ्तारी के आदेश दिए थे। भारत सरकार ने उन्हें सन 1997-98 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया।
गीतकार शैलेंद्र
हिंदी फिल्मों के गीतकारों में शैलेंद्र एक ऐसा नाम है जिन्होंने कई ऐसे गीत लिखे जो लोगों के दिल को आज भी छू जाते हैं। भाषा पर उनका अधिकार तो था ही, लेकिन उसके साथ सादगी और गहराई भी थी। भारत के विभाजन पर लिखी उनकी कविता ‘जलता है पंजाब’ सुनकर राज कपूर प्रभावित हुए थे, और उन्होंने उनकी फिल्मों के लिये गीत लिखने का निवेदन किया। लेकिन शैलेंद्र ने मना कर दिया था। बाद में उन्होंने उनकी फिल्म बरसात के लिये दो गीत 'बरसात में' और 'पतली कमर' लिखा। दोनों ही गीत सुपर हिट हुए। आवारा हूँ, रमैया वस्तावैया, दिल के झरोखे में तुझको बिठा कर, मेरा जूता है जापानी, आज फिर जीने की तमन्ना है आज भी लोग गुनगुनाते हैं।
गीतकार गोपालदास नीरज
पहचान की ख्वाहिश से अछूते गोपाल दास नीरज को हिंदी कविता के प्रेमी अच्छी तरह से पहचानते हैं। उनका फिल्मी करियर पांच साल का ही रही लेकिन उस पांच साल में उन्होंने जो रोमांटिक गीत लिखे वो 21वीं सदी की पीढ़ी को भी भाते हैं। उन्होंने ‘लिखे जो खत तुझे, ए भाई जरा देख के चलो, दिल आज शायर है, फूलों के रंग से, रंगीला रे और मेघा छाए आधी रात जैसे सदाबहार गीत हिंदी फिल्मों को दिये। 91 साल की उम्र के बावजूद वो आज भी सक्रिय हैं, और हिंदी कवि सम्मेलनों में आज भी भाग लेते हैं।
गीतकार आनंद बख्शी
शमशाद बेगम से लेकर कुमार सानू तक ने आनंद बख्शी का गीत गाया है। सरल अल्फाज़ों में भावनाओं को शब्दों में पिरोकर गीत का रूप देने वाले आनंद बख्शी को कौन नहीं जानता। 1958 में आनंद बख्शी को पहला ब्रेक मिला। उनके कई गीत मशहूर हुए जैसे बड़ा नटखट है रे किशन कन्हैया, कुछ तो लोग कहेंगे, आदमी मुसाफिर है, दम मारो दम और तुझे देखा तो ये जाना सनम तक आनंद बख्शी ने चार हजार से भी ज्यादा गीत लिखे। कई प्रसिद्ध गायकों के करियर का पहला गीत भी वख्शी साहब ने लिखा।
गीतकार प्रसून जोशी
विज्ञापन जगत से फिल्मी दुनिया में आए प्रसून जोशी ने बहुत ही कम समय में अपने गीतों से हिंदी फिल्म जगत में अपनी पहचान बना ली है। वो न सिर्फ गीतकार है बल्कि वो एक संगीतकार भी हैं। आमिर खान की फिल्म ‘तारे ज़मीन पर’ के गाने ‘मां...’ के लिए उन्हें 'राष्ट्रीय पुरस्कार' भी मिल चुका है। उन्होंने दिल्ली.6, रंग दे बस्ती, हम तुम और फना जैसी फ़िल्मों के लिए कई सुपरहिट गाने लिखे हैं। इसके अलावा उन्होंने लज्जा, आंखें और क्यों फिल्म में संगीत भी दिया है।