भगवान अरहनाथ (arahnath bhagwan) जैन धर्म के 18वें तीर्थंकर हैं. इनका जन्म रेवती नक्षत्र में हस्तिनापुर नगर में हुआ था. भगवान अरहनाथ की आरती (aarti bhagwan arahnath) पढ़ने मात्र से मन पावन और विचार निर्मल हो जाते हैं. अगर कोई भी सच्ची श्रद्धा से उनकी आरती (arahnath aarti bhagvan) करता है तो उसके सभी काम सफलतापूर्वक हो जाते हैं. कोई भी काम उसके लिए संभव नहीं रहता है. संसार रूपी भवसागर से मुक्ति की प्राप्ति के लिए भक्तों द्वारा भगवान अरहनाथ की आरती (tirthankar shri arahnath aarti) का पाठ रोजाना किया जाता है.
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अरहनाथ भगवान की आरती (bhagwan arahnath aarti)
अरहनाथ तीर्थंकर प्रभु की, आरतिया मनहारी है,
जिसने ध्याया सच्चे मन से, मिले ज्ञान उजियारी है।।
ह्तिनागपुर की पाववन भू, जहां फ्रभुवर ने जन्म लिया।
पिता सुदर्शन मात मित्रसेना का जीवन धन्य किया।।
सुर नर वंदित उन पर्भुवर को, नित प्रति धोक हमारी है,
जिसने ध्याया........।।1।।
तीर्थंकर, चक्री अरु कामदेव पदवी के धारी हो।
स्वर्ण वर्ण आबायुक जिनवर, काश्यप कुल अवतारी हो।।
मनभावन है रूप तिहारा, निरख-निरख बलिहारी है,
जिसने ध्याया........।।2।।
फाल्गुन वदि तृतीया को गर्भकल्याणक सभी मनाते हैं।
मगशिर सुदि चौदस की जन्मकल्याणक तिथि को ध्याते हैं।।
मगशिर सित दशमी दीक्षा ली, मुनी श्रेष्ण पदधारी हैं,
जिसने ध्याया........।।3।।
कार्तिक सुदि बारस में, केवलज्ञान उदित हो आया था।
हस्तिनापुर में ही इंद्र ने, समवसरण रचवाया था।।
स्वयं अरी कर्मों को घाता, अर्हत्पदवी प्यारी है,
जिसने ध्याया........।।4।।
मृत्युजयी बन, सिद्धपती बन, लोक शिखर पर जा तिष्ठे।
गिरि सम्मेदशिखर है पावन, जहां से जिनवर मुक्ति हुए।।
जजे चंदनामति प्रभु वर दो, मिले सिद्धगति न्यारी है,
जिसने ध्याया........।।5।।