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Maa Vaishno Devi Chalisa: मां वैष्णों देवी के इस पाठ से मिल जाती है तनाव और उदासी जैसे विकारों से मुक्ति, नकारात्मक लोगों का प्रभाव जो जाता है बेअसर

Maa Vaishno Devi Chalisa: मान्यताओं के अनुसार, मां वैष्णों देवी की चालीसा का पाठ करने से माता के दर्शन के बराबर ही पुण्य मिलता है.

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Gaveshna Sharma
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मां वैष्णों देवी के इस पाठ से नकारात्मक प्रभाव हो जाता है नष्ट

मां वैष्णों देवी के इस पाठ से नकारात्मक प्रभाव हो जाता है नष्ट ( Photo Credit : Social Media)

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Maa Vaishno Devi Chalisa: चैत्र नवरात्रि 2022 (Chaitra Navratri 2022) के दौरान माँ वैष्णों देवी के दर्शन करना सौभाग्य की 10 दिशाओं के खुल जाने जैसा है. लेकिन अगर आप नवरात्रि के दिनों में माता के दर्शन से वंछित रह गए हैं तो दुखी न हों. मान्यताओं के अनुसार, मां वैष्णों देवी की चालीसा का पाठ करने से माता के दर्शन के बराबर ही पुण्य मिलता है. मां वैष्णों देवी के निरंतर चालीस पाठ से न सिर्फ व्यक्ति को परम सुख की प्राप्ति होती है बल्कि उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं. मां वैष्णों देवी जीवन में मौजूद नकारात्मकता को हर कर व्यक्ति को सफलता का मार्ग दिखाती हैं. इसके अतिरिक्त, मां वैष्णों देवी की चालिया के निरंतर पाठ से भक्तों को तनाव, चिड़चिड़ापन, उदासी, मायूसी जैसे विकारों से भी राहत मिल जाती है. 

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दोहा
गरूड़ वाहिनी वैष्णवी त्रिकुटा पर्वत धाम ।
काली, लक्ष्मी, सरस्वती शक्ति तुम्हें प्रणाम ।।

चौपाई
नमो नमो वैष्णो वरदानी । कलिकाल में शुभ कल्यानी ।।
मणि पर्वत पर ज्योति तुम्हारी । पिंडी रूप में हो अवतारी ।।
देवी-देवता अंष दियो है । रत्नाकर घर जन्म लियो है ।।
करी तपस्या राम को पाऊं । त्रेता की शक्ति कहलाऊं ।।

कहा राम मणि पर्वत जाओ । कलियुग की देवी कहलाओ ।।
विष्णु रूप से कल्की बनकर । लूंगा शक्ति रूप बदलकर ।।
तब तब त्रिकुटा घाटी जाओ । गुफा अंधेरी जाकर पाओ ।।
काली लक्ष्मी सरस्वती मां । करेंगी पोषण पार्वती मां ।।

ब्रह्मा, विष्णु शंकर द्वारे । हनुमत, भैंरो प्रहरी प्यारे ।।
रिद्धि, सिद्धि चंवर डुलायें । कलियुग वासी पूजन आवें ।।
पान सुपारी ध्वजा नारियल । चरणामृत चरणों का निर्मल ।।
दिया फलित वर मां मुस्काई । करन तपस्या पर्वत आई ।।

कलि-काल की भड़की ज्वाला । इक दिन अपना रूप निकाला ।।
कन्या बन नगरोटा आई । योगी भैरों दिया दिखाई ।।
रूप देख सुन्दर ललचाया । पीछे-पीछे भागा आया ।।
कन्याओं के साथ मिली मां । कौल-कंदौली तभी चली मां ।।

देवा माई दर्षन दीना । पवन रूप हो गई प्रवीणा ।।
नवरात्रों में लीला रचाई । भक्त श्रीधर के घर आई ।।
योगिन को भण्डारा दीना । सबने रूचिकर भोजन कीना ।।
मांस, मदिरा भैरों मांगी । रूप पवन कर इच्छा त्यागी ।।

बाण मारकर गंगा निकाली । पर्वत भागी हो मतवाली ।।
चरण रखे आ एक षिला जब । चरण-पादुका नाम पड़ा तब ।।
पीछे भैरों था बलकारी । छोटी गुफा में जाय पधारी ।।
नौ माह तक किया निवासा । चली फोड़कर किया प्रकाषा ।।

आद्या शक्ति-ब्रह्म कुमारी । कहलाई मां आदि कुंवारी ।।
गुफा द्वार पहुंची मुस्काई । लांगुर वीर ने आज्ञा पाई ।।
भागा-भागा भैरों आया । रखा हित निज शस्त्र चलाया ।।
पड़ा शीष जा पर्वत ऊपर । किया क्षमा जा दिया उसे वर ।।

अपने संग में पुजवाऊंगी । भैरों घाटी बनवाऊंगी ।।
पहले मेरा दर्षन होगा । पीछे तेरा सुमरन होगा ।।
बैठ गई मां पिण्डी होकर । चरणों में बहता जल झर-झर ।।
चौंसठ योगिनी-भैरों बरवन । सप्तऋषि आ करते सुमरन ।।

घंटा ध्वनि पर्वत बाजे । गुफा निराली सुन्दर लांगे ।।
भक्त श्रीधर पूजन कीना । भक्ति सेवा का वर लीना ।।
सेवक ध्यानूं तुमको ध्याया । ध्वजा व चोला आन चढ़ाया ।।
सिंह सदा दर पहरा देता । पंजा शेर का दुःख हर लेता ।।

जम्बू द्वीप महाराज मनाया । सर सोने का छत्र चढ़ाया ।।
हीरे की मूरत संग प्यारी । जगे अखण्ड इक जोत तुम्हारी ।।
आष्विन चैत्र नवराते आऊं । पिण्डी रानी दर्षन पाऊं ।।
सेवक 'षर्मा' शरण तिहारी । हरो वैष्णो विपत हमारी ।।

दोहा
कलियुग में तेरी, है मां अपरम्पार ।
धर्म की हानि हो रही, प्रगट हो अवतार ।।

Source : News Nation Bureau

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