मल्लिनाथ भगवान (mallinath bhagwan) जैन धर्म के 19वें तीर्थंकर हैं. इनका जन्म मिथिलापुरी के इक्ष्वाकु वंश में मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को अश्विन नक्षत्र में हुआ था. भगवान श्री मल्लीनाथ जी के पिता का नाम राजा कुंभराज था और इनकी माता का नाम रक्षिता देवी था. भगवान श्री मल्लिनाथ जी के शरीर का वर्ण नीला था. भगवान श्री मल्लीनाथ जी (mallinath bhagwan 19th trithankar) का प्रतीक चिन्ह कलश है. भगवान श्री मल्लीनाथ जी का चालीसा पाठ करने से मन शांत एवं सरल होता है.
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भगवान श्री मल्लिनाथ जी का चालीसा (mallinath bhagwan 19th trithankar hindi chalisa) पाठ करने से धार्मिकता और आध्यात्मिकता में आस्था बढ़ती है. सत्य एवं अहिंसा को अपनाकर लोगों का कल्याण करना ही सबसे बड़ा धर्म है. भगवान श्री मल्लिनाथ जी ने ये संदेश दिया है कि धर्म के रास्ते पर सत्य और अहिंसा के मार्ग को अपनाते हुए लोगों का कल्याण करें, यही सच्ची मानवता है.
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मल्लिनाथ भगवान की चालीसा (mallinath bhagwan chalisa)
मोहमल्ल मद-मर्दन करते, मन्मथ दुर्द्धर का मद हरते ।।
धैर्य खड्ग से कर्म निवारे, बालयति को नमन हमारे ।।
बिहार प्रान्त ने मिथिला नगरी, राज्य करें कुम्भ काश्यप गोत्री ।।
प्रभावती महारानी उनकी, वर्षा होती थी रत्नों की ।।
अपराजित विमान को तजकर, जननी उदर वसे प्रभु आकर ।।
मंगसिर शुक्ल एकादशी शुभ दिन, जन्मे तीन ज्ञान युन श्री जिन ।।
पूनम चन्द्र समान हों शोभित, इन्द्र न्हवन करते हो मोहित ।।
ताण्डव नृत्य करें खुश होकर, निररवें प्रभुकौ विस्मित होकर ।।
बढे प्यार से मल्लि कुमार, तन की शोभा हुई अपार ।।
पचपन सहस आयु प्रभुवर की, पच्चीस धनु अवगाहन वपु की ।।
देख पुत्र की योग्य अवस्था, पिता व्याह को को व्यवस्था ।।
मिथिलापुरी को खूब सजाया, कन्या पक्ष सुन कर हर्षाया ।।
निज मन मेँ करते प्रभु मन्थन, है विवाह एक मीठा बन्धन ।।
विषय भोग रुपी ये कर्दम, आत्मज्ञान को करदे दुर्गम ।।
नही आसक्त हुए विषयन में, हुए विरक्त गए प्रभु वन मेँ ।।
मंगसिर शुक्ल एकादशी पावन, स्वामी दीक्षा करते धारण ।।
दो दिन का धरा उपवास, वन में ही फिर किया निवास ।।
तीसरे दिन प्रभु करे विहार, नन्दिषेण नृप वे आहार ।।
पात्रदान से हर्षित होकर, अचरज पाँच करें सुर आकर ।।
मल्लिनाथ जी लौटे वन ने, लीन हुए आतम चिन्तन में ।।
आत्मशुद्धि का प्रबल प्रमाण, अल्प समय में उपजा ज्ञान ।।
केवलज्ञानी हुए छः दिन में, घण्टे बजने लगे स्वर्ग में ।।
समोशरण की रचना साजे, अन्तरिक्ष में प्रभु बिराजे ।।
विशाक्ष आदि अट्ठाइस गणधर, चालीस सहस थे ज्ञानी मुनिवर ।।
पथिकों को सत्पथ दिखलाया, शिवपुर का सन्मार्ग बताया ।।
औषधि-शास्त्र- अभय- आहार, दान बताए चार प्रकार ।।
पंच समिति और लब्धि पाँच, पाँचों पैताले हैं साँच ।।
षट् लेश्या जीव षट्काय, षट् द्रव्य कहते समझाय ।।
सात त्त्व का वर्णन करते, सात नरक सुन भविमन डरते ।।
सातों नय को मन में धारें, उत्तम जन सन्देह निवारें ।।
दीर्घ काल तक दिए उपदेश, वाणी में कटुता नहीं लेश ।।
आयु रहने पर एक मान, शिखर सम्मेद पे करते वास ।।
योग निरोध का करते पालन, प्रतिमा योग करें प्रभु धारण ।।
कर्म नष्ट कीने जिनराई, तनंक्षण मुक्ति- रमा परणाई ।।
फाल्गुन शुक्ल पंचमी न्यारी, सिद्ध हुए जिनवर अविकारी ।।
मोक्ष कल्याणक सुर- नर करते, संवल कूट की पूजा करते ।।
चिन्ह ‘कलश’ था मल्लिनाथ का, जीन महापावन था उनका ।।
नरपुंगव थे वे जिनश्रेष्ठ, स्त्री कहे जो सत्य न लेश ।।
कोटि उपाय करो तुम सोच, स्वीभव से हो नहीं मोक्ष ।।
महाबली थे वे शुरवीर, आत्म शत्रु जीते धर- धीर ।।
अनुकम्पा से प्रभु मल्लि हैं, अल्पायु हो भव… वल्लि की ।।
अरज यही है बस हम सब की, दृष्टि रहे सब पर करूणा की ।।