पुष्पदंत भगवान (pushpdant bhagwan) जैन धर्म के नौवें तीर्थंकर हैं. भगवान पुष्पदंत जी के पिता का नाम राजा सुग्रीव और माता का नाम रामादेवी था. इनका जन्म मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को हुआ था. भगवान श्री पुष्पदंत जी के शरीर का वर्ण श्वेत था. भगवान श्री पुष्पदंत जी (bhagwan pushpdantnath 9th trithankar) का चिन्ह मगर है. भगवान श्री पुष्पदंत जी ने हमेशा धर्म और अहिंसा के मार्ग पर चलने का संदेश दिया है.
यह भी पढ़े : Mohini Ekadashi 2022: भगवान विष्णु ने चतुराई से ऐसे पिलाया देवताओं को अमृत, असुरों का हुआ अंत
भगवान श्री पुष्पदंत जी का चालीसा पाठ करने से सभी सुखों की प्राप्ति होती है. इनके चालीसा (bhagwan pushpdantnath 9th trithankar chalisa) पाठ से मोक्ष की प्राप्ति होती है. उनका चालीसा करने से जीवन में कल्याण का मार्ग प्रशस्त होता है. भगवान पुष्पदंत को सुविधिनाथ नाम से भी जाना जाता है. जो भी भक्ति पूर्वक पुष्पदंत भगवान का चालीसा (pushpadantnath bhagvan chalisa) पढ़ते हैं और इसका गान करते हैं. उन्हें न केवल इस लोक में सब कुछ प्राप्त होता है बल्कि वे निर्वाण का भी भागी (jain chalisa sangrah) बन जाता है.
यह भी पढ़े : Guruwar Vrat Niyam: गुरुवार व्रत के दौरान करेंगे इन जरूरी नियमों का पालन, विष्णु जी हो जाएंगे प्रसन्न
पुष्पदंत भगवान का चालीसा (chalisa bhagwan pushpdantnath)
दुःख से तृप्त मरुस्थल भाव में, सघन वृक्ष सम छायाकार ।
पुष्पदन्त पद छत्र छाव में, हम आश्रय पावें सुखकार ।।
जम्बू द्वीप के भरत क्षेत्र में, काकंदी नामक नगरी में ।
राज्य करें सुग्रीव बलधारी, जयराम रानी थी प्यारी ।।
नवमी फाल्गुन कृष्ण बखानी, षोडश स्वपन देखती रानी ।
सूत तीर्थंकर गर्भ में आये, गर्भ कल्याणक देव मनाये ।।
प्रतिपदा मंगसिर उजियारी, जन्मे पुष्पदंत हितकारी ।
जन्मोत्सव की शोभा न्यारी, स्वर्गपुरी सम नगरी प्यारी ।।
आयु थी दो लक्ष पूर्व की, ऊंचाई शत एक धनुष की ।
थामी जब राज्य बागडोर, क्षेत्र वृद्धि हुई चहुँ और ।।
इच्छाए थी उनकी सिमित, मित्र प्रभु के हुए असीमित ।
एक दिन उल्कापात देख कर, दृष्टिपात किया जीवन पर ।।
स्थिर कोई पदार्थ ना जग में, मिले ना सुख किंचित भवमग में ।
ब्रह्मलोक से सुरगन आये, जिनवर का वैराग्य बढ़ाये ।।
सुमति पुत्र को देकर राज, शिविका में प्रभु गए विराज ।
पुष्पक वन में गए हितकार, दीक्षा ली संग भूप हजार ।।
गए शैलपुर दो दिन बाद, हुआ आहार वह निराबाध ।
पात्रदान से हर्षित हो कर, पंचाश्चार्य करे सुर आकर।।
प्रभुवर गए लौट उपवन को, तत्पर हुए कर्म छेदन को ।
लगी समाधि नाग वृक्ष ताल, केवल ज्ञान उपाया निर्मल ।।
इन्द्राज्ञा से समोशरण की, धनपति ने आकर रचना की ।
दिव्या देशना होती प्रभु की, ज्ञान पिपासा मिति जगत की ।।
अनुप्रेक्षा द्वादश समझाई, धर्म स्वरुप विचारों भाई ।
शुक्ल ध्यान की महिमा गाई, शुक्ल ध्यान से हो शिवराई ।।
चारो भेद सहित धारो मन, मोक्षमहल को पहुचो तत्क्षण ।
मोक्ष मार्ग दिखाया परभू ने, हर्षित हुए सकल जन मन में ।।
इंद्र करे प्रार्थना जोड़ कर, सुखद विहार हुआ श्री जिनवर ।
गए अंत में शिखर सम्मेद, ध्यान में लीन हुए निरखेद ।।
शुक्ल ध्यान से किया कर्म क्षय, संध्या समय पाया पद अक्षय ।
अश्विन अष्टमी शुक्ल महान, मोक्ष कल्याणक करे सुख आन ।।
सुप्रभ कूट की करते पूजा, सुविधि नाथ है नाम दूजा ।
मगरमच्छ हैं लक्षण प्रभु का, मंगलमय था जीवन उनका ।।
शिखर सम्मेद में भारी अतिशय, प्रभु प्रतिमा हैं चमत्कारमय ।
कलियुग में भी आते देव, प्रतिदिन नृत्य करें स्वयमेव ।।
घुंघरू की झंकार गूंजती, सबके मन को मॊहित करती ।
ध्वनि सुनी हमने कानो से, पूजा की बहु उपमानो से ।।
हमको हैं ये दृढ श्रद्धान, भक्ति से पाए शिवथान ।
भक्ति में शक्ति हैं न्यारी, राह दिखाए करुनाधारी ।।
पुष्पदंत गुणगान से, निश्चित हो कल्याण ।
अरुणा अनुक्रम से मिले, अंतिम पद निर्वाण ।।