यूं तो सोमवार का दिन वैसे ही देवों के देव महादेव को समर्पित होता है. माना जाता है कि सभी देवों में शिव शंकर सबसे ज्यादा भोले हैं, इसीलिए उनको भोलेनाथ भी कहकर पुकारा जाता है. माना जाता है कि भोलेनाथ अपने भक्तों पर सबसे जल्दी प्रसन्न होते हैं और उनकी इच्छापूर्ति करते हैं. यही वजह है कि देश में न जाने कि बड़ी संख्या में शिव शंकर के भक्त हैं. कहा जाता है कि अगर सोमवार के दिन भगवान शिव की सच्चे मन से आराधना की जाए तो सारे पापों से मुक्ति और कष्टों से छुटकारा मिल जाता है. इसके साथ ही सभी लोगों की मनोकामना पूरी होती है.
शिव शंकर सदा ही अपने भक्तों पर कृपा बरसाते हैं. मान्यता है कि भोलेनाथ को मनाने के लिए उनके भक्त प्रत्येक सोमवार को सुबह उठकर स्नान करके अपने आराध्य की पूजा अर्चना करते हैं. श्रीरामचरितमानस में कहा गया है कि भगवान श्रीराम ने त्रिलोक विजेता लंकापति रावण के साथ युद्ध करने से पहले रामेशवरम् में रुद्राष्टकम् गाकर भगवान शिव की स्तुति की थी. जिसके बाद भगवान शंकर ने खुश होकर उनके विजयश्री का आशीर्वाद दिया था. फलस्वरूप श्रीराम ने लंकापति रावण का वध कर विजय प्राप्त की थी. रुद्राष्टकम् को भोलेनाथ को प्रसन्न करने और उनको मनाने का सर्वोत्म उपाय माना जाता है. माना जाता है कि रुद्राष्टकम् का पाठ सुनकर भगवान शिव खुश हो जाते हैं और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं.
भगवान शिव का रुद्राष्टकम्
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं । विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् ॥
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं । चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ॥1॥
निराकारमोङ्कारमूलं तुरीयं । गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकालकालं कृपालं । गुणागारसंसारपारं नतोऽहम् ॥2॥
तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभीरं । मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरम् ॥
स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा । लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ॥3॥
चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं । प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ॥
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं । प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि ॥4॥
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं । अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं ॥
त्रय: शूलनिर्मूलनं शूलपाणिं । भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ॥5॥
कलातीतकल्याण कल्पान्तकारी । सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ॥
चिदानन्दसंदोह मोहापहारी । प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥6॥
न यावद् उमानाथपादारविन्दं । भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं । प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं ॥7॥
न जानामि योगं जपं नैव पूजां । नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम् ॥
जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानं । प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो ॥8॥
रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये ॥।
Source : News Nation Bureau