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एक Click पर जानें सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु के 5 अवतारों के बारे में

हिन्दू धर्म ग्रन्थों के अनुसार त्रिमूर्ति में से एक ब्रह्मा जी को विश्व का सृजनहार माना गया है.

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Drigraj Madheshia
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एक Click पर जानें सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु के 5 अवतारों के बारे में

भगवान विष्णु को विश्व का पालनहार माना गया है.

हिन्दू धर्म ग्रन्थों के अनुसार त्रिमूर्ति में से एक ब्रह्मा जी को विश्व का सृजनहार माना गया है. भगवान विष्णु को विश्व का पालनहार तो भगवान शिव को पुराणों में संहारक माना गया है. कहते हैं जब भी पृथ्वी पर कोई संकट आता है तो भगवान अवतार लेकर उस संकट को दूर करते हैं. भगवान शिव और भगवान विष्णु ने कई बार पृथ्वी पर अवतार लिया. अब तक भगवान विष्णु पृथ्वी पर 23 बार अवतार ले चुके हैं. और 24वें अवतार को लेकर मान्यता है कि कल्कि अवतार के रूप में भगवान विष्णु का अवतरित होना सुनिश्चित है. भगवान विष्णु के 24 अवतारों में भगवान के 10 प्रमुख अवतार है मत्स्य अवतार, कूर्म अवतार, वराह अवतार, नृसिंह अवतार, वामन अवतार, परशुराम अवतार, राम अवतार. कृष्ण अवतार, बुद्ध अवतार और कल्कि अवतार.भगवान विष्णु के जितने अनोखे रूप हैं. उतनी ही अद्धभुत है उनके हर रूप की महिमा. तो चलिए न्यूज स्टेट भी आज आपको बताएगा भगवान विष्णु के हर प्रमुख अवतार की महिमा. 

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भगवान विष्णु का पहला प्रमुख अवतार है मत्स्य अवतार. पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु ने सृष्टि को प्रलय से बचाने के लिए मत्स्यावतार धारण किया था. एक कथा के अनुसार जब प्रजापति ब्रह्मा के मुंह से वेदों का ज्ञान निकल गया था. तब असुर हयग्रीव ने उस ज्ञान को चुराकर निगल लिया था. तब भगवान विष्णु अपने अवतार मत्स्य के रूप में अवतरित हुए और स्वयं को राजा सत्यव्रत मनु के सामने एक छोटी, लाचार मछली बना लिया. राजा सत्यव्रत एक दिन नदी में स्नान कर जलांजलि दे रहे थे. अचानक उनकी अंजलि में एक छोटी सी मछली आई. उन्होंने देखा तो सोचा वापस सागर में डाल दूं, लेकिन उस मछली ने बोला- आप मुझे सागर में मत डालिए अन्यथा बड़ी मछलियां मुझे खा जाएंगी. दया भाव रखते हुए राजा ने मछली को अपने कमंडल में ले लिया और घर की ओर निकले, घर पहुंचते तक वह मत्स्य उस कमंडल के आकार का हो गया.

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मछली और बड़ी हो गई तो राजा ने उसे अपने सरोवर में रखा, तब देखते ही देखते मछली और बड़ी हो गई. अंत में राजा नें उसे समुद्र में डाला तो उसने पूरे समुद्र को ढंक लिया. उसके बाद राजा को समझ आ गया कि यह कोई साधारण जीव नहीं है. राजा ने मछली से वास्तविक स्वरूप में आने की प्रार्थना की. और राजा की प्रार्थना सुनकर साक्षात भगवान विष्णु प्रकट हुए. और उन्होंने कहा कि ये उनका मत्स्यावतार है. भगवान ने सत्यव्रत से कहा- सुनो राजा सत्यव्रत! आज से सात दिन बाद प्रलय आएगी. तब मेरी प्रेरणा से एक विशाल नाव तुम्हारे पास आएगी. तुम सप्त ऋषियों, औषधियों, बीजों व प्राणियों के सूक्ष्म शरीर को लेकर उसमें बैठ जाना, जब तुम्हारी नाव डगमगाने लगेगी, तब मैं मत्स्य के रूप में तुम्हारे पास आऊंगा. और उस समय तुम वासुकि नाग के द्वारा उस नाव को मेरे सींग से बांध देना. उस समय प्रश्न पूछने पर मैं तुम्हें उत्तर दूंगा, जिससे मेरी महिमा जो परब्रह्म नाम से विख्यात है, तुम्हारे ह्रदय में प्रकट हो जाएगी.

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शास्त्रों में भगवान विष्णु के पहले अवतार की महिमा का वर्णन किया गया है. कहते हैं भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार की पूजा अर्चना करने से परिवारिक संकटों का नाश होता है. जीवन में आ रही आर्थिक परेशानियां दूर होती हैं..साथ ही साधक को मृत्यु के भय से मुक्ति मिलती है.

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भगवान विष्णु का दूसरा प्रमुख अवतार है कूर्म अवतार. कूर्म अवतार को कच्छप अवतार यानि कछुआ के रूप में अवतार लेना भी कहते है. कूर्म अवतार में भगवान विष्णु ने क्षीरसागर के समुद्रमंथन के समय मंदार पर्वत को अपनी पीठ पर संभाला था. मान्यता है कि कच्छपावतार में भगवान विष्णु ने ऋषियों के जीवन के चार लक्ष्यों (धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष) का वर्णन भी किया था. कथा के अनुसार देवराज इंद्र के शौर्य को देख ऋषि दुर्वासा नें उन्हें पारिजात पुष्प की माला भेंट की. लेकिन देवराज इंद्र नें इसे ग्रहण नही किया और उस माला को ऐरावत को पहना दिया और ऐरावत नें उसे भूमि पर फेंक दिया, दुर्वासा ने इससे क्रोधित होकर देवताओं को श्राप दे दिया कि वो अपनी साी शक्तियां खो देंगे.

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इनके अभिशाप के कारण, देवताओं ने अपनी शक्ति खो दी. इससे निराश होकर देवतागण ब्रह्मा जी के पास पहुंचे. और समस्या का हल करने का निवेदन किया. लेकिन ब्रह्मा जी देवताओं को भगवान विष्णु से संपर्क करने को कहा. जिसके बाद सभी देवता भगवान विष्णु के पास पहुंचे. देवताओं के आग्रह पर भगवान विष्णु ने उन्हें सलाह दी कि वे क्षीर समुद्र का मंथन करें जिससे अमृत मिलेगा. इस अमृत को पीने से देवों की शक्ति वापस आ जाएगी. और वे सदा के लिए अमर हो जाएंगे. इस विशाल कार्य को मन्दर पर्वत और वासुकी सांप के सहारे किया गया.

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एक तरफ असुर थे और दुसरी तरफ देवता. सभी समुद्र मंथन करने लगे. लेकिन इस मंथन करने से समुद्र से विष निकला जिसकी घुटन से सारी दुनिया पर खतरा आ गया. तब भगवान शिव ने उस विष को अपने कंठ में बरकरार रखा जिससे उनका शरीर नीला पड़ गया. मंथन जारी रहा लेकिन धीरे धीरे पर्वत डूबने लगा. तभी भगवान विष्णु कूर्म अवतार में अवतरित हुए और एक विशाल कछुए का अवतार लिया ताकि वो अपने पीठ पर पहाड़ को उठा सकें. सुमद्र मंथन के दौरान धन्वतरि अपने हाथों में अमृत कलश के साथ प्रकट हुए. और इस प्रकार भगवान विष्णप के दूसरे प्रमुख अवतार का अवतर्ण हुआ.भगवान विष्णु के दूसरे प्रमुख अवतार की पूजा करने से साधक को जीवन में यश. ऐश्वर्य और बल की की प्राप्ति होती है.

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भगवान विष्णु का तीसरा प्रमुख अवतार है वराह अवतार. मान्यता है कि पृथ्वी का उद्धार करने के लिए भगवान विष्णु ने वराह अवतार धारण किया था. हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार पुरातन समय में दैत्य हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप ने समस्त लोकों में आतंक मचा रखा था. वो दोनों दैत्य देवताओं के शत्रु थे. कहते हैं धरती पर यज्ञ अत्यादि होने से देवताओं को शक्ति मिलती थी. इसिलिए हिरण्याक्ष ने अंतरिक्ष में से धरती को चुरा लिया और समुद्र में जाकर छिपा दिया.

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तीनों लोकों में त्राहि-त्राहि मचने के बाद सभी देवता भगवान विष्णु के पास पहुंचे और समस्या का समाधान करने का आग्रह किया. देवताओं के आग्रह पर भगवान विष्णु ब्रह्मा की नाक से वराह रूप में प्रकट हुए. जिसे देखकर सभी देवताओं, ऋषि-मुनियों ने उनकी स्तुति की. सभी देवताओं के आग्रह पर भगवान वराह ने पृथ्वी को ढूंढना शुरू किया. अपनी थूथनी की मदद से उन्होंने पृथ्वी का पता लगाया. और समुद्र के अंदर जाकर उन्होंने पृथ्वी को बाहर निकाला. जब हिरण्याक्ष को पता लगा तब उसने भगवान विष्णु के वराह अवतार को युद्ध के लिए ललकारा. जिसके बाद दोनों में भीषण युद्ध हुआ. अंत में भगवान वराह ने हिरण्याक्ष का वध कर पृथ्वी को बचाया.भगवान विष्णु के तीसरे प्रमुख अवतार की पूजा करने से साधक के सभी दुखों का नाश हो जाता है और उन्हें सुखमय जीवन जीने का वरदान मिलता है.

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भगवान विष्णु का चौथा प्रमुख अवतार है नृसिंह अवतार. भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लेकर दैत्यों के राजा हिरण्यकश्‍यप का वध किया था. कथा के अनुसार पुरातन समय में दैत्य हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप ने समस्त लोकों में आतंक मचा रखा था. भगवान विष्णु ने वराह अवतार धारण कर दैत्य हिरण्याक्ष का वध कर दिया था. जिसके चलते हिरण्याक्ष के भाई हिरण्यकश्यप को बहुत दुख हुआ. भगवान विष्णु के प्रति बदले की भावना में उसके मन में क्रोध की ज्वाला भड़कने लगी..जिसके चलते हिरण्यकश्यप ने ये तय किया कि ना तो इस धरती पर भगवान का नाम रहेगा और ना ही भगवान को मानने वाला कोई प्राणी.

अपने भाई की मृत्यु का बदला लेने के लिए हिरण्यकश्यप ने समस्त दैत्यों के सामने प्रतिज्ञा ली. हिरण्यकश्यप ने सभी दैत्यों को पृथ्वी लोक जाकर हाहाकार मचाने का आदेश दिया. दैत्यराज हिरण्यकश्यप के आदेशानुसार सभी दैत्यों ने पृथ्वी पर त्राहि त्राहि मचा दी. दैत्यों ने समस्त पृथ्वी लोक को जला कर राख दिया. वहीं दैत्य गुरु शुक्राचार्य के कहने पर हिरण्यकश्यप ने घोर तपस्या की. जिसके बाद हिरण्यकश्यप को ब्रह्मा जी ने वरदान दिया कि उसे मनुष्य, देवता, पशु, पक्षी, न दिन में, न रात में, न धरती पर, न आकाश में, न अस्त्र से, न शस्त्र से मार सकेंगे. इस वरदान को प्राप्त करने के बाद हिरण्यकश्यप ने तीनो तोकों में हाहाकार मचा दी. हिरण्यकश्यप ने हर प्राणि को उसकी पूजा करने पर मजबूर कर दिया.

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हिरण्यकश्यप की नगरी में हर ओर उसकी पूजा होने लगी लेकिन उसके राज्य में एक शख्स ऐसा भी था जो उसकी नहीं बल्कि भगवान विष्णु की पूजा करता था और वो शख्स था हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद. दैत्यराज ने प्रह्लाद को समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन उसने हिरण्यकश्यप की एक नहीं सुनी. जिसके बाद हिरण्यकश्यप ने अपने दैत्यों को प्रह्लाद को मारने का आदेश दिया. हिरण्यकश्यप के आदेश के बाद दैत्यों ने उन्हें मारने की बहुत कोशिश की. लेकिन दैत्य अपनी हर कोशिश में नाकाम साबित होते रहे. इसके बाद हिरण्यकश्यप की बहन होलिका ने प्रह्लाद को मारने की ठानी. होलिका को अग्नि से न जलने का वरदान प्राप्त था. जिसके चलते वो प्रह्लाद को लेकर धधकती हुई अग्नि में बैठ गई. लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से उस अग्नि ने होलिका को जलाकर राख कर दिया और प्रह्लाद बच गया. इसके बाद हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने के लिए खुद शस्त्र उठा लिए जिसके बाद भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लेकर अपने नाखूनों से हिरण्यकश्य‍प का वध कर दिया.



भगवान विष्णु का पांचवां प्रमुख अवतार है वामन अवतार. दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य संजिवनी विद्या जानते थे. देवराज इंद्र से बदलना लेने के लिए शुक्राचार्य ने प्रह्लाद के पोते राजा बली से 100 यज्ञ करवाने का अनुष्ठान करवाया. 99 यज्ञ सकुशल पुरे होने पर देवताओं की चिंता बढ़ गई. जिसके चलते सभी देवता भगवान विष्णु के पास पहुंचे और समस्या के निराकरण की प्राथना की.

मान्यता है कि देवताओं को राजा बलि के भय से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और राजा बलि के यज्ञ स्थल पर पहुंच गए. शुक्राचार्य ने वामन रूप में भी भगवान विष्णु को पहचान लिया और राजा बलि से आग्रह किया कि वामन कुछ भी मांगे उन्हें इंकार कर देना. वामन साक्षात भगवान विष्णु हैं जो देवताओं की सहायता के लिए तुमसे सब कुछ छीनने आए हैं. राजा बलि ने शुक्राचार्य की बात नहीं मानी..और भगवान वामन से कुछ मांगने को कहा. भगवान वामन ने राजा बली से तीन पग भूमि मांगी.

इसके बाद राजा बलि ने तीन पग भूमि दान करने का संकल्प ले लिया. भगवान वामन ने विशाल रूप धारण कर एक पग में धरती और दूसरे पग में स्वर्ग लोक नाप लिया. तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान नहीं होने पर बलि ने अपना सिर वामन भगवान के चरणों में रख दिया. और तभी राजा बलि दान में अपना सब कुछ गंवा बैठे. और इस तरह बलि के भय से देवताओं को मुक्ति मिली और बलि ने जो धन-संपत्ति देवताओं से छीन ली थी उससे कई गुना धन-संपत्ति देवताओं को प्राप्त हुई. वहीं बलि की दानवीरता देखकर भगवान ने उसे भी सुतललोक का स्वामी बना दिया.

Source : News Nation Bureau

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