आज यानि 13 अक्टूबर को अधिक मास एकादशी मनाई जा रही है. आश्विन महीने की कृष्ण पक्ष के दिन पड़ने वाले इस एकादाशी का हिंदू धर्म में खास महत्व महत्व है. अधिक मास की अंतिम एकादशी होने के कारण इसे बहुत ही शुभ माना जा रहा है. इसे अधिक मास एकादशी या पुरुषोत्तमी एकादशी भी कहा जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है और सिद्धियों की प्राप्ति भी होती है.
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पंचांग के अनुसार एकादशी तिथि का प्रारंभ 12 अक्टूबर दिन सोमवार को शाम 04 बजकर 38 मिनट पर हो रहा है, जो 13 अक्टूबर को दोपहर 02 बजकर 35 मिनट तक रहेगी. लेकिन व्रत 13 अक्टूबर को ही रखा जाएगा और पूजा भी इसी दिन की जाएगी. एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि के समापन से पहले करना अच्छा माना जाता है.
पंचाग के मुताबिक, द्वादशी तिथि का समापन 14 अक्टूबर को दिन में 11 बजकर 51 मिनट पर हो रहा है इसलिए व्रत के पारण का समय 14 अक्टूबर को सुबह 06 बजकर 21 मिनट से सुबह 08 बजकर 40 मिनट तक है.
भगवान विष्णु को पीले फूल अर्पित करें और उनका स्मरण करें. इसके बाद धूप, दीप, नेवैद्य और फूल पूजा-पाठ करें. एकादशी के दिन विष्णु जी के साथ माता लक्ष्मी का पूजन भी किया जाता है. पूजा के बाद यथाशक्ति दान करना चाहिए लेकिन खुद किसी का दिया हुआ अन्न न खाएं. वहीं मान्यता है कि एकादशी के दिन किया गया दान बहुत ही लाभकारी होता है.
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एकादशी व्रत कथा
काम्पिल्य नगर में सुमेधा नामक एक निर्धन ब्राह्मण निवास करता था और उनकी पत्नी का नाम पवित्रा था. वो दोनों बहुत ही धार्मिक थे और लोगों की सेवा के लिए हमेशा तैयार रहते थे. धन की समस्या होने पर ब्राह्मण ने परदेश जाने की इच्छा पत्नी के सामने रखी. तब उसकी पत्नी ने कहा कि धन और संतान पूर्वजन्म के दान से ही प्राप्त होते हैं इसलिए चिंता न करें. कुछ दिन बीत जाने के बाद महर्षि कौडिन्य उनके घर पर पधारे. पति और पत्नी ने अच्छे ढंग से सेवा की. प्रसन्न होकर महर्षि ने दोनों को परम एकादशी व्रत रखने की सलाह दी और बताया कि इस एकादशी के व्रत से ही यक्षराज कुबेर धनवान बना था और हरिशचंद्र राजा बने. दोनों महर्षि के बताए अनुसार व्रत रखा और विधि पूर्वक पारण किया. अगले दिन एक राजकुमार घोड़े पर चढ़कर आया और उसने सुमेधा को हर प्रकार की सुख सुविधाएं प्रदान की. इस प्रकार से दोनों के कष्ट दूर हो गए.
Source : News Nation Bureau