Amarnath Yatra 2022: बाबा भोलेनाथ का परम धाम अमरनाथ की यात्रा 30 जून से शुरू होने जा रही है. बाबा बर्फानी के नाम से मशहूर अमरनाथ धाम का इतिहास सदियों पुराना है. मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव ने यहां माता पार्वती को अमर होने का रहस्य बताया था. कहा जाता है कि अमरनाथ में जाकर हिमलिंग के दर्शन करने से मनुष्य के पापों से मुक्ति मिल जाती है. अमरनाथ की यात्रा बहुत कठिन है. इस यात्रा के दौरान छह पड़ाव आते हैं. इन पड़ाव का अपना एक अलग महत्व और कहानियां है. ये पड़ाव आपको भगवान शिव के होने का एहसास करवाते हैं. तो आइए जानते हैं अमरनाथ यात्रा के बारे में रोचक बातें.
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पहलगाम
मान्यता है कि जब भगवान शिव माता पार्वता को अमर कथा सुनाने के लिए एक गुप्त स्थान की तलाश कर रहे थे तो सबसे पहले उन्होंने नंदी को छोड़ दिया था. नंदी को उन्होंने जिस जगह पर छोड़ा उसे पहलगाम कहा जाने लगा. यहीं से अमरनाथ यात्रा की शुरुआत होती है.
चंदनबाड़ी
इसके बाद भगवान शिव आगे बढ़ें और कुछ दूरी पर जाकर उन्होंने अपनी जटाओं से चंद्रमा को अलग कर दिया. मान्यता है कि जिस स्थान पर उन्होंने चंद्रमा को खुद से अलग किया उस स्थान को चंदनबाड़ी कहा जाता है. इस जगह पर भगवान शिव ने चंद्रमा के साथ साथ अपने माथे पर लगी चंदन और भभूत को भी उतार कर रख दिया था. यहां के कण कण को बहुत पवित्र माना जाता है. यहां की मिट्टी को माथे पर लगाकर श्रद्धालु यात्रा शुरू कर देते है.
पिस्सू घाटी
इस यात्रा का अगला पड़ाव है पिस्सू घाटी. कहा जाता है कि यहां तक पहुंचते पहुंचते यात्रियों की चाल पिस्सू जैसी हो जाती है. इसलिए इसे पिस्सू घाटी कहा जाता है. इसके अलावा मान्यता है कि एक बार देवता और राक्षस भगवान शिव के दर्शन करने के लिए आए थे. पहले आगे बढ़ने की ईर्ष्या में दोनों आपस में ही युद्ध करने लगे. देवताओं ने राक्षसों को पिस्सू की तरह मारा तब से इसे पिस्सू घाटी कहा जाने लगा.
शेष नाग झील
इसके बाद आता है शेष नाग झील कहते हैं. ऐसी मान्यता है कि इस झील को शेषनाग का वास है. अमरनाथ की यात्रा के दौरान शिवजी ने यहां अपने गले से सर्प उतार दिया था. ऐसी मान्यताएं हैं कि 24 घंटे में से एक बार शेषनाग इस झील में दर्शन देते हैं. इस झील की बनावट भी नाग के आकार की है. जिसे देखकर ऐसा लगता है कि मानो शेष नाग फन फैलाकर बैठा हो.
महागुणस पर्वत (गणेश टॉप)
शेषनाग पड़ाव के बाद आता है महागुणस पर्वत. इस स्थान की सुंदरता को शब्दों में बयां नहीं किया जाता है. यह विशालकाय पर्वत हरे और भूरे रंग का है तथा इसका आकार भी आश्चर्यजनक है. कहा जाता है कि भोलेनाथ ने यहां पर अपने पुत्र गणेश को बैठा दिया था. इसलिए इस स्थान को महागणेश पर्वत या गणेश टॉप भी कहा जाता है.
पंचतरणी
इसके बाद आता है पंचतरणी. यहां पांच अलग अलग धाराओं में पांच नदियां बहती हैं. जिन्हें पार करने के बाद यात्री आगे बढ़ते हैं पंचतरणी के बारे में कहा जाता है कि यहां शिव जी की जटाएं पांच दिशाओं में फैली हुई थी और ये पांच धाराएं उन्हीं की जटाओं का प्रतीक हैं. इन धाराओं को स्पर्श मन को परम शांति का अनुभव कराता है.
बाबा बर्फानी की गुफा
इस संगम से आगे तीन कि.मी का मार्ग एक बर्फीली मार्ग है. यहां पैदल चलने का मार्ग भी बर्फ के पुल से होकर गुजरता है. इसके नीचे अमरावती नदी बहती है और ऊपर बर्फ जमी रहती है. बर्फानी शिवलिंग के दर्शन बिना किसी द्वार या प्रतिबंधों के, पर्वत के बीच बनी 20 फीट लंबी तीस फीट चौड़ी और लगभग 15 फीट ऊंची गुफा के अंदर भगवान शिव का प्राकृतिक शिवलिंग है. प्राकृतिक पीठ पक्की पक्की बर्फ से बना है. जबकि गुफा के बाहर आपको कच्ची और मुलायम बर्फ दिखाई देगी.