Anant Chaturdashi 2024 Mantra: हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी के अगले दिन अनंत चतुर्दशी मनाई जाती है. इस साल अनंत चतुर्दशी आज यानि 17 सितंबर को मनाई जा रही है. इस दिन भगवान विष्णु और भगवान अनंत की पूजा की जाती है. मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु की पूजा से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और सुख-समृद्धि मिलती है. इस दिन गणेश चतुर्थी का विसर्जन भी किया जाता है. अगर आप भगवान विष्णु की कृपा पाना चाहते हैं, तो अनंत चतुर्दशी के दिन लक्ष्मी नारायण जी की विधिवत पूजा करें. साथ ही पूजा के दौरान विशेष मंत्रों का जप करें ताकि आपकी सभी इच्छाएं पूर्ण हों और जीवन में सुख-शांति बनी रहे. यह दिन आपके लिए एक महत्वपूर्ण अवसर हो सकता है भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने का. यहां पढ़ें मंत्र.
भगवान विष्ण के मंत्र
अनंत संसार महासुमद्रे मग्रं समभ्युद्धर वासुदेव।
अनंतरूपे विनियोजयस्व ह्रानंतसूत्राय नमो नमस्ते।।
कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने ।
प्रणत क्लेश नाशाय गोविन्दाय नमो नमः।
तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी।
धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमन: प्रिया ।।
लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्।
तुलसी भूर्महालक्ष्मी: पद्मिनी श्रीर्हरप्रिया ।।
श्री विष्णु स्तोत्र
किं नु नाम सहस्त्राणि जपते च पुन: पुन: ।
यानि नामानि दिव्यानि तानि चाचक्ष्व केशव: ।।
मत्स्यं कूर्मं वराहं च वामनं च जनार्दनम् ।
गोविन्दं पुण्डरीकाक्षं माधवं मधुसूदनम् ।।
पदनाभं सहस्त्राक्षं वनमालिं हलायुधम् ।
गोवर्धनं ऋषीकेशं वैकुण्ठं पुरुषोत्तमम् ।।
विश्वरूपं वासुदेवं रामं नारायणं हरिम् ।
दामोदरं श्रीधरं च वेदांग गरुड़ध्वजम् ।।
अनन्तं कृष्णगोपालं जपतो नास्ति पातकम् ।
गवां कोटिप्रदानस्य अश्वमेधशतस्य च ।।
कन्यादानसहस्त्राणां फलं प्राप्नोति मानव:
अमायां वा पौर्णमास्यामेकाद्श्यां तथैव च ।।
संध्याकाले स्मरेन्नित्यं प्रात:काले तथैव च ।
मध्याहने च जपन्नित्यं सर्वपापै: प्रमुच्यते ।।
वृंदा, वृन्दावनी,विश्वपुजिता,विश्वपावनी |
पुष्पसारा,नंदिनी च तुलसी,कृष्णजीवनी ।।
एत नाम अष्टकं चैव स्त्रोत्र नामार्थ संयुतम |
य:पठेत तां सम्पूज्य सोभवमेघ फलं लभेत।।
महाप्रसाद जननी, सर्व सौभाग्यवर्धिनी ।
आधि व्याधि हरा नित्यं, तुलसी त्वं नमोस्तुते ।
देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः !
नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।।
कायेन वाचा मनसेन्द्रियैर्वा ।
बुद्ध्यात्मना वा प्रकृतिस्वभावात् ।
करोमि यद्यत्सकलं परस्मै ।
नारायणयेति समर्पयामि ॥
कायेन वाचा मनसेन्द्रियैर्वा
बुद्ध्यात्मना वानुसृतस्वभावात् ।
करोति यद्यत्सकलं परस्मै
नारायणयेति समर्पयेत्तत् ॥
ॐ नमोः भगवते वासुदेवाय॥
ॐ अंगिरो जाताय विद्महे वाचस्पतये धीमहि तन्नो गुरु प्रचोदयात्।।
शांताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभांगम
लक्ष्मीकांतं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं।
वंदे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्।
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)