Asoj Amavasya Haryana Assembly Election 2024 Effects: चुनाव आयोग ने हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 की तारीख में बदलाव किया है. पहले ये चुनाव 1 अक्टूबर को होने थे लेकिन अब यह 5 अक्टूबर को होंगे. वहीं, चुनाव के नतीजे 8 अक्टूबर को घोषित किए जाएंगे. जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के नतीजे भी इसी दिन घोषित होंगे. पहले दोनों राज्यों के नतीजे 4 अक्टूबर को आने वाले थे. ऐसे में आइए जानते हैं आखिर हरियाणा में क्यों बदलनी पड़ी चुनाव की तारीख.
क्यों बदली गई हरियाणा में वोटिंग की तारीख?
दरअसल, तारीख में बदलाव का मुख्य कारण बिश्नोई समाज का एक प्रमुख त्योहार आसोज अमावस है. आयोग को अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा बीकानेर (राजस्थान) के राष्ट्रीय अध्यक्ष से एक ज्ञापन प्राप्त हुआ, जिसमें बताया गया कि 2 अक्टूबर को 'आसोज अमावस' पर्व है. इस दिन हरियाणा, पंजाब और राजस्थान से हजारों बिश्नोई समुदाय के लोग गुरु जम्बेश्वर की याद में राजस्थान के बीकानेर जिले के मुकाम गांव में अपने पूर्वजों के साथ पूजा-अर्चना करने आते हैं.
इस साल आसोज अमावस 2 अक्टूबर को पड़ रही है. सिरसा, फतेहाबाद और हिसार जिलों के हजारों बिश्नोई परिवार इस दिन राजस्थान की यात्रा करेंगे. इस वजह से इन लोगों के लिए 1 अक्टूबर को मतदान करना मुश्किल हो जाता, जिससे उनका मताधिकार प्रभावित होता.
क्या है आसोज अमावस?
आसोज अमावस बिश्नोई समाज का एक प्रमुख धार्मिक पर्व है जो समाज के संस्थापक गुरु जम्बेश्वर की स्मृति में मनाया जाता है. गुरु जम्बेश्वर ने बीकानेर के मुकाम गांव में अपनी समाधि ली थी जिसे बिश्नोई समाज में 'मुक्तिधाम' कहा जाता है. इस दिन बिश्नोई समाज के लोग निष्काम भाव से सेवा करने और मोक्ष की प्राप्ति के लिए मुकाम में पूजा-अर्चना करते हैं.
हर साल इस दिन मुकाम गांव में एक बड़े मेले का आयोजन किया जाता है जिसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं. फाल्गुन अमावस्या और आसोज अमावस दोनों ही मौकों पर मुकाम मंदिर में मेला लगता है. आसोज अमावस का मेला संत विल्होजी ने 1591 ई. में शुरू किया था और इसकी समस्त व्यवस्था अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा और अखिल भारतीय गुरु जम्बेश्वर सेवक दल द्वारा की जाती है.
चुनाव आयोग का निर्णय
इस पर्व की अहमियत को ध्यान में रखते हुए चुनाव आयोग ने हरियाणा विधानसभा चुनाव की तारीख को 1 अक्टूबर से बदलकर 5 अक्टूबर करने का निर्णय लिया है ताकि बिश्नोई समाज के लोग बिना किसी बाधा के अपने धार्मिक कार्यों में हिस्सा ले सकें और अपने मताधिकार का उपयोग भी कर सकें. इस बदलाव से चुनाव आयोग ने दिखाया है कि वह धार्मिक और सांस्कृतिक पर्वों की अहमियत को समझते हुए निर्णय लेता है जिससे सभी समुदायों के अधिकार और भावनाओं का सम्मान होता है.