महामारी कोरोना वायरस ने जहां लोगों की भागती-दौड़ती जिंदगी को थाम दिया है. वहीं दूसरी तरफ इस वायरस ने त्यौहारों पर ग्रहण लगा दिया है. कोरोना ने सारे त्यौहार के मजे को भी फीका कर दिया है, इस समय हर कोई बस घर में कैद रहने को मजबूर है. मुस्लिमों का सबसे बड़ा पर्व ईद भी कोरोना लॉकडाउन के कारण सादे तरीके से मनाई गई थी. वहीं अब जल्द बकरीद भी आने वाली है ऐसे में इसका मजा किरकिरा न हो इसलिए घर में ही सुरक्षित रहकर मनाएं.
मुस्लिमों का त्यौहार बकरीद इस बार 1 अगस्त को मनाया जाएगा. मुस्लिम समुदाय इस मौके पर जानवरों की कुर्बानी करता है. उत्तर प्रदेश से लेकर महाराष्ट्र सहित तमाम राज्य सरकारों ने बकरीद के लिए गाइड लाइन जारी कर दी है.
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क्यों बनाई जाती है बकरीद
इस्लाम के मुताबिक, हजरत इब्राहिम की परीक्षा के लिए अल्लाह ने उन्हें अपनी सबसे लोकप्रिय चीज की कुर्बानी देने का हुक्म दिया था. हजरत इब्राहिम को उनका बेटा सबसे प्रिय था, इसलिए उन्होंने उसकी बलि देना स्वीकार किया.
कुर्बानी देते हुए उन्होंने अपनी आंखों पर काली पट्टी बांध ली थी, जिससे कि उनकी भावनाएं सामने न आ सकें. जब उन्होंने पट्टी हटाई तो अपने पुत्र को जिंदा खड़ा हुआ देखा. सामने कटा हुआ दुम्बा (सउदी में पाया जाने वाला भेड़ जैसा जानवर) पड़ा हुआ था, तभी से इस मौके पर कुर्बानी देने की प्रथा है.
तीन हिस्सों में बांटा जाता है गोश्त
इस्लाम में बकरीद के त्योहार को फर्ज-ए-कुर्बान के नाम से भी जाना जाता है. इस्लाम में गरीबों और मजलूमों का खास ध्यान रखने की परंपरा है. इसी वजह से बकरीद पर भी गरीबों का विशेष ध्यान रखा जाता है. इस दिन कुर्बानी के बाद गोश्त के तीन हिस्से किए जाते हैं. इन तीनों हिस्सों में से एक हिस्सा खुद के लिए और शेष दो हिस्से समाज के गरीब और जरूरतमंद लोगों में बांट दिए जाते हैं. ऐसा करके मुस्लिम इस बात का पैगाम देते हैं कि अपने दिल की करीबी चीज़ भी हम दूसरों की बेहतरी के लिए अल्लाह की राह में कुर्बान कर देते हैं.