Advertisment

Basoda 2022: हिन्दू धर्म का इकलौता व्रत जो पुरुषों के लिए है अनिवार्य, क्या है बसौड़ा पर्व और क्यों है इसका इतना खास महत्व

भारतीय सनातन परंपरा के अनुसार, महिलाएं अपने बच्चों की सलामती, आरोग्यता व घर में सुख-शांति के लिए रंगपंचमी से अष्टमी तक मां शीतला को बसौड़ा बनाकर पूजती हैं. हिन्दू धर्म का ये इकलौता ऐसा पर्व है जिसमें पुरुषों का व्रत करना अनिवार्य होता है.

author-image
Gaveshna Sharma
New Update
हिन्दू धर्म का इकलौता व्रत जो पुरुषों के लिए है अनिवार्य

हिन्दू धर्म का इकलौता व्रत जो पुरुषों के लिए है अनिवार्य( Photo Credit : Social Media)

Advertisment

Significance Of Basoda: बीती 18 मार्च को होली (Holi 2022) का महोत्सव खत्म होकर चुका है. होली के समाप्त होते के साथ ही बसौड़ा पर्व की शुरुआत हो गई. भारतीय सनातन परंपरा के अनुसार, महिलाएं अपने बच्चों की सलामती, आरोग्यता व घर में सुख-शांति के लिए रंगपंचमी से अष्टमी तक मां शीतला को बसौड़ा (Basoda 2022) बनाकर पूजती हैं. बता दें कि यूं तो हर पर्व और त्यौहार में व्रत पालन का प्रतिनिधित्व महिलाएं ही करती हैं. लेकिन हिन्दू धर्म का ये इकलौता ऐसा पर्व है जिसमें पुरुषों का व्रत करना अनिवार्य होता है. 

यह भी पढ़ें: Tulasi Chalisa: तुलसी चालीसा के पाठ से बांझ स्त्रियों को मिलता है संतान सुख, सौभाग्य के साथ हमेशा भरा रहता है अन्न का भंडार

- बसौड़े का प्रसाद  
बसौड़ा में मीठे चावल, कढ़ी, चने की दाल, हलुवा, रावड़ी, बिना नमक की पूड़ी, पूए आदि एक दिन पहले ही रात्रि में बनाकर रख लिए जाते है. तत्पश्चात सुबह घर व मंदिर में माता की पूजा-अर्चना कर महिलाएं शीतला माता को बसौड़ा का प्रसाद चढ़ाती हैं. पूजा करने के बाद घर की महिलाओं द्वारा बसौड़ा का प्रसाद अपने परिवारों में बांट कर सभी के साथ मिलजुल कर बासी भोजन ग्रहण करके माता का आशीर्वाद लिया जाता है.

- पुरुष भी पूजते हैं बासौड़ा
कहा जाता है कि भारत विभिन्न समाजों व संप्रदायों से मिलकर बना एक लोक बहुलतावादी देश है. जहां पर हर त्यौहार व पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. इसी सनातन परंपरा को कायम रखते हुए शहरों-गांवों में कई समाजजन बसौड़ा पर्व पूर्ण श्रद्धा-भक्ति के साथ मनाते हैं. इस पर्व की विशेषता यह है कि केवल महिलाएं ही नहीं, अपितु पुरुष भी इस पूजन में बराबरी से भाग लेते हैं. इस पर्व के दौरान पुरुषों के व्रत पालन का अत्यधिक महत्व है. 

- शीतलता का पर्व
जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफल होने के लिए इंसान में धैर्य के साथ सरलता का गुण होना आवश्यक है. हमारी भारतीय सनातन परंपरा के अनुसार इन गुणों की देवी मां शीतला को माना गया है. उनकी सेवा से धैर्य, साहस, शीतलता और कर्मनिष्ठ जैसे गुण आसानी से प्राप्त हो जाते हैं. रंगपंचमी से इनकी पूजा का पर्व 'बसौड़ा' शुरू हो गया है, जो आगामी अष्टमी तक जारी रहेगा. कहते हैं कि नवरात्रि के शुरू होने से पहले यह व्रत करने से मां के वरदहस्त अपने भक्तों पर रहते हैं.

Source : News Nation Bureau

Ashtami शीतला अष्टमी श्री शीतला सप्तमी पर्व बसौड़ा पर्व पौराणिक कहानी शीतला माता कथा शीतला माता चालीसा शीतला सप्तमी व्रत त्योहार चालीसा आरती shree shitala mata Shitala Saptami Shitala Ashtami festival Shitala Saptami Katha legend Shitala Mata Mata Chalisa
Advertisment
Advertisment