सावन में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कोई कांवड़ उठा रहा है तो कोई सोमवार का व्रत रख रहा है. कोई रोज शिवलिंग पर जल चढ़ा रहा है. हम सभी जानते हैं कि भगवान शिव को बेलपत्र बहुत पसंद है. शिवालयों में जाने वाला हर श्रद्धालु बेलपत्र से भोले शंकर की पूजा जरूर करता है. लेकिन क्या आपको मालूम है कि शिव जी को बेलपत्र चढ़ाने का विधान क्या है? उन्हें बेल क्यों चढ़ाया जाता है और बेलपत्र को चढ़ाते समय भक्तों को किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? तो चलिए हम इस बारे में जानते हैं.
यह भी पढ़ेंःशिवलिंग पर खुदवा दिया ‘लाइलाह इलाल्लाह मोहम्मद उर रसूलल्लाह‘
बेल के पत्तों को ही बेलपत्र या बिल्वपत्र कहा जाता है. बेलपत्र में तीन पत्तियां एक साथ जुड़ी होती हैं. बेलपत्र के बिना शिव की उपासना सम्पूर्ण नहीं होती. भगवान शिव को बेलपत्र बहुत ही प्रिय है. बेलपत्र के बारे में ऐसी मान्यता है कि बेलपत्र और जल से भगवान शंकर का मस्तिष्क शीतल रहता है.
बेलपत्र को तोड़ने के नियम
- चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी और अमावस्या तिथियों को अथवा संक्रांति के समय और सोमवार को बेलपत्र को नहीं तोड़ना चाहिए. इन तिथियों से पहले तोड़ा गया पत्र चढ़ाना चाहिए.
- स्कंदपुराण में यह भी कहा गया है कि अगर नया बेलपत्र न मिल सके, तो किसी दूसरे के चढ़ाए गए बेलपत्र को भी धोकर कई बार उनका प्रयोग किया जा सकता है.
- टहनी से चुन-चुनकर सिर्फ बेलपत्र ही तोड़ना चाहिए, कभी भी पूरी टहनी नहीं तोड़ना चाहिए. पत्र इतनी सावधानी से तोड़ना चाहिए कि पेड़ को कोई नुकसान न पहुंचे.
- बेलपत्र तोड़ने से पहले और बाद में वृक्ष को मन ही मन प्रणाम कर लेना चाहिए.
शिव जी को बेल ऐसे चढ़ाएं
- महादेव को बेलपत्र हमेशा उल्टा अर्पित करना चाहिए, यानी पत्ते का चिकना भाग शिवलिंग के ऊपर होना चाहिए.
- बेलपत्र में चक्र और वज्र नहीं होना चाहिए.
- बेलपत्र 3 से लेकर 11 दलों तक के होते हैं. ये जितने अधिक पत्र के हों, उतने ही उत्तम माने जाते हैं.
- शिवलिंग पर दूसरे के चढ़ाए बेलपत्र की उपेक्षा या अनादर नहीं करना चाहिए.